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राम भरोसे सरकारी विद्यालयों के बच्चे ,अभीतक नहीं मिली किताबें

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सिटीपोस्टलाईव:व्यवस्था में सुधार के नाम पर पूरी व्यवस्था को ध्वस्त कर देने का जो खेल बिहार के शिक्षा विभाग में चल रहा है,उससे लाखों विद्यार्थियों का भविष्य दावं पर लग गया है. पहले बिहार टेक्स्ट बुक किताबों को निजी प्रकाशकों के जरिये प्रिंट करवाता था और सेट –मेकिंग करके किताबें स्कूलों तक पहुंचाई जाती थीं.थोडा बिलम्ब होता था लेकिन किताबें छात्रों को मिल जाती थीं.लेकिन इस बिलम की शिकायत को दूर करने के लिए शिक्षा विभाग ने जो नयी व्यवस्था की है,वह फिसड्डी साबित हो रहा है.

अब किताब की जगह सूबे के सरकारी प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में 15 मई तक बच्चों के खाते में राशि और किताबें उपलब्ध करा देनी थीं.इसके लिए शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव ने एक से 15 मई की अवधि को ‘पुस्तक क्रय पखवारा’ घोषित किया था. पखवारा बीतने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं लेकिन किताबें उपलब्ध ही नहीं हैं.जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (सर्वशिक्षा) रामसागर प्रसाद सिह ने के अनुसार  विभाग से किताब खरीदने के लिए जो राशि मिली थी उसे  स्कूलों को भेज दिया गया है.लेकिन  किताब का आवंटन ही अभी तक नहीं हो पाया है. प्राथमिक और मिडिल स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि किसी तरह से पुराणी किताबों के सहारे पढ़ाई हो रही है लेकिन सभी बच्चों के पास किताबें नहीं होने के कारण पढ़ाई बाधित हो रही है.

डीपीओ की मानें तो अभीतक जिलों में लगभग 50 फीसद बच्चों का बैंक अकाउंट ही खुल सका है. अकाउंट खोलने में बैंक कर्मी रुचि नहीं दिखा कि रहे और अकाउंट खोलने के लिए बैंक कर्मी 1000 से 3000 रुपये की माग करते हैं. जबकि किताब के लिए मिलने वाली राशि 125 से 310 रुपये के बीच है. बच्चों को किताब की राशि बैंक अकाउंट में ही दिए जाने का प्रावधान है लेकिन जब बैंक अकाउंट ही नहीं खुलेगा तो पैसा मिलेगा कैसे ?

15 मई तक 10 करोड़ किताबें छापने का निर्देश बिहार राज्य पाठ्य पुस्तक प्रकाशन निगम लिमिटेड को दिया गया है. इसके लिए लगभग 25 प्रकाशकों को छपाई का ऑर्डर दिया गया था. किताबें वितरक के माध्यम से ही बच्चों को मिलनी .पुस्तक भडारण और ब्रिकी के लिए सकुल स्तर पर कमरा एव हॉल एजेंसियों को निश्शुल्क उपलब्ध कराना था.नियम कनून तो बन गया लेकिन उसके अनुपालन की दुरुस्त व्यवस्था आजतक नहीं हो पाई है जिसके कारण लाखों छात्रों का भविष्य दावं पर लग गया है.

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