पूर्णिया का पूरणदेवी मंदिर में नवरात्र में क्यों जलता है अखंड दीप, जानिए मंदिर की महिमा
सिटी पोस्ट लाइव, धर्मडेस्क: पूर्णिया का मां दुर्गा से पुराना नाता है. पूरणदेवी मंदिर में नवरात्र में अखंड दीप जलता है. इस मंदिर के स्थापना का इतिहास यहां के पुराने योगी और तांत्रिक बाबा हठीनाथ से जुड़ा है. बाबा हठीनाथ से इस मंदिर की स्थापना की कहानियाँ जुडी हैं. कहते हैं बाबा हठीनाथ एक बडे योगी सिद्ध थे. उन्होंने कभी बायें हाथ से किसी हाथी को उसका दांत पकड कर अपने रास्ते से हटा दिया था. बाबा हठीनाथ का शंख आज भी मंदिर में मौजूद है.
पूर्णिया का पूरणदेवी मंदिर स्थानीय स्तर पर देवी आस्था का एक बडा केन्द्र है. वैसे तो यहां सालों भर भक्तों की भीड रहती है. लेकिन नवरात्र में यहां लोगों की आस्था और उत्साह देखने लायक होता है. पूर्णिया का पूरणदेवी मंदिर स्थानीय स्तर पर देवी आस्था का एक बडा केन्द्र है. बाबा हठीनाथ का शंख आज भी मंदिर में मौजूद है. इस विशालकाय संख को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसे बजाना कितना कठिन होता होगा. इसे मंदिर में सहेज कर रखा गया है. पुजारी के अलावा इसे कोई और नहीं छूता है.
नवरात्र के दिनों में पूरणदेवी मंदिर में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक अखंड दीप हरसाल प्रज्जवलित होती है. पूरणदेवी मंदिर एक सरकारी ट्रस्ट के तहत संचालित होता है. पिछले एक दशक में विकास और पर्यटन आकर्षण के कई काम हुए हैं और कई काम प्रस्तावित हैं. यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. पूर्णिया का पूरणदेवी मंदिर मान्यतानुसार दस महाविद्याओं की आस्था से संबंधित माना जाता है. मुगलकाल से ही इस मंदिर का अस्तित्व है. कहा जाता है कि इस मंदिर के पीछे के तालाब से ही माता की प्रतिमा अपने आप प्रकट हुई थी.
पूरणदेवी मंदिर से हीं पूर्णिया के नामकरण का इतिहास भी जुडा हुआ माना जाता है. पूर्णिया के पारंपरिक जानकार चन्द्रशेख्रर मिश्र,,पूरणदेवी मंदिर के ट्रस्टी गिरिश मिश्र,और पूनम झा,जो , मंदिर की पुजारी परिवार की सदस्या हैं. इन सबके मुताबिक पूरणदेवी मंदिर स्थानीय आस्था और शक्तिपूजा में लोक विश्वास का बडा केन्द्र है. पूरणदेवी मंदिर से हीं पूर्णिया के नामकरण का इतिहास भी जुडा हुआ माना जाता है.