बेतिया राज की जमीन के 4 बंडल लैंड रिकॉर्ड की चोरी, SIT कर रही छानबीन

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सिटी पोस्ट लाइव : बेतिया राज खजाना चोरी के बाद अब भू-माफियाओ की नजर बेतिया राज की जमीन पर है. बेतिया राज की जमीन हड़पने के पहले शातिराना तरीके से बेतिया राज के अभिलेखागार का वेंटीलेटर तोड़कर करीब 4 बंडल भू अभिलेखों की चोरी कर ली गई है. बेतिया राज के नाजीर विनोद कुमार वर्मा ने नगर थाने में अज्ञात चोरों के विरुद्ध एक एफ आई आर दर्ज करायी है. कांड दर्ज होने के बाद स्वयं बेतिया पुलिस अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा एवं सदर एसडीपीओ मुकुल परिमल पांडे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. पटना से पहुंची एफएसएल टीम ने बारीकी से जांच पड़ताल की.एसआईटी टीम ने भी मामले की गहराई से जांच पड़ताल शुरू कर दी है. इस दौरान बेतिया राज के तीन कर्मियों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है.

3 दशक पूर्व वर्ष 1990 में बेतिया राज के शीशमहल का छत काटकर चोरों ने करोड़ों की ऐतिहासिक एवं बहुमूल्य सामानों की चोरी कर ली थी. यह मामला आजतक अनसुलझा है. इसके बाद बेतिया राज कचहरी की ऐतिहासिक घड़ी भी चोरी चली गई और शीश महल से भी लाखों की बहुमूल्य वस्तुएं अज्ञात चोरों ने साफ कर दीं, लेकिन, इस मामले में भी वही हाल रहा. बेतिया राज में कई बार पूर्व में ऐतिहासिक एवं बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी हो चुकी है. 2016 में भी चोरों ने शीशमहल के अन्दर लंबी सुरंग बनाकर चोरी का प्रयास किया था. लेकिन, पुलिस की तत्परता से खुदाई का काम पूरा नहीं हो सका और चोरों के मंसूबों पर पानी फिर गया. एक बार फिर बेतिया राज के भू-अभिलेखों की चोरी के बाद बेतिया राज के अस्तित्व को बचाए रखने पर सवाल खड़ा हो गया है.हालांकि, बेतिया राज के अभिलेखों की चोरी किसी साधारण चोर का काम नहीं है क्योंकि अभिलेखों की जरूरत हर किसी को नहीं पड़ती है. माना जा रहा है कि अभिलेखों से चोरों को क्या मतलब हो सकता है?कहा तो यह जा रहा है कि अभिलेखों की चोरी में बड़े-बड़े भू माफियाओं का हाथ हो सकता है और एक बहुत बड़ी साजिश के तहत अभिलेखों की चोरी की गई है, जिसमें बेतिया राज के किसी कर्मी के हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

बेतिया राज का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है. वर्ष 1627 में यह अस्तित्व में आया था. इसके पहले राजा उग्रसेन थे. इसके बाद 10 महाराजा हुए. अंतिम महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह थे. उन्होंने वर्ष 1884 में बागडोर संभाली थी. संतान की चाह में उन्होंने दो शादियां कीं, लेकिन नहीं हुई. 1893 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पहली महारानी शिवरतन कुंवर ने राजकाज संभाला. उनके बाद दूसरी महारानी जानकी कुंवर ने 1897 तक बेतिया राज की कमान संभाली. इसके बाद अंग्रेजों ने इस राज को कब्जे में ले लिया. आजादी के बाद बेतिया राज कोर्ट आफ वार्ड के अधीन चला गया. इसकी देखरेख का जिम्मा अभी राज्य सरकार के पास है. बिहार सरकार के अधिकारी राज के प्रबंधक की जिम्मेदारी निभाते हैं. बेतिया राज की संपत्ति की सुरक्षा में 16 पुलिसकर्मियों तैनात रहते हैं. यह आठ-आठ घंटे ड्यूटी करते हैं. इनमें से महज तीन की ड्यूटी राज परिसर में रहती है.

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