उत्तर-प्रदेश और बिहार में माफ़िया बनाने की रेसिपी पुरानी है.

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सिटी पोस्ट लाइव :विकास दुबे की कथित मुठभेड़ में मौत और उससे पहले आठ पुलिसवालों के मारे जाने के बाद से लगातार इस बात पर चर्चा हो रही है कि आख़िर ऐसे लोग पनपते कैसे हैं, और किस तरह वे अपराध के नए-नए ‘कीर्तिमान’ क़ायम करते जाते हैं. यह साफ़ दिखाई देता है कि कभी दबंग, कभी बाहुबली और कभी रॉबिनहुड कहे जाने वाले ये माफ़िया डॉन एक ख़ास तरीक़े से आगे बढ़ते हैं और एक ख़ास ढंग से ही उनका अंत भी होता है.इसका पैटर्न एक ही जिअस है. ये अपराधी किसी एक संसाधन पर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा जमाते हैं, मामला कहीं ज़मीन, कहीं रेत, कहीं रेलवे के ठेके, कहीं मछली पकड़ने, तो कहीं कोयला निकालने का होता है. अवैध धंधा चलाने के लिए राजनीतिक संरक्षण चाहिए होता है, जबकि राजनेता चुनाव जीतने के लिए इनके बाहुबल का इस्तेमाल करते हैं, इसमें अक्सर जाति का एंगल भी शामिल होता है.

कई बार ये माफ़िया सरगना कई सीटों पर चुनाव जितवाने और हरवाने की हैसियत रखते हैं., ये माफ़िया सरगना पार्टियों के प्रति वफ़ादारी सत्ता में बदलाव के साथ बदलते रहते हैं, उनकी गाड़ियों पर अक्सर उन्हीं पार्टियों के झंडे होते हैं जो सत्ता में होती हैं.ये या तो गैंगवार में मारे जाते हैं या पुलिस मुठभेड़ में, जो कभी असली होती है तो कभी नक़ली. अब ज्यादातर माफिया सरगना राजनीति में आकर लंबे समय तक अपनी दौलत और जान बचाने में कामयाब  हो जाते हैं.

ताज़ा कथित मुठभेड़ पर सवाल उठ रहे हैं और यहां तक कहा जा रहा है कि विकास दुबे प्रकरण में कई बड़े नेताओं के नाम आ सकते थे, लेकिन विकास दुबे की मौत के साथ ही अब ये सारे राज़ दब गए हैं.यही कहते हुए मुख्य विपक्षी पार्टियों ने उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी बीजेपी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा है कि “दरअसल ये कार नहीं पलटी है, सरकार पलटने से बचाई गई है.कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि “अपराधी का अंत हो गया, अपराध और उसको संरक्षण देने वाले लोगों का क्या?इस तरह की घटनाओं के बाद अक्सर यही सवाल उठता है कि ‘अपराध और उसको संरक्षण देने वाले लोगों का क्या?

लेकिन ये सवाल सिर्फ़ एक राजनीतिक पार्टी पर नहीं बल्कि तमाम राजनीतिक पार्टियों पर उठते रहे हैं. ताज़ा मामले में भी अगर विकास दुबे की राजनीतिक कुंडली खंगाली जाए, जिनके सिर पर हत्या और हत्या के प्रयास जैसे क़रीब 60 मुक़दमे दर्ज थे, तो पाएंगे कि भले ही वो किसी दल के सक्रिय सदस्य ना रहे हों, लेकिन उनके रिश्ते लगभग सभी पार्टियों से थे.उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह भी कहते हैं कि  कि अपराधियों और राजनीतिक दलों का गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है.बिहार के डीजीपी भी कह चुके हैं कि जबतक लोग जाति-मजहब के नाम पर अपराधियों का साथ देते रहेगें, अपराध होता रहेगा.माफिया पैदा होते रहेगें.

1993 की वोहरा समिति की रिपोर्ट पर एक नजर डालते हैं जिसमे अपराधियों, नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के नेक्सस की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था और कहा गया था कि ये गठजोड़ समाज के लिए एक बहुत गंभीर समस्या है और इसको तोड़ने की ज़रूरत है.लेकिन ये सच है कि  इसे तोड़ने के लिए आजतक कोई प्रभावी क़दम नहीं उठाये गए हैं.नतीजा सामने है.बाहुबलियों का दबदबा राजनीति में बढ़ता जा रहा है.ये बाहुबली अब कास्ट हीरो बन गए हैं.ये बात कहाँ किसी से छुपी हुई है कि  माफ़िया-अपराधी और राजनीतिक दल कई तरह से एक दूसरे के काम आते हैं.कास्ट हीरो बन जाने के कारण राजनीतिक दलों में माफिया और बाहुबलियों की  उपयोगिता बहुत बढ़ गई है. है, चुनाव जीतने में और जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं. इनके पास पैसा, बाहुबल और कभी-कभी जातीय समीकरण भी ऐसा फ़िट बैठता है कि नेताओं के लिए उपयोगी साबित होते हैं. इसीलिए नेताओं के चुनाव जीतने के बाद ये अपने योगदान की वसूली भी करते हैं.

