भोजन बनाने-परोसने वालों के हाथों न ग्लब्स हैं और न शारीरिक दूरी की परवाह

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सिटी पोस्ट लाइव, खूंटी: लॉक डाउन के दौरान भीषण गर्मी में चार महिलाएं मिलकर दीदी किचन चला रही हैं। उनकी जिम्मेवारी है कि आसपास का कोई व्यक्ति भूखा न रहे। भूखों को भोजन कराने के एवज में महिलाओं को प्रशासन से सिर्फ पांच सौ रुपये मिलते र्हैं। इसी राशि से महिलाओं को सब्जी, तेल, लकड़ी सब कुछ खरीदना है। सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि महिलाओं को दीदी किचन चलाने में कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कर्रा प्रखंड के मेरले गांव में एक कटहल पेड़ के नीचे चल रहे दीदी किचन का जायजा लेने सांसद प्रतिनिधि सोमवार को वहां पहुंचे। दीदी किचन की संचालिका उर्मिला दीदी ने सांसद प्रतिनिधि को बताया कि तीन गांव की चार महिलाएं मिल कर किचन चला रही हैं। इनमें पोढ़ा बुड़का और घोरपींडा गांव की दीदियां शामिल हैं। सरकार की ओर से पांच सौ रूपये मिलते हैं और हर दिन 65 लोगों को भोजन कराना पड़ता है। अर्थात एक व्यक्ति के पीछे सरकार खर्च रही है सिर्फ 7.81 पैसे। दीदियों ने बताया कि अनुमान लगाया जा सकता है कि सात-आठ रुपये में क्या मिल सकता है। इसी पांच सौ रुपये में दीदियों की मजदूरी भी शामिल है।

दीदी किचन की संचालिका ने सांसद प्रतिनिधि से आग्रह किया कि किसी तरह राशि बढ़ाने में वे मदद करें। बाद में सांसद प्रतिनिधि मनोज कुमार ने कर्रा प्रचांड के चिऊर, बिनगांव  में बनाये गये एकांतवास केंद्र का  जायजा लिया।  एकांतवास केंद्र के प्रभारी ने स्थिति ने बताया कि न तो पीपीई किट मुहैया कराया गया है न ग्लब्स । उन्होंने बताया कि उनके सेंटर में एक सौ बीस लोग आए हैं । सेंटर में खाना न बनकर दूसरी जगह से खाना बनकर आता है। प्रभारी ने बताया कि उनके यहां शनिवार तक 127 आप्रवासी मजदूर पहुंचे हैं, लेकिन सभी की जांच नहीं हो पायी है। खाना बनाने और परोसने वाले के हाथों में न तो ग्लव्स दिखे और न ही इंचार्ज के हाथों में। भोजन परोसने वाले और प्रवासियों के साथ शारीरिक दूरी की भी कमी दिखी।

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