सिटी पोस्ट लाइव : विदेशी फिल्मों में आपने कई ऐसे जगह देखे होंगे जो एक टापू की तरह दीखता है. जहां आने जाने के लिए लोगों को वोट की जरुरत होती है. यही नहीं आम सामान की खरीदारी करने के लिए भी लोगों को दूर जाना होता है. लेकिन आपको बता दें ऐसी जगह विदेशों में ही नहीं बल्कि अपने बिहार में भी है. जो साल के 6 से 9 महीने टापू बना होता है. यहां के लोगों को अपने दिनचर्या के कामों के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. यही नहीं लोग साईकिल, मोटरसाइकिल नहीं बल्कि नाव खरीदते हैं. यहां रहने वाले हर परिवार के पास एक नाव है.
ये जगह दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान का एक गांव है. जिसका नाम गौरा है. इस गांव को नाव वाला गांव भी कहा जाता है. क्यों यहां रहने वाले सभी लोगों के पास नाव है. इन्हें हार काम में नाव की जरुरत होती है. घर से बाहर जाना है या एक घर से दूसरे घर जाना हो. इनके लिए एकलौता नाव ही सहारा है. महिला और बच्चे पशु चारे का इंतज़ाम करने के साथ-साथ बाकी जरूरी कामों के लिए भी नावों का इस्तेमाल करते हैं.
बता दें इस गांव की बदनसीबी ही कहेंगे की आज तक मुख्य सड़क से गांव को जोड़ने के लिए न तो कोई सड़क है और न ही कोई पुल बनाया गया है. कई दशकों से लोग यहां सड़क के साथ एक पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन सिवाए आश्वासन के उन्हें आज तक कुछ नहीं मिला. गांव वालों की मानें तो एक सरकारी नाव भी इन लोगों को नसीब नहीं होती है. ऐसे में लोग करीब बीस हजार की नाव पहले खरीदते हैं, बाद में साइकिल या बाइक खरीदने की सोचते हैं. जिनके पास खुद की नाव नहीं, वे नाव वालों की मदद के मोहताज होते हैं.
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