सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव एवं गोमिया विधायक डॉ. लंबोदर महतो ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से 11 नवंबर को सरना धर्म कोड के लिए आहूत विधान सभा के विशेष सत्र में टोटेमिक कुड़मी – कुरमी जनजाति को पुनः जनजाति सूची में शामिल करने का प्रस्ताव पास कर भारत सरकार को भेजने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड के लिए विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करना स्वागत योग्य है. उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि 1913 मे संयुक्त उड़ीसा एवं बिहार के समय में कुड़मी- कुरमी आदिम जनजाति थे. 1931 में उड़ीसा एवं बिहार के न्यायिक विभाग द्वारा कुड़मी-कुरमी को जनजाति की सूची में रखा था मगर 1950 में बगैर किसी कारण के 13 में से 12 जाति को आदिम जनजाति की सूची में रखा गया. कुड़मी- कुरमी को छोड़ दिया गया. झारखंड बनने पर 2004 में झारखंड सरकार द्वारा केंद्र सरकार को कुड़मी- और कुरमी को जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया. पुनः 2012 में केंद्र सरकार को भेजा गया.
डॉ. लंबोदर महतो ने अपने पत्र में मुख्यमंत्री का ध्यान इस विषय पर भी आकृष्ट कराया है कि भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव ने 6 दिसंबर 2012 को कुड़मी-कुरमी को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा की है. लेकिन जनजातीय शोध संस्थान, रांची के तथ्यहीन एवं तथाकथित आधारहीन प्रतिवेदन के आधार पर इसे विचाराधीन रखा गया है. चुंकि कुड़मी- कुरमी सरना धर्मालंबी हैं. प्रत्येक कुड़मी-कुरमी गांव में जेहरा थान( सरना स्थल) है जिसकी पूजा आदि समय से करते आ रहे हैं. चुंकि यह लोग कृषि पेशा से जुड़ने के कारण जनजातीय शोध संस्थान के द्वारा जिन जगह पर सर्वे किया गया वह शहरी क्षेत्र था. यह जाति लंबे समय से कुड़मी-कुरमी जनजाति की सूची में शामिल करने को लेकर आन्दोलनरत हैं. अतः सरना धर्मा लंबी होने के कारण इस विशेष सत्र में ही कुड़मी- कुरमी को जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजना श्रेयस्कर रहेगा.