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सवर्ण आरक्षण का विरोध कर क्यों बुरे फंसे हैं तेजस्वी यादव, जानिए सच्चाई

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सवर्ण आरक्षण का विरोध कर क्यों बुरे फंसे हैं तेजस्वी यादव, जानिए सच्चाई

सिटी पोस्ट लाइव : सवर्ण आरक्षण का मुद्दा अब सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है. इसको लेकर राजनीति गरमा गई है. NDA को इस मुद्दे से बेहद चुनावी लाभ की उम्मीद है वहीँ  इसको लेकर विपक्षी दल सकते में हैं. वो न तो खुलकर इसका विरोध कर पा रहे हैं और ना ही इसका समर्थन कर पा रहे. RJD के लिए तो यह मुद्दा परेशानी का सबसे बड़ा सबब बन गया है. आरजेडी के लिए सवर्ण आरक्षण परेशानी का सबब बन गया है. एक ओर पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने इसके विरोध को ‘चूक’ पार्टी की चूक करार दे दिया है तो दूसरी तरफ RJD सांसद मनोज झा ने इसके विरोध को पार्टी की नीति से जोड़ दिया है. संसद में इसके विरोध में अपनी पार्टी का पक्ष रखने वाले मनोज झा और रघुबंश सिंह आपस में ही टकरा गए हैं.

मामला इतना तूल पकड़ता जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को सफाई देनी पडी. उन्होंने  कहा कि रघुवंश बाबू के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है. सबसे ख़ास बात एक तरफ तेजस्वी अपने खिलाफ सवर्ण आरक्षण विरोधी होने का अफवाह फैलाए जाने का आरोप लगा रहे हैं दूसरी तरफ वो खुलकर सवर्ण आरक्षण के समर्थन में भी नहीं बोल प् रहे हैं. जो थोडा बहुत कसार बाकी था उसे रघुबंश सिंह ने ये कहकर पूरा कर दिया है कि तेजस्वी यादव को सवर्ण समाज को आरक्षण देने के अपने पिता लालू यादव के वायदे को नहीं भूलना चाहिए. जाहिर है पसोपेश में फंसी पार्टी के नेता ओवरऑल कन्फ्यूजन ही क्रियेट कर रहे हैं.

गौरतलब है कि आरजेडी और AIMIM को छोड़ कर तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर केन्द्र सरकार के बिल का समर्थन किया था. दरअसल आरजेडी का मानना है कि अगर सवर्ण आरक्षण का कार्ड खेलकर एनडीए ने राजनीतिक फायदा उठाया है तो बिहार में बदलते सियासी खेल में पिछड़ों और दलितों की बड़ी पार्टी के रूप में उभारने का उसे मौका मिल गया.पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लम्बे समय से ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण की राजनीति करने के चलते बिहार दलित, पिछड़े और अति पिछड़े वोटर आरजेडी से छिटक गए थे और ये जेडीयू से जुड़ते चले गए. हालांकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा के बयान को लालू यादव ने लपक कर बड़े वोट बैंक को अपने पाले में करने की कोशिश की. इसका फायदा भी मिला और 2015 में उनकी सरकार भी बन गई.

हालांकि उस वक्त तब जेडीयू-आरजेडी साथ थी. अब जब जेडीयू अलग हो गई और बिहार में एनडीए और महागठबंधन दो खेमों में बंट गया है तो आरजेडी के अलावा उसके सहयोगियों (उपेन्द्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी) ने भी सवर्ण आरक्षण का समर्थन कर पार्टी लिए परेशानी खड़ी कर दी. ऐसे समय जब महागठबंधन में सीट को लेकर आरजेडी पर दबाव है तो उसने सवर्ण विरोधी पार्टी ठप्पा लगा कर आरक्षण का विरोध कर दिया.

तेजस्वी यादव का राजनीतिक मकसद साफ था कि बिहार के गैर सवर्ण जातियों की नजर में बड़ी पार्टी के रूप में उभरे. हालांकि इसी को अब RJD के बड़े नेता रघुबंश प्रसाद सिंह पार्टी की सबसे बड़ी चूक बता रहे हैं.तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली आरजेडी के ही दूसरे बड़े नेता रघुबंश सिंह के सवर्ण आरक्षण के समर्थन में खड़े हो जाने से पार्टी का संकट बढ़ गया है. पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह भी सवर्ण समुदाय से आते हैं. उन्होंने खुलकर पार्टी के स्टैंड को गलत बता दिया. इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने पार्टी के संविधान का उल्लेख करते हुए  कहा कि आरजेडी के मैनिफेस्टो में गरीब सवर्ण को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है और लालू यादव इसके समर्थक हैं. रघुवंश सिंह ने आरोप लगाया की पार्टी ने जल्दबाजी में फैसला लिया जो पार्टी हित में नहीं है. पार्टी इस पर पुनर्विचार कर रही है.

दरअसल आरजेडी पिछड़ों, मुस्लिमों और दलितों की पार्टी मानी जाती रही है. लेकिन यह भी सच है कि जब पूरा सवर्ण समाज NDA के साथ खड़ा था उस वक्त राजपूतों ने सबसे ज्यादा RJD का साथ दिया. पार्टी के चार सांसद थे.सभी सांसद सवर्ण समुदाय के और राजपूत जाती के ही थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में भी सवर्ण जातियों ने महागठबंधन के पक्ष में खुलकर मतदान किया था. यही वजह रही कि कांग्रेस के 27 में से 12 एमएलए सवर्ण समुदाय से थे.जाहिर है पार्टी को अब लग रहा है कि सवर्ण समुदाय का विरोध कर पार्टी के साथ-साथ महागठबंधन को भी नुकसान पहुंच सकता है. कारण ये है कि एनडीए सवर्ण आरक्षण के साथ-साथ अति पिछड़ा और दलित कार्ड खेल कर नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के चेहरे को आगे बढ़ा चुकी है.

सहयोगी दल के नेता उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी से लेकर कांग्रेस सवर्ण आरक्षण के पक्ष में जिस तरह से खुलकर बैटिंग कर रहे हैं, ऐसे में RJD महागठबंधन में अलग थलग पड़ती नजर आ रही है. महागठबंधन के सवर्ण नेताओं को भी पार्टी के आरक्षण विरोधी स्टैंड से अपनी बिरादरी का वोट नहीं मिलने की चिंता सता रही है. अब जब महागठबंधन और पार्टी (RJD ) में सवर्ण आरक्षण को लेकर घमाशान शुरू हो गया है, तेजस्वी यादव कन्फ्यूज्ड नजर आ रहे हैं. अभीतक वो अपना स्टैंड क्लियर नहीं कर पाए हैं. दरअसल, सवर्ण आरक्षण का अब समर्थन करना भी उनके लिए आसान काम नहीं रहा और विरोध करने की वजह से नुकशान होने का अंदेशा भी सता रहा है. जो आरक्षण पिछले चुनाव में महागठबंधन के लिए संजीवनी साबित हुआ था, आज वहीँ सबसे बड़ा फंदा साबित होता दिख रहा है.

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