नरसिंहा राव और इंदिरा गांधी जो न कर सकीं वाजपेयी ने कर दिखाया था, हैरान रह गया था अमेरिका

City Post Live - Desk

नरसिंहा राव और इंदिरा गांधी जो न कर सकीं वाजपेयी ने कर दिखाया था, हैरान रह गया था अमेरिका

सिटी पोस्ट लाइवः 11 मई और 13 मई 1998 की तारीख वो तारीख है जब भारत ने पूरी दुनिया को चैंका दिया था। हिन्दुस्तान में इन तारीखों को परमाणु परीक्षण के लिए जाना जाता हैं। भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था दिलचस्प यह कि अमेरीकी खुफिया एजेंसी को भी भनक नहीं लग पायी कि भारत ऐसा कुछ करने वाला है। दरअसल दुनिया को अपनी ताकत दिखाने के लिए यह साहसिक फैसला लिया था तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने। यहां 1967 और 1998 का जिक्र बेहद अहम हो जाता है। 1967 का जिक्र इसलिए कि 1967 के चुनाव के दौरान जनसंघ जो बाद में बीजेपी बनी उसके घोषणा पत्र में इस बात का जिक्र था कि भारत परमाणु परीक्षण करेगा। बीजेपी जनसंघ के जमाने से हीं परमाणु परीक्षण करने की पक्षधर रही थी। अब बात 1998 की। 18 मार्च 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी दुबारा भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं। तो अपने वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम को याद करते हैं। वही एपीजे अब्दुल कलाम जो आगे चलकर भारत के राष्ट्रपति भी बनें। मिसाईल मैन भी कहा जाता है उन्हें।

तब वे प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार थे। उनसे प्रधानमंत्री वाजपेयी पूछते हैं कितना समय लगेगा आपको टेस्ट की तैयारी में? जवाब मिलता है अगर आज आप आदेश दे दें तो हम 30वें दिन टेस्ट कर सकते हैं। बेहद गोपनियता के साथ इस परमाणु परीक्षण को किया गया था। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 9 मई 1998 को तीनों सेना प्रमुखों को अपने घर पर बुलाया और इस परीक्षण के बारे में जानकारी ली। वाजपेयी ने अपने कैबिनेट के मंत्रियों को भी इस बात की खबर नहीं लगने दी थी कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है। हां कुछ सहयोगियों को केवल एक दिन पहले बताया गया था। मुरली मनोहर जोशी परीक्षण के दिन बेंगलोर में थे उन्हें टीवी देखकर यह जानकारी मिली। इस आॅपरेशन को आॅपरेशन शक्ति का नाम दिया गया।

11 मई 1998 को को पौने चार बजे पोखरण में तीन भूमिगत परीक्षण किये गये। परीक्षण सफल रहा तो प्रधानमंत्री वाजपेयी ने स्पष्ट किया भारत हमेशा शांति का पुजारी था, है और रहेगा। भारत के लिए और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए परमाणु परीक्षण का फैसला कितना साहस भरा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई प्रधानमंत्री इसकी हिम्मत तक नहीं कर पाए। सभी विकल्प होने के बावजूद दूसरे प्रधानमंत्रियों ने इस परीक्षण से अपने पैर पीछे खींच लिए। नरसिम्हां राव भी सोंचते रह गये और एक वक्त पर उन्होंने यह कह दिया कि मैं परमाणु परीक्षण नहीं करना चाहता। यहीं नहीं इंदिरा गांधी भी यह करने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं। 1982 में उन्होंने परमाणु परीक्षण से इंकार कर दिया। राजीव गांधी भी परमाणु परीक्षण का फैसला नहीं ले सके। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जब परमाणु परीक्षण का फैसला किया तो इसकी जानकारी सिर्फ चार नजदीकी लोगों को दी। लाल कृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नाडीस, जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन। अमेरीकी खुफिया एजेंसी को चकमा देने के लिए कोडनेम का इस्तेमाल किया जाता और इस अभियान मेंलगे वैज्ञानिक कभी एक साथ सफर नहीं करते और न हीं सीधे पोखरण जाते थे। वे हमेशा सेना की वर्दी में रहते थे। पोखरण परीक्षण के सूत्रधार कहे जाने वाले एपीजे अब्दुल कलाम को नाम दिया गया था मेजर जनरल पृथ्वीराज।

परीक्षण के बाद अमेरीका बेहद नाराज हुआ क्योंकि उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए को भी इसकी भनक नहीं लग सकी थी, भारत ने उसे भी चकमा दे दिया था। अमेरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने तब कहा था हमने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है, यह मेरे लिए काफी निराशाजनक है। मैं पिछले 5 सालों से भारत के नेताओं के लगातार सम्पर्क में हूं लेकिन भारत नेन्यूक्लियर नाॅन पालिफिरेशन ट्रीटी साइन करने के बावजूद यह परीक्षण किया। दरअसल भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण यह भी बताता है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी सिर्फ स्वभाव और व्यवहार से हीं नरम थे ठोस फैसले लेने का माद्दा उनमें दूसरे प्रधानमंत्रियों के मुकाबले कहीं ज्यादा था। दरअसल यह परमाणु परीक्षण पाकिस्तान को भी करारा जवाब था क्योंकि इससे पहले 6 अप्रैल 1998 को पाकिस्तान ने गौरी मिसाइल का परीक्षण किया था।

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