केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बड़े कदम के तहत सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों को लिखित आदेश जारी कर कहा है कि अब सरकारी स्तर पर या कहीं भी दलित शब्द का प्रयोग नहीं किया जाए. इस संबंध में पत्र जारी कर दिया गया है. केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश कोर्ट द्वारा दिए आदेश का हवाला देते हुए ये कदम उठाया है. डॉ मोहन लाल माहौर ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में उन्होंने दलित शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए उसपर रोक की मांग की थी. अब किसी भी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के आगे उनकी जाति का नाम लिखा जाना सरकार ने अनिवार्य कर दिया है. इससे पहले तत्कालीन सरकार ने 10 फरवरी 1982 को नोटिफिकेशन जारी कर हरिजन शब्द पर भी रोक लगाई थी. अब हरिजन बोलने पर कड़ी सजा का प्रावधान है, लेकिन बता दें कि अभी यह पता नहीं कि दलित शब्द का प्रयोग करने पर कितनी सजा का प्रावधान किया गया है.
मंत्रालय ने पत्र में बताया कहीं नहीं है संविधान में दलित शब्द का प्रयोग
मत्रालय द्वारा प्रमुख सचिव को लिखे पत्र में कहा गया है कि दलित शब्द का प्रयोग संविधान में कहीं नहीं है. बता दें कि इससे पहले वर्ष 1990 में इसी प्रकार का एक आदेश जारी हुआ था. जब सरकारी दस्तावेजों में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए सिर्फ जाति लिखने के निर्देश दिए गए थे. हाईकोर्ट के ग्वालियर बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के आदेश दिए थे.