मां दुर्गा के नौ रूप और विशेष मंत्र, नवरात्र का अति पावन पर्व आज से शुरू
सिटी पोस्ट लाइव : हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार दुर्गा पूजा (विजयादशमी) को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से नवमी तिथि तक की जाती है। इसे ही नवरात्र कहते हैं, नवरात्रि के नौं दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना, आराधना व उपासना की जाती है और प्रत्येक दिन, मां दुर्गा के एक अलग रूप की उपासना का है। नवरात्रि के पहले तीन दिन मां पार्वती, अगले तीन दिन माता लक्ष्मी व नवरात्रि के अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती के लिए समर्पित हैं, साथ हीं दशमी के दिन रावण का दहन करते हैं। इसका आयोजन आश्र्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। पुराणों में लिखा है कि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रुप में लोग बड़े धूम-धाम से मनाते हैं, इसलिए भी दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। मगर इस पर्व में सबसे ज्यादा महत्व नवरात्र का है, महिला और पुरुष सभी उपवास करते हैं, साथ ही नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने के उपरांत उनका आर्शिवाद लेते हैं। मान्यता है कि ये नौ कन्या माँ दुर्गा के नौ रुप होते हैं, उनके चरण-पूजन कर आर्शिवाद लेना अत्यंत फलदाई होता है। पुराणों में माँ दुर्गा के नौ रुपों की व्याख्या है।प्रथम रुप शैलपुत्री : शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’ कहलाया, ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है, शास्त्रों के अनुसार माता शैलपुत्री का स्वरुप अति दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में भगवान शिव दुआरा दिया गया त्रिशूल है जबकि मां के बाएं हाथ में भगवान विष्णु दुआरा प्रदत्त कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं और इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। धार्मिक मान्यतानुसार मां दुर्गा के इस शैलपुत्री के रूप की उपासना करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करने से मां जल्दी प्रसन्न होती हैं, तथा वांछित फल प्रदान करने में सहायता करती हैं
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ।।द्वितीय रुप ब्रह्मचारिणी : नवदुर्गाओं में दूसरी दुर्गा का नाम ब्रह्मचारिणी है। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। संस्कृत भाषा में ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या, यानी तप का आचरण करने वाली माता भगवती के रूप को ही माता ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है और नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के इस रूप की उपासना की जाती है। इसका स्वरूप सफेद वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है , जिसके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्नन विद्या देकर विजयी बनाती है । मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने के लिए जिस मंत्र की साधना की जाती है, वो निम्नानुसार है
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम: ।।तृतीय रुप चन्द्रघंटा : जब महिषासुर के साथ माता दुर्गा का युद्ध हो रहा था, तब माता ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था। इसलिए नवरात्रि के तृतीय दिन माता के इस चंद्रघण्टा रूप का पूजन किया जाता है। देवी स्वरूप चंद्रघंटा बाघ की सवारी करती है। इसके दस हाथों में कमल , धनुष-बाण , कमंडल , तलवार , त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र हैं। इसके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। अपने दोनों हाथों से यह साधकों को चिरायु आरोग्य और सुख सम्पदा का वरदान देती है। मान्यता ये भी है कि प्रेत बाधा जैसी समस्याओं से भी मां चंद्रघण्टा साधक की रक्षा करती हैं। योग साधना की सफलता के लिए भी माता चन्द्रघंटा की उपासना बहुत ही असरदार होती है. मां चंद्रघंटा की उपासना करने के लिए जिस मंत्र की साधना की जाती है, वो निम्नानुसार है।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।चतुर्थ रुप कुष्मांडा : नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। मान्यता ये है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। लौकिक स्वरूप में यह बाघ की सवारी करती हुई अष्टभुजाधारी मस्तक पर रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट वाली एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इसके अन्य हाथों में कमल , सुदर्शन , चक्र , गदा , धनुष-बाण और अक्षमाला विराजमान है। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग शोक और विनाश से मुक्त करके आयु यश बल और बुद्धि प्रदान करती है। इस दिन साधक को बहुत ही पवित्र और अचंचल मन से कुष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। इनकी उपासना से सभी प्रकार के रोग-दोष दूर होते हैं। धन यश और सम्मान की वृध्दि होती है। मां कुष्माण्डा की उपासना करने के लिए निम्न मंत्र की साधना करनी चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।पंचम रुप स्कन्दमाता : नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मान्यतानुसार जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है, तब स्कंदमाता, संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं। देवी स्कन्दमाता की चार भुजाएं हैं जहां माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं जबकि मां का चौथा हाथ भक्तो को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। यह दुर्गा समस्त ज्ञान-विज्ञान , धर्म-कर्म और कृषि उद्योग सहित पंच आवरणों से समाहित विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहलाती है। मां स्कंदमाता की उपासना करने के लिए निम्न मंत्र की साधना करनी चाहिए
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम:।।षष्टम रुप कात्यायनी : माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योग साधना में आज्ञा चक्र का विशेष महत्व है क्योंकि जिस किसी भी साधक का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है, उसकी आज्ञा को कोई भी जीव नकार नहीं सकता। मां कात्यायनी शत्रुहंता है इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है। जबकि मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं का विवाह होता है। दानवों और असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है। वैदिक युग में यह ऋषिमुनियों को कष्ट देने वाले प्राणघातक दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थी। सांसारिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती है। इसके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। मां दुर्गा के कात्यायनी रूप की उपासना करने के लिए निम्न मंत्र की साधना करनी चाहिए
मंत्र:- या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता | नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नम:।।सप्तम रुप कालरात्रि : माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है। एक हाथ से शत्रुओं की गर्दन पकड़कर दूसरे हाथ में खड़क तलवार से युद्ध स्थल में उनका नाश करने वाली कालरात्रि सचमुच ही अपने विकट रूप में नजर आती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निरंतर निकलती रहती हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए। मां दुर्गा के कालरात्रि रूप की उपासना करने के लिए निम्न मंत्र की साधना करनी चाहिए
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।अष्टम रुप महागौरी : माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनकी शक्ति अमोघ और सदैव फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी दुख: मिट जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा-अर्चना और स्थापना की जाती है। एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं जिससे देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं जिसकी वजह से इनका नाम गौरी पड़ा। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए इसके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन-वैभव और सुख-शान्ति की अधिष्ठात्री देवी है। सांसारिक रूप में इसका स्वरूप बहुत ही उज्जवल , कोमल , सफेदवर्ण तथा सफेद वस्त्रधारी चतुर्भुज युक्त एक हाथ में त्रिशूल , दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए गायन संगीत की प्रिय देवी है , जो सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार हैं। मां दुर्गा के महागौरी रूप की उपासना करने के लिए शास्त्रों में निम्न मंत्र की साधना का वर्णन है
सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते”।।नवम रुप सिद्धिदात्री : माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं , उनको इस संसार में धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है , जो सफेद वस्त्रालंकार से युक्त महा ज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की उपासना करने के लिए शास्त्रों में निम्न मंत्र की साधना का वर्णन है।
या देवी सर्व भूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की पूजा लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखता हो लेकिन सबमें एक ही समानता है वो ये कि मां दुर्गा के बहाने भारतीय संस्कृति से लोगों का जुड़ाव देखने को मिलता है साथ ही जिस तरह से मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में जानते हैं वो हमारे अंदर अक्षुण्ण ऊर्जा का संचार करती है। आइये हम सब लोग इस दुर्गा पूजा पर देश को मजबूत करने का संकल्प लें और अपने परिवार, समाज और आस-पास प्यार और भाईचारे का संदेश फैलायें।