सिटी पोस्ट लाइव, रामगढ़: जिले में किसानों को नुकसान से बचाने के लिए कृषि वैज्ञानिक लगातार उपाय सुझा रहे हैं। मंगलवार को कृषि वैज्ञानिक डॉ राघव ने गाजर घास से बचने के लिए भी किसानों को प्रेरित किया। इस संबंध में डॉ राघव ने बताया कि गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) के विश्व का आठवां सबसे खतरनाक जहरीला खरपतवार है। हमारे देश में यह 1955 में विदेश से आया था। यह खाली स्थान, सड़क के दोनों ओर, आवास के पास, खेत की मेड़ के पास, पार्क आदि स्थानों पर आसानी से पनप जाता है। इसका प्रकोप पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। वर्षा काल में यह तेजी से वृद्धि करता है। यह तीन से चार महीने में अपना जीवन काल पूर्ण कर लेता है। इसके 1 पौधे से 4000 से 5000 तक बीज बनता है
गाजर घास से होने वाले नुकसान से किसानों को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने सुझाए उपाय
इससे सर्वाधिक हानि बच्चों को एवं बूढ़े लोगों में होती है। इस घास के संपर्क में आने से त्वचा में खुजली, एलर्जी, बुखार, दमा जैसी घातक बीमारी हो जाती है। यह श्वास की बीमारी को तेजी से बढ़ाता है। गाय एवं बकरी में भी इसको खाती है तो उसमें भी यही बीमारी दिखाई देती है। जिससे स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। डॉ राघव ने बताया कि वर्षा प्रारंभ होने पर इसके पेड़ को उखाड़कर समूल नष्ट कर दें। इसके नियंत्रण के लिए 20 ग्राम नमक को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। रासायनिक विधि से ग्लाईफोसेट 5 एमएल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। लेकिन यह रसायन अन्य पौधों के ऊपर पड़ने पर उन्हें भी नष्ट कर देता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए मैक्सीकन बीटल (जाईगो ग्रामा बाइकोलोराता) नामक कीट को गाजर घास पर छोड़ें। यह पौधे को खाकर नष्ट कर देता है।