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मकर संक्रांति 2020 : शुभ मुहूर्त, इस पर्व के धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण जानिए

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मकर संक्रांति 2020 : शुभ मुहूर्त, इस पर्व के धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण जानिए .

सिटी पोस्ट लाइव : हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्त्व है. हिन्दू धर्म का ये महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी 2020 को मनाया जाएगा और इसके साथ ही शुभ कार्य प्रारंभ हो जाएंगे. काशी पंचांग के अनुसार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही मकर संक्रांति योग बनता है. इस दिन सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है. इस साल 14 जनवरी रात 2.08 बजे सूर्य उत्तरायण होंगे यानी सूर्य अपनी चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे.

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त -पुण्यकाल: 15 जनवरी 2020 सुबह 07.19 से 12.31 बजे तक है.महापुण्य काल : प्रातः 07.19 से 10.39 बजे तक होगा.सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है. अपना देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है. इसी कारण यहां पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है. किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है.

दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा. मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा जानकर संपूर्ण भारत वर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना,आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है. इस दिन दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है.

“माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥“

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व भी बहुत है.मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है. इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं. इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का महत्व बहुत है. मकर संक्रांति में उत्तर भारत में ठंड का समय रहता है. ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के बारे में विज्ञान भी कहता है. ऐसा करने पर शरीर को ऊर्जा मिलती है. जो सर्दी में शरीर की सुरक्षा के लिए मदद करता है. इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है. खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है. इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है.

 वेदशास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है. यहां प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है. संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई. सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है.

सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है. सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है. प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है. पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है. असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है.दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होगी और रात छोटी होने से अंधकार कम होगा. इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं. द्वापर युग में महाभारत युद्ध के समय भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था. उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा गया है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है. इसी दिन भागीरथ के तप के कारण गंगा मां नदी के रूप में पृथ्वी पर आईं थीं और राजा सगर सहित भगीरथ के पूर्वजों को तृप्त किया था.

 शास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़नेवाला व्यक्ति पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु प्राप्त होनेवाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है. यहाँ प्रकाश एवं अंधकार से तात्पर्य क्रमश: सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से ही है. संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपना प्राण तब तक नहीं छोड़ा, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई. सूर्य के उत्तरायण का महत्व उपनिषद में भी किया गया है.

मकर संक्रांति के दिन या दीपावली के दिन सर्वत्र विद्यमान, सर्व सुख प्रदान करने वाली माता ‘महालक्ष्मी जी’ का पूजन पुराने समय में हिन्दू राजा महाराजा करते थे. सपरिवार इस पूजा को करके मां को श्री यंत्र के रूप में अपने घर में पुनः विराजमान करते थे. यह पूजन समस्त ग्रहों की महादशा या अंतर्दशा के लिए लाभप्रद होता है.माता लक्ष्मी की पूजा करने से ‘सहस्त्ररुपा सर्वव्यापी लक्ष्मी’ जी सिद्ध होती हैं.

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