नवरात्र का आज से शुभारंभ, पहले दिन मां शैलपुत्री की हो रही है पूजा-अर्चना
सिटी पोस्ट लाइव : आज से नवरात्र का शुभारंभ हो गया है. इसबार नवरात्र पूरे नौ दिन का है. नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है इसलिए इन्हें ही प्रथम दुर्गा कहा जाता है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. मान्यता है कि पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था. इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था. प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रुप में जन्म लिया. पार्वती और हैमवती भी इन्हीं के नाम है.
उपनिषद् में वर्णित एक कथा के अनुसार दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनंत हैं. इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं. वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है.
मां दुर्गा इस बार सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हाथी पर सवार होकर रविवार को हमारे घर पधारेंगी. फिर 9 दिन बाद घोड़े पर विदा होंगी. घट स्थापना प्रतिपदा तिथि रविवार को सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग में होगी. 29 सितंबर, 2 अक्टूबर और 7 अक्टूबर के दिन दो-दो योग रहेंगे. इन योगों में नवरात्र पूजा काफी शुभ रहेगी.
कलश स्थापना की विधि एवं शुभ मूहुर्त का समय.
नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है. घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है. पंडित विवेक गैरोला ने बताया कि सुबह स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहनें. पूजा का संकल्प लें. मिट्टी की वेदी पर जौ को बोएं, कलश की स्थापना करें, गंगा जल रखें. इस पर कुल देवी की प्रतिमा या फिर लाल कपड़े में लिपटे नारियल को रखें और पूजन करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें. साथ ही यह भी ध्यान रखें कि कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलता रहे.
शुभ मूहुर्त का समय-शुभ समय – सुबह 6.01 से 7.24 बजे तक है.अभिजीत मुहूर्त- 11.33 से 12.20 तक है.
नवरात्र में पहले दिन- शैलपुत्री, दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन- चंद्रघंटा, चौथे दिन- कुष्मांडा, पांचवें दिन- स्कंद माता, छठे दिन- कात्यानी सातवें दिन- कालरात्रि, आठवें दिन- महागौरी, नवें दिन- सिद्धिदात्री देवियों का पूजन किया जाता है.
किस दिन कौनसा योग.29 सितंबर- सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग, 1 अक्टूबर- रवि योग, 2 अक्टूबर- रवि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग, 3 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग, 4 अक्टूबर- रवि योग, 6 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग, 7 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग व रवि योग है. सभी योग व्यापार और खरीदारी के लिए शुभ हैं.
इस बार कलश स्थापना के दिन ही सुख समृद्धि के कारक ग्रह शुक्र का उदय होना बेहद शुभ फलदायी है. शुक्रवार का संबंध देवी लक्ष्मी से है. नवरात्र के दिनों में देवी के सभी रूपों की पूजा होती है. शुक्र का उदित होना भक्तों के लिए सुख-समृद्धि दायक है. धन की इच्छा रखने वाले भक्त नवरात्र के दिनों में माता की उपासना करके अपनी आर्थिक परेशानी दूर कर सकते हैं. इस दिन बुध का शुक्र के घर तुला में आना भी शुभ फलदायी है.
शारदीय नवरात्र इस बार कई संयोग लेकर आएं हैं जिससे भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होगी. वहीं इस बार पूरे नौ दिन मां अंबे की पूजा-अर्चना होगी, जबकि दसवें दिन मां को विधि-विधान के साथ विदाई दी जाएगी. ऐसा दुर्लभ संयोग लंबे समय बाद बना है.इस साल की नवरात्र इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार 4 सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं. ऐसे में साधकों को सिद्धि प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर मिल रहे हैं. 29 सितंबर, 2, 6 और 7 अक्तूबर को भी यह शुभ योग बन रहा है.
संयोग में होगा कलश स्थापना.
रविवार को नवरात्र का प्रारंभ इस बार कलश स्थापना के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और द्विपुष्कर नामक शुभ योग में होगा. ये सभी घटनाएं नवरात्र का शुभारंभ कर रहे हैं. इसी दिन भक्त 10 दिनों तक माता की श्रद्धा भाव से पूजा का संकल्प लेकर घट स्थापना करेंगे.इस बार नवरात्र का आरंभ रविवार को हो रहा है और इसका समापन मंगलवार को होगा. ऐसे में नवरात्र में दो सोमवार और दो रविवार आएंगे. पहले सोमवार को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी और अंतिम सोमवार को महानवमी के दिन सिद्धिदात्री की पूजा होगी. नवरात्र में दो सोमवार का होना शुभ फलदायी माना गया है.
पहले दिन करें मां शैलपुत्री की पूजा.
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है.चौकी पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करे और इसे बाद कलश कि स्थापना करें. कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर स्वास्तिक जरूर बनाएं. इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:’ मंत्र का जाप करें और फिर सफेद फूल मां को अर्पित करें. इसके बाद मां को सफेद रंग का भोग लगाएं. अब माता कि कथा सुने और आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जरूर जलाएं.
मंत्र
- ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
- वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
- वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
- या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