केन्द्रीय कैबिनेट के इस फैसले के बाद रेलवे की निजीकरण का रास्ता साफ़.
सिटी पोस्ट लाइव ; केन्द्रीय कैबिनेट की मंगलवार को हुई बैठक में रेलवे के वर्तमान आठ सेवाओं के विलय का फैसला ले लिया गया है. यानी अब रेलवे की सभी अलग अलग आठ सेवायें सिंगल रेलवे मैनेजमेंट सर्विस के अंदर आ जायेगीं. कैबिनेट के इस फैसले को रेलवे के निजीकरण की तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है.जानकारों का मानना है कि रेलवे के निजीकरण को लेकर यह बड़ा फैसला हुआ है.
अब इस विलय के बाद रेलवे के आठ सदस्यीय बोर्ड जो रेलवे की सभी सेवाओं का काम देखता है अब केवल चार सदस्यीय हो जाएगा.एक होगा मेम्बर इन्फ्रास्ट्रक्चर, दूसरा मेम्बर फाइनेंस, तीसरा मेम्बर होगा रोलिंग स्टॉक और चौथा होगा ऑपरेशन बिज़नस डेवलपमेंट.रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अब इस संस्था के सीईओ की तरह काम करेगें.
8 मई 1845 को स्थापित किया गया भारतीय रेलवे आज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा सहयोग इसी क्षेत्र का है लेकिन अब सरकार इस क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है. इसकी शुरुआत हाल के दिनों में पूर्ण रूप से निजी कंपनी द्वारा चलाई गई तेजस एक्सप्रेस से हो चुकी है जिसमें दिए गए सुख-सुविधाओं ने लोगों को प्रभावित किया है.रेलवे के निजीकरण के बाद साफ-सफाई की सुविधा बेहतर होगी, ट्रेनों के सुचारू रूप से परिचालन के कारण समय की काफी बचत होगी, ट्रेन के अंदर भी बेहतर सुख सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी.लेकिन निजीकरण के नुकसान भी हो सकते हैं.
किराए में काफी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी, जिससे कि गरीब लोगों के लिए यह यात्रा काफी मुश्किल होगी. समाज के जो लोग यात्रा के लिए इसी माध्यम पर निर्भर हैं, वे इस निजीकरण से ज़्यादा परेशान हैं.निजीकरण की अन्य समस्या यह है कि इतने बड़े रेलवे क्षेत्र का परिचालन किसी एक निजी कंपनी द्वारा संभव नहीं है. ज़ाहिर सी बात है कि अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग हाथों में सौंपना होगा और तब उन सभी के बीच आपस में सुदृढ़ समन्वय की उम्मीद करना बेहद मुश्किल होगा.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रेलवे के निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं.