इस साल के बजट में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी: सूर्यकांत शुक्ला
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि 1 फरवरी 2020 को संसद में पेश किये जाने वाले आम बजट के दस्तावेजां की छपाई का काम वित्त मंत्रालय की हलवा रस्म अदायगी की प्रथा के साथ प्रारंभ हो गया है। इस बजट से तालुकात रखने वाली एक महत्वपूर्ण खबर दावोस में चल रही विश्व आर्थिक मंच की बैठक से आयी है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत के विकास दर के अनुमान को चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर 4.8 प्रशित कर दिया है जो सरकारी संस्था केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सी0एस0ओ0) द्वारा जारी अनुमान 5 प्रतिशत की वृद्धि दर से भी कम है। साथ ही वैश्विक आर्थिक मंदी का कारण भी भारत की सुस्त विकास दर को बताया है। जिसके बाद देश की आर्थिकी मेंं छायी सुस्ती को लेकर अब बहस के लिए कोई गुंजाईस नही बची है।
सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि इस साल के बजट में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी राजकोषीय घाटे (फिसकल डिफिसिट) को अनुशासित सीमा के अन्दर रख पाने की। और इसस भी बड़ी चुनौती होगी घरेलू मांग मे आयी भारी गिरावट को रोक पाने और मांग में वृद्धि कर पाने की। उन्होंने कहा कि सरकार को विकास दर बढ़ाने के लिये मांग में बढ़ोत्तरी के उपाय करने होंगे। मांग में बढ़ोत्तरी करने के लिए आम आदमी की क्रय शक्ति में ईजाफा करना होगा। उसके पॉकेट में कुछ अतिरिक्त आय डालने के उपाय सरकार को करना होगा। श्रम आधारित क्षेत्रों यथा विनिर्माण, कंस्ट्रक्शन और रियलस्टेट में सरकार को खर्च बढ़ाने पर जोर दना होगा। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आय बढ़ाने के लिये मनरेगा की बजट आकार बढ़ाना होगा। आधारभूत संरचना पर पर खर्च बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कारपोरेट टैक्स में भारी कटौती की थी परन्तु इसके अपेक्षित परिणाम नही आये। चूंकि अर्थव्यवस्था का मौजूदा संकट मांग पक्ष से जुड़ा हुआ है, जबकि कारपोरेट टैक्स में कमी आपूर्ति पक्ष से वास्ता रखती है। कारपोरेट टैक्स में कटौती से राजस्व संग्रह में आयी कमी, हमारी वित्तीय साधनों को सीमित किया है। और खुदा मंहगाई के बढ़ने से मोनिटरी पॉलिसी के लिए ब्याज दर कम करना अब आसान नही रहा। इसलिए सरकार को बजट में नीतिगत सुधारात्मक निर्णय लेने की जरूरत है। खाद्य और खाद सबसिडी के मामले में सुधारात्मक पहल करनी होगी इसमें कैश ट्रांसर्फर सीधे लाभुक को देने की नीति अपनानी होगी। इनकॉम टैक्स स्लैब को सरल और व्यवहारिक किये जाने की जरूरत है। फिसकल डिफिसिट के आंकड़ें वास्तविकता को दिखलाने वाले हों, छुपाने वाले नहीं हों। यानी बजट पारदर्शी, मांग बढ़ाने वाला और सुधारात्मक पहलों वाला हो।