एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह गैंग चलाता था संतोष झा, लाखों रुपये देता था सैलरी

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सिटी पोस्ट लाइव : आम लोगों के लिए यमराज से कम भयानक नहीं था संतोष झा. उसके नाम से बड़े बड़े अधिकारियों की पतलूनें गीली हो जाती थीं. निजी कंपनियों और सरकारी बाबुओं के लिए यह नाम एक बड़ा आतंक था. वह केवल गोली की भाषा ही समझता था. अभी कुछ ही दिन पहले उसके एक साथी को मोतिहारी कोर्ट में ढेर कर दिया गया और आज वह भी कोर्ट में ही मारा गया.बिहार के सीतामढ़ी सिविल कोर्ट में अपराधियों की गोली का शिकार बने संतोष झा गैंगस्टर के तौर पर जाना जाता था. मंगलवार को उसकी हत्या उस वक्त कर दी गई जब उसे पेशी के लिए ले जाया जा रहा था. दरअसल गैंगस्‍टर संतोष झा का अपराध से पुराना नाता है लेकिन बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि उसे अपराध के साथ ही एके-47 जैसे हथियार से भी प्यार था.

उत्तर बिहार के कुख्यात इस गैंग के पास तीन-तीन एके-47 रायफल थे. अत्याधुनिक हथियारों की बदौलत ही अपराध की दुनिया में उसकी धाक थी. उसके गैंग का खौफ सबके सर चढ़कर बोलता था. दो अभियंताओं की रंगदारी की मांग को लेकर हत्या कर वह अपराध जगत का एक बड़ा नाम बन गया था. दो अभियंताओं को दिनदहाड़े गोलियों से भून कर वह बिहार का सबसे खतरनाक अपराधी बन गया था. इंजीनियर मुकेश कुमार और ब्रजेश कुमार की हत्या के मामले गैंगस्टर संतोष झा और मुकेश पाठक सहित दस अभियुक्तों का नाम आया था.

संतोष झा गिरोह ने रंगदारी नहीं देने पर सड़क निर्माण कंपनी के दो अभियंताओं को दिनदहाड़े एके रायफल से भून दिया था. इस घटना ने बिहार के पुलिस महकमा को हिला कर रख दिया था. इसके बाद पुलिसिया कार्रवाई शुरू हुई और अंतत: पुलिस तथा एसटीएफ की टीम ने पूरे गैंग को दबोच लिया था. माफिया डॉन संतोष झा ने मिथिला में बिहार पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट बना रखा था. इसे उसने नक्सलियों के ग्रुप के तर्ज पर तैयार किया था.

संतोष और विकास पहले नक्सली गिरोह में अहम पदों पर रह चुके थे लेकिन एक नक्सली कमांडर को धोखे से मरवाकर दोनों सरगना बन बैठे. इसके बाद में दोनों ने इस नक्सली ग्रुप को क्रिमिनल ग्रुप में तब्दील कर दिया. पूरे इलाके का सबसे बड़ा लेवी वसूसने वाला गिरोह बन गया. इस गिरोह के पास तीन AK-47 रायफले हैं. बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए AK-47 राइफल का इस्तेमाल किया जाता है. दरभंगा इंजीनियर मर्डर केस में भी इंजीनियरों की हत्या AK-47 से ही की गई थी.

निजी कंपनियों से रंगदारी वसूलना उसका सबसे बड़ा काम बन गया था. कोई भी निजी कंपनी वगैर संतोष झा को रंगदारी दिए काम नहीं कर सकती थी. सड़क निर्माण से लेकर पुल निर्माण करनेवाली हर कंपनी  उसे रंगदारी देती थी. रंगदारी देने से मन करने के कारण ही उसने दो अभियंताओं को गोली मार दी थी. उस घटना के बाद कोई भी कंपनी संतोष झा को रंगदारी दिए वगैर काम करने की सोंच भी नहीं सकती थी.संतोष झा के गिरोह का संपर्क कई सफेदपोशों और खाकीधारियों से भी है. अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक पहुँच की बदौलत हमेशा सुरक्षित रहा.वह अपराधिक गैंग भी एक कंपनी की तरह चलाता था .उसके गैंग में सैकड़ों नौजवान वेतन पर काम करते थे.

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