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‘टिस’ की रिपोर्ट के आधार पर अंतरराष्ट्रीय मलाला फंड से वंचित हुए बिहार के दो NGO

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार सरकार ने तो 50 एनजीओ का चयन तो रद्द कर ही दिया है अब अंतराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी टिस की रिपोर्ट के आधार पर बिहार के NGO को दिए जानेवाले फण्ड पर रोक लगा दी है. टाटा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) की जिस सोशल ऑडिट रिपोर्ट से मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन उत्पीडऩ कांड का खुलासा हुआ है, टिस की उसी रिपोर्ट पर ‘मलाला फंड’ ने बिहार के दो एनजीओ को दी जाने वाली राशि पर रोक लगा दी है. इन दो एनजीओ में ‘सखी’ और ‘नारी गुंजन’ शामिल हैं.

गौरतलब है  कि ‘सखी’ उन महिलाओं व बच्चियों को अपनी सुरक्षा व संरक्षा प्रदान करता है जो शारीरिक अत्याचार की शिकार हैं. साथ ही उन लड़कियों को भी संरक्षण प्रदान करता है जो मानसिक तौर पर बीमार हैं. टिस की इस रिपोर्ट में पटना की ‘नारी गुंजनट और कैमूर के ‘ज्ञान भारती’ के विषय में लिखा है कि के आधार पर कि बिहार की बालिका गृहों में रहने वाली महिलाओं व बालिकाओं का जीवन  सुरक्षित नहीं है, मलाला ने बिहार के दो एनजीओ के फंडिंग पर रोक लगा दी है. मलाला फंड अंतरराष्ट्रीय एनजीओ है जो दुनिया के विभिन्न देशों के एनजीओ को बाल यौन उत्पीडऩ के खिलाफ कार्य करने के लिए फंडिंग करता है.

‘टिस’ ने अपने सोशल ऑडिट रिपोर्ट में साफ शब्दों में कहा कि बिहार के लगभग सभी शेल्टर होम में रहने वाली महिलाओं और बच्चियों का किसी न किसी स्तर पर यौन शोषण होता है.टिस द्वारा बिहार सरकार को सौंपी गई सोशल ऑडिट रिपोर्ट में यहां के शेल्टर होम में बच्चों का जिस तरह यौन शोषण होता है, उसे पढ़कर मलाला फंड ने तत्काल प्रभाव से ‘सखी’ और ‘नारी गुंजन’ की फंडिंग रोक दी है.

मलाला फंड के चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर टेलर रॉयल ने कहा कि मलाला फंड केवल उसी एनजीओ को दिया जाता है, जो बच्चों पर होने वाले अत्याचार और शोषण के खिलाफ कार्य करते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार के दोनों एनजीओ ने मलाला फंड की इन शर्तों को स्वीकार करते हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.लेकिन उनके बारे में जो टिस की रिपोर्ट आई है वो प्रतिकूल है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनके फंडिंग को रोकने का फैसला लिया गया है.

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