झारखंडः रघुवर दास और सरयू राय के बीच है सीधी लड़ाई, कौन जीतेगा?
सिटी पोस्ट लाइव : जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और बीजेपी से बाग़ी बने और दास कैबिनेट में मंत्री रहे सरयू राय आमने-सामने हैं.कांग्रेस और जेएमएम गठबंधन के उम्मीदवार और कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ भी यहाँ से मैदान में हैं.क्या रघुवर दास त्रिकोणीय मुक़ाबले में हैं?ज्यादातर लोगों का यहीं कहना है कि यहाँ कोई त्रिकोणीय मुक़ाबला नहीं है.रघुवर दास इसलिए नहीं जीतेंगे कि उन्होंने अच्छा काम किया है बल्कि इसलिए जीतेगें क्योंकि वो बीजेपी के उम्मीदवार हैं.ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि सरयू राय अच्छे उम्मीदवार हैं लेकिन ये भी कहते हैं कि वो चुनाव जीत नहीं पायेगें.यहाँ के लोगों का कहना है कि यहाँ शहरी मतदाता ज्यादा हैं जो बीजेपी के कोर वोटर हैं.सरयू राय जिन झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाले लोगों में लोकप्रिय हैं, वो यहाँ निर्णायक भूमिका में नहीं हैं.इस चुनाव में महंगाई और बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ चुनावी मुद्दा नहीं हैं.कुछ लोगों का ये जरुर कहना है कि सरयू राय के पास जाना और कोई काम करवाना ज़्यादा आसान है.लेकिन सरयू राय के पास रघुवर जैसा सपोर्ट नहीं है.
जशेदपुर पूर्वी के ज्यादातर लोग यहीं मानते हैं कि टक्कर रघुवर दास और सरयू राय में है. सरयू राय को टिकट नहीं मिलने से यहाँ के लोगों में उनके प्रति सहानुभूति तो है लेकिन यह वोट में कितना तब्दील हो पाएगा अहम सवाल यह है. पिछले 25 सालो से रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव जीत रहे हैं.
2014 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल में रघुवर दास एकलौते प्रत्याशी थे जो 70 हज़ार वोट से जीते थे. इस प्रमंडल में झारखंड की 14 सीटें हैं और इनमें रघुवर दास ही एकमात्र उम्मीदवार थे, जिन्हें एक लाख से ज़्यादा वोट मिले थे. संभव है कि इस बार जीत का अंतर 70 के बदले 30 हो जाए लेकिन उन्हें हाराना आसान नहीं है. सरयू राय बीजेपी के वोट में ही सेंधमारी करेंगे. उनके पक्ष में सहानुभूति भी है और रघुवर दास के ख़िलाफ़ 25 सालो की सत्ता विरोधी लहर भी, लेकिन इन तमाम उलट परिस्थितियों की तुलना में उनके पक्ष में ज़्यादा चीज़ें हैं.वो यही पले-बढ़े हैं. यहाँ के स्कूल में पढ़े हैं. हर गली मोहल्ले के लोग उन्हें जानते हैं. उनके साथ संगठन है. बूथ मैनमेजमेंट है. और यह इलाक़ा ऐसा है जहां कोई जातीय समीकरण नहीं है. यहाँ पंजाबी, तमिल, तेलुगू, मलयाली, बंगाली और बिहारी, सभी हैं. रघुवर दास ख़ुद भी बाहरी ही हैं. ऐसे में इनके बीच रघुवर दास को लेकर एक क़िस्म का सुरक्षा भाव भी रहता है. पिछले 25 सालों से रघुवर दास इन सभी बाहरियों के बीच अपने जैसे रहे हैं.”
सरयू राय भी इस बात को मानते हैं कि रघुवरा दास के पक्ष में कई चीज़ें हैं. लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें जनता के प्यार पर भरोसा है. पिछले पाँच सालों में रघुवर दास की सरकार में कई भ्रष्टाचार हुए हैं और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई उसी वजह से टिकट नहीं मिला.सरयू राय कहते हैं-“मैंने रघुवर दास से कहा था कि आप जिस रास्ते पर हैं वो मधु कोड़ा तक ले जाता है, इसलिए संभल जाइए. मैंने अपनी बात राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद से भी कह दी थी. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. मैंने यहाँ तक कहा था कि यह मेरा आख़िरी चुनाव है. इस बार बीजेपी 15 से ज़्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी.”
लड़ाई रघुवर दास और सरयू राय के बीच में ही है.अगर रघुवर दास के सामने केवल सरयू राय होते तो स्थिति दूसरी होती. गौरव वल्लभ और जेवीएम के अभय सिंह नहीं होते तो रघुवर दास की जीत इतनी आसान नहीं होती. अभय सिंह और सरयू राय दोनों राजपूत हैं. अभय सिंह को अगर 20 हज़ार वोट भी मिलता है तो सरयू राय का ही नुक़सान हो रहा है.
गौरव वल्लभ का कहना है कि सरयू राय और रघुवर दास की उम्मीदवारी बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. वो कहते हैं, “इस बार बीजेपी को पता था कि रघुवर दास चुनाव नहीं जीतने जा रहे हैं इसलिए उन्होंने रणनीति के तहत सरयू राय को यहाँ से उतार दिया है. पहले सरयू राय ने कहा कि वो जमशेदपूर पश्चिमी और पूर्वी दोनों से चुनाव लड़ेंगे लेकिन अचानक कहा कि नहीं केवल पूर्वी से ही लड़ेंगे.”
सात दिसंबर को जमशेदपुर में मतदान है. यहाँ पूर्वी और पश्चिमी दो सीटें हैं. पश्चिमी सीट पर मुसलमान का वोट 80 हज़ार है और यहाँ से असदुद्दीन ओवैसी ने अपना उम्मीदवार उतारा है. पश्चिम से सरयू राय के हटने से कांग्रेस की उम्मीद थी लेकिन ओवैसी ने उम्मीदवार खड़ा कर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है और बीजेपी की जीत यहाँ पक्की कर दी है.