सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के केवल बालिका गृह में ही यौन शोषण नहीं हो रहा है बल्कि बिहार के बाल गृहों में भी नाबालिग बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार हो रहा है. एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं लेकिन पुलिस प्रशासन बालकों के साथ हो रहे अप्राकृतिक यौनाचार के मामलों को गंभीरता से नहीं ले रही. आरा में तीन लड़कों ने अप्राकृतिक यौनाचार का आरोप लगाया था तीन दिन पहले और उसके बाद एक बड़ा मामला पूर्णिया के किशोर गृह से आया है. यहाँ के दो नाबालिग बच्चों ने पिछले कई महीनों से अपने साथ अप्राकृतिक यौनाचार अपने से बड़े लड़कों द्वारा किये जाने का सनसनीखेज खुलासा किया है. एक लड़का कटिहार का और दूसरा पूर्णिया का है. उन्होंने बताया है कि उनके साथ बड़े किशोरों द्वारा जबरन अप्राकृतिक यौनाचार किया जाता है. जब वो विरोध करते हैं तो उन्हें ब्लेड मार देते हैं.
गौरतलब है कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की जिस सोशल ऑडिट रिपोर्ट में मुजफ्फरपुर बालिका गृह सेक्स स्कैंडल का खुलासा किया था उसी की रिपोर्ट में मोतिहारी और गया के ब्वॉयज चिल्ड्रेन होम में नाबालिक लड़कों के साथ जबरदस्ती समलैंगिक संबंध बनाने और कैमूर के शॉर्ट स्टे होम में महिलाओं के यौन उत्पीड़न का भी जिक्र है.इस रिपोर्ट के बाद सरकारी कार्रवाई में हुई देरी का चौंकाने वाला मामला भी सामने आया है. जहां मुजफ्फरपुर सेक्स स्कैंडल मामले में 28 मई को एफआईआर दर्ज कर वहां रहने वाली सभी लड़कियों को दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया, वहीं गया चिल्ड्रन होम के बच्चों को 11 अगस्त को पटना शिफ्ट किया गया है.लेकिन पूर्णिया के मामले में आजतक कोई कारवाई नहीं की गई है.
मोतिहारी और कैमूर में हुई घटनाओं पर भी पुलिस की कार्रवाई कई सवाल पैदा करती है. जहां कैमूर में शॉर्ट स्टे होम के गार्ड को गिरफ्तार किया गया, वहीं मोतिहारी में भी एक जूनियर स्टाफ को अरेस्ट किया गया, लेकिन एनजीओ संचालकों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है.TISS ने अपनी रिपोर्ट 15 मार्च को ही सौंप दी थी जिसमें मोतिहारी, गया और कैमूर के शेल्टर होम संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की गई है. जहां मुजफ्फरपुर मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई, वहीं बाकी शेल्टर होम्स के बारे में मिली गंभीर रिपोर्टों की जांच बिहार पुलिस कर रही है. बिहार सरकार ने समाज कल्याण विभाग के सात जिलों के सहायक निदेशकों और छह चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर को सस्पेंड कर दिया लेकिन मोतिहारी, कैमूर और गया और पूर्णिया शेल्टर होम चलाने वाले एनजीओ के मालिकों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.मोतिहारी और गया के ब्वॉयज चिल्ड्रन होम में रहने वाले बच्चों ने TISS की ओर से सोशल ऑडिट करने गई ‘कोशिश’ की टीम को दर्दनाक दास्तान सुनाई. ऑडिट रिपोर्ट में इन दोनों चिल्ड्रन होम का संचालन करने वाले एनजीओ के खिलाफ अविलंब कार्रवाई की सिफारिश की गई है.मोतिहारी चिल्ड्रन होम का संचालन एनजीओ ‘निर्देश’ कर रहा था. टिस की रिपोर्ट के बाद यहां के एक जूनियर स्टाफ श्याम बाबू को अरेस्ट किया गया जो हाउस फादर के पद पर थे.यहां फ्री ग्रुप डिस्कशन के दौरान बच्चों ने बताया कि कुछ लोग उनके साथ समलैंगिक संबंध बनाते हैं. यहां छोटे और बड़े बच्चों के ग्रुप को एक साथ रखा जाता था. दोनों ही ग्रुप के बच्चों ने बताया कि उनके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाया गया. इस दौरान बच्चों को गंभीर शारीरिक यातना का भी शिकार होना पड़ा.
बच्चों ने बताया कि छोटी-छोटी बातों के लिए वहां के स्टाफ सभी बच्चों के एक कमरे में बंद कर मारते थे. जब कोशिश की टीम ने पूछा कि किन बातों के लिए मारते थे, तो जवाब मिला… जब बदमाशी करता, भागने की कोशिश करता या आपस में लड़ाई करता.टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि चिल्ड्रन होम में निरीक्षण के दौरान सिर्फ एक स्टाफ मौजूद था और वो भी ये नहीं बता सका कि उसकी क्या भूमिका है. रिपोर्ट में एनजीओ के अधिकारियों की गैरमौजूदगी का जिक्र करते हुए कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की गई है.
यही कहानी के चिल्ड्रन होम के बच्चों ने सुनाई जिसका संचालन दाऊदनगर ऑरेगेनाइजेशन फॉर रूरल डेवलपमेंट (DORD) नाम का एनजीओ करता है. यहां की महिलाकर्मी लड़कों से जबरदस्ती कागज पर गंदे मैसेज लिखवाती थी और अपनी ही जूनियर सहकर्मियों से शेयर करती थी. यहां बच्चों को हमेशा बंद कमरे में रखा जाता था.
कैमूर शॉर्ट स्टे होम का संचालन ग्राम स्वराज सेवा संस्थान के जरिए हो रहा था. शॉर्ट स्टे होम्स में भूली भटकी वयस्क महिलाएं रहती हैं. यहां रहने वाली महिलाओं ने वहां के गार्ड पर ही यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए. उस गार्ड को बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.यहां से सारी महिलाओं को शिफ्ट कर दिया गया है और इस संस्था को समाज कल्याण विभाग ने ब्लैकलिस्ट कर दिया है.लेकिन सबसे बड़ा सवाल बाल गृहों में चल रहे अप्राकृतिक युनाचार के मामले को सरकार और पुलिस गंभीरता से क्यों नहीं ले रही है. क्या बालकों के साथ यौनाचार बालिकाओं के साथ किये जा रहे यौनाचार से कम गंभीर मामला है?