मुख्य तौर पर ये माफ़िया, बाहुबली और आपराधी शराब, ज़मीन, कोयला, रेता, गिट्टी, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में फैले अपने व्यापार के ज़रिए उगाही करते हैं. जानकारों का मानना है कि बिना राजनीतिक शह के ये लोग नहीं पनप सकते.यही वजह है कि अब ये ख़ुद राजनीति में कूद रहे हैं. इनकी आपराधिक छवि के बावजूद राजनीतिक फ़ायदा हासिल करने के लिए पार्टियां इन्हें चुनाव में टिकट भी देती हैं.स्थानीय लोगों पर भी इन लोगों का प्रभाव होता है क्योंकि ज़्यादातर माफ़िया अपनी धर्मपरायण और परोपकारी छवि का प्रचार करते हैं.

ज़्यादातर निर्वाचित माफ़िया अपनी रॉबिनहुड की छवि को पुख़्ता रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं.वे लोगों की मदद करके उनको अपनी छत्रछाया में रखते हैं और इस तरीक़े से अपने लिए एक ऐसा वोट बैंक तैयार करते हैं जो कई बार धर्म और जाति से परे भी उनका वफ़ादार रहता है.अपराधी पहले नेताओं की मदद करते थे, लेकिन अब अपराधी ख़ुद नेता बन गए हैं.

आज की तारीख़ में यूपी की असेंबली में 143 यानी एक तिहाई से भी ज़्यादा विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं. इसके अलावा 26 प्रतिशत विधायक यानी 107 एमएलए ऐसे हैं जिनके विरुद्ध हत्या और हत्या के प्रयास जैसे गंभीर अपराध हैं. सिर्फ़ हत्या और हत्या के प्रयास ही लें तो इसमें प्रदेश के 42 विधायक ऐसे हैं जिन पर ये आरोप लगे हैं.ये लोग जब असेंबली में बैठेंगे तो ये अपने धंधे से बाज़ तो आएंगे नहीं और अगर छिपाकर भी करना होता तो ये अपने गुर्गों से करवाएंगे. अपराधियों को संरक्षण देंगे, उन्हें प्रेट्रोनाइज़ करेंगे, उनको आर्थिक मदद देंगे.

ये अपराधी अपने साथ-साथ अपने परिजनों के लिए भी पंचायत-ब्लॉक कमेटियों से लेकर विधान परिषद, विधानसभा और लोकसभा तक में राजनीतिक पद सुनिश्चित कराने की कोशिश में जुटे रहते हैं. पूर्वांचल के बाहुबली नेता अपने-अपने इलाक़े में गहरी पैठ रखते हैं.सिर्फ़ पूर्वांचल की बात करें तो 1980 के दशक में गोरखपुर के ‘हाता वाले बाबा’ के नाम से पहचाने जाने वाले हरिशंकर तिवारी से शुरू हुआ राजनीति के अपराधीकरण का यह सिलसिला बाद के सालों में मुख़्तार अंसारी, बृजेश सिंह, विजय मिश्रा, सोनू सिंह, विनीत सिंह और फिर धनंजय सिंह जैसे कई हिस्ट्रीशीटर बाहुबली नेताओं से गुज़रता हुआ आज भी पूर्वांचल में फल-फूल रहा है.

बाहुबलियों के कामकाज का तकनीकी विश्लेषण करने पर पता चलता है कि  बड़ा माफिया बनने और लोगों के बीच रॉबिनहुड क इमेज बनाने के लिए सबसे पहले पैसा उगाही ज़रूरी है. इसके लिए माफ़िया कई रास्ते अपनाते हैं.वो  टेलीकॉम टावरों, कोयला, बिजली,रेलवे और स्थानीय सरकारी कामकाज के ठेके   पर कब्ज़ा करते हैं.कोयला, शराब और सरकारी  टेंडर से पैसे बनाते हैं. गिट्टी, सड़क, रेता और ज़मीन से पैसा कमाने वाले अपराधी ‘धनबल और बाहुबल’ दोनों में काफ़ी मज़बूत हो जाते हैं.

पुलिस और माफिया के बीच की सांठ-गांठ किसी से छुपू हुई नहीं है.पुलिस की मदद से ये अपना दबदबा और बढ़ा लेते हैं.पुलिसवाले अगर इनकी बात नहीं मानें तो उसके तबादले करा देते हैं.राजनीतिक गठजोड़ की वजह से ज्यादातर पुलिसवाले इनके खिलाफ मोर्चा खोलने की बजाय दोस्ती का हाथ बढ़ा देते हैं.इनके खिलाफ अगर पुलिस कारवाई करती हैतो  जातीय समीकरण बिगड़ता है, तो कहीं राजनीतिक समीकरण. सबसे अहम बात ये है कि जब तक राजनीति के रंग-ढंग नहीं बदलेंगे तब तक विकास दुबे, शहाबुद्दीन, पप्पू पाण्डेय ,अनंत सिंह, रामा सिंह और सूरजभान सिंह  जैसे किरदार यूपी-बिहार  के राजनीतिक रंगमंच पर पैदा होते रहेंगे.

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