8 जनवरी को यूनियनों का देशव्यापी हड़ताल, दावा-हड़ताल में शामिल होंगे 25 करोड़ लोग.
सिटी पोस्ट लाइव : बुधवार (8 जनवरी) को यूनियनों का देशव्यापी हड़ताल है. मजदूर ट्रेड यूनियनों ने इस बंद में देश के करीब करीब 25 करोड़ लोगों के शामिल होने का दावा किया है. बेरोजगारी, न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा तय करने और सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 21 हज़ार रुपये प्रति महीने तय करने की मांग को लेकर बंद का आह्वान किया है.
गौरतलब है कि ट्रेड यूनियनों ने बीते गुरुवार को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार से मुलाकात की थी. ट्रेड यूनियनों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री गंगवार ने यूनियन प्रतिनिधियों को बताया था कि सरकार श्रमिकों की भलाई के लिए सभी कदम उठा रही है और लेबर कोड से जुड़ा क़ानून भी इसका हिस्सा है.लेकिन, इसके बाद 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक संयुक्त बयान जारी बताया था कि गंगवार ने उनकी ’14 सूत्रीय मांगों में से किसी के समाधान का भरोसा नहीं दिया.’ट्रेड यूनियनें नए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल को ‘मालिकों के पक्ष में और मजदूरों के ख़िलाफ़’ बता रही हैं.
भारतीय ट्रेड यूनियनों की फ़ेडरेशन सीटू के महासचिव तपन सेन ने केंद्र सरकार पर श्रमिक विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार श्रमिकों को बंधुआ मज़दूर बनाना चाहती है. यह उद्योगपतियों की सरकार है .यह सरकार खुलकर ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के नाम पर ऐसा कर रही है.तपन सेन नेकहा कि सारी ट्रेड यूनियन 8 जनवरी को हड़ताल पर जा रही हैं. तब सरकार को उनकी ताक़त का अंदाज़ा होगा.
आरएसएस से जुड़ा भारतीय मज़दूर संघ बुधवार की हड़ताल में हिस्सा नहीं लेगा.संघ के नेता विरजेश उपाध्याय ने कहा, “ये कांग्रेस और वामपंथी दलों की एक राजनीतिक हड़ताल है.”वहीं, अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के सी.एच वेंकटचलम के अनुसार, “केंद्र सरकार पूंजीपतियों के साथ है जिनका मक़सद बेईमानी करना है.”ट्रेड यूनियन नेताओं के मुताबिक बुधवार की हड़ताल में सरकारी कर्मचारी, बैंक और बीमा क्षेत्र के कर्मचारी शामिल रहेंगे. उन्होंने सिविल सोसाइटीज़ से भी समर्थन मांगा है.