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देश के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति 14 और 15 जनवरी को मनाई जा रही

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देश के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति 14 और 15 जनवरी को मनाई जा रही

सिटी पोस्ट लाइव : देश के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति 14 और 15 जनवरी को मनाई जा रही है। इस तिथि के संबंध में पंचांग भेद हैं। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो यह घटना मकर संक्रांति कहलाती है। सूर्य का यह गोचर प्रति वर्ष 14 या 15 जनवरी को होता है। साल 2020 में सूर्य का मकर राशि में गोचर 15 जनवरी को हो रहा है, इसलिए इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को पड़ रही है। ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण भी हो जाता है। ग्रंथों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन के समय को देवताओं की रात्रि कहा गया है। इस प्रकार मकर संक्रांति देवताओं का प्रभात काल है। महाभारत के अनुशासनपर्व में लिखा है कि…

माघे मासि महादेव यो दद्यात् घृतकम्बलम्।

स भुक्त्वा सकलान भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।

माघ मासे तिलान यस्तु ब्राहमणेभ्य: प्रयच्छति।

सर्व सत्त्व समाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।

इस श्लोक के अनुसार मकर संक्रांति पर गंगाजल सहित शुद्ध जल से स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु का पुष्प-अक्षत एवं विभिन्न पूजन सामग्रियों से पूजन करना चाहिए। साथ ही, विष्णु सहस्त्र नाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इस दिन घी-तिल-कम्बल-खिचड़ी के दान का विशेष महत्व है। इन चीजों का दान करने वाले व्यक्ति को सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है और पैसों की तंगी से मुक्ति मिलती है। इस दान से मोक्ष की प्राप्त होती है। मकर संक्रान्ति पर गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान का विशेष महत्व बताया गया है। तीर्थ राज प्रयाग में मकर संक्रांति का मेला तो विश्व विख्यात है। इस संबंध में गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्री रामचरित मानस में लिखा है कि-

माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोइ।।

देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।

इसका अर्थ यह है कि जब माघ मास में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब सभी लोग तीर्थ राज प्रयाग आते हैं। इस दिन देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्य, सभी आदरपूर्वक त्रिवेणी (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल- प्रयाग) में स्नान करते हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तीर्थ राज प्रयाग में मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर सभी देवी- देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं।

यहां मकर संक्रांति पर स्नान करना अक्षय पुण्य प्रदान करता है। आगे जानिए मकर संक्रांति से जुड़ी कुछ और खास बातें… खगोल शास्त्रियों के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य अपनी कक्षा में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि प्रवेश करता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण यानी संक्रान्ति कहा जाता है। हमारे धर्म ग्रन्थों में स्नान को पुण्यजनक के साथ-साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक माना जाता है। मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, गरम मौसम आरम्भ होने लगता है, इसलिए उस समय स्नान सुखदायी लगता है।

उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे (तट पर) बसे गांवों, नगरों में मेलों का आयोजन होता है। भारतवर्ष का सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में मकर संक्रांति पर गंगा सागर में लगता है। गंगा सागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है कि इस दिन गंगाजी स्वर्ग से उतरकर भागीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई थीं। गंगाजी के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इसी घटना की स्मृति में यह तीर्थ गंगा सागर के नाम से विख्यात हुआ और प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेले का आयोजन होने लगा। मंगल कामनाओं के साथ आप सभी को सिटी पोस्ट लाइव परिवार की तरफ से मकर संक्रांति की शुभकामनाएं ।

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