बिहार की वो सीट जिस पर बीजेपी कभी नहीं जीत पायी, दुबारा जीत पाएंगे उपेन्द्र कुशवाहा’

City Post Live - Desk

बिहार की वो सीट जिस पर बीजेपी कभी नहीं जीत पायी, दुबारा जीत पाएंगे उपेन्द्र कुशवाहा’

सिटी पोस्ट लाइवः रालोसपा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई बेहद अहम है। उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने हिस्से में मिली तीनों सीटों पर जीत दर्ज की गयी थी। वे खुद काराकाट से चुनाव जीते थे। तब उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए के सहयोगी थी और कथित मोदी लहर की नाव पर सवार थे। कुशवाहा की पार्टी रालोसपा अब महागठबंधन की सहयोगी हैं और बिहार की पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उपेन्द्र कुशवाहा दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं काराकाट और उजियारपुर। पिछली बार जिस काराकाट सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनें क्या उपेन्द्र कुशवाहा दुबारा वहां से जीत पाएंगे यह सवाल बड़ा है क्योंकि इस बार लड़ाई मोदी के खिलाफ है और कथित मोदी लहर के खिलाफ भी।

लहर से टकराकर कुशवाहा की नाव किनारे पहुंचेगी या नहीं यह 23 मई को पता चलेगा लेकिन काराकाट सीट का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है। काराकाट सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई. 1952 में ये इलाका शाहाबाद दक्षिणी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था. पहली बार यहां से एक निर्दलीय कमल सिंह सांसद बने थे. 1962 में इस सीट का नाम बदलकर बिक्रमगंज कर दिया गया. 1989 से पहले इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. 1989 के बाद अब तक ये समाजवादियों के कब्जे में रही. बीजेपी इस सीट पर कभी सफल नहीं हो पाई.

60 के दशक में कांग्रेस के राम सुभग सिंह सांसद बने. 1971 में कांग्रेस के शिवपूजन शास्त्री सांसद बने और लगातार दो बार सांसद रहे. 1977 में भारतीय लोकदल के अवधेश सिंह इस सीट से जीते. 1980 और 1984 में लगातार दो बार कांग्रेस के नेता तपेश्वर सिंह सांसद रहे. इसके बाद कांग्रेस को कभी जीत नहीं मिली. 1989 और 1991 में जनता दल के रामप्रसाद सिंह यहां से दो बार सांसद रहे. काराकाट सीट से लोगों ने किसी भी सांसद को दो बार से ज्यादा मौका नहीं दिया.

1996 में जनता दल से कांति सिंह जीतीं. वहीं 1998 में समता पार्टी के टिकट पर वर्तमान जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह सांसद बने. 1999 में जनता दल से कांति सिंह एक बार फिर जीतीं. 2004 के चुनाव में तपेश्वर सिंह के बेटे अजीत सिंह जेडीयू से जीतकर संसद पहुंचे.2008 में उनके अचानक निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मीना सिंह सांसद बनीं. 2009 में जेडीयू के महाबली सिंह आरजेडी की कांति सिंह को हराकर सांसद बने. वहीं 2014 में आरएलएसपी से उपेन्द्र कुशवाहा ने आरजेडी की कांति सिंह को पटखनी देकर सांसद बने. इस बार मुख्य मुकाबला उपेन्द्र कुशवाहा और जेडीयू के महाबली सिंह के बीच है.

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