सिटी पोस्ट लाइव, दुमका: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित अपने मन की बात कार्यक्रम में झारखण्ड के दुमका में बच्चों की पढ़ाई के लिए किये गये सराहनीय प्रयास का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मीडिल स्कूल के एक प्रिंसिपल ने बच्चों को पढ़ाने और सिखाने के लिए गांव की दीवारों को ही अंग्रेजी और हिंदी के अक्षरों से पेंट करवा दिया, साथ ही, उसमें, अलग-अलग चित्र भी बनाए गए हैं, इससे, गांव के बच्चों को काफी मदद मिल रही है ।
दीवारों पर पठन-पाठन की नयी विधि इजाद कर मिसाल पेश की
दुमका जिला मुख्यालय से करीब 40 किलामीटर दूर जरमुंडी प्रखंड क्षेत्र के डुमरथर गांव में संचालित उत्क्रमित मध्य विद्यालय के शिक्षक और बच्चों ने लाकडाउन के दौरान भी कोविड के नियमों का पालन करते हुए अपने अपने घरों के बाहर दीवारों पर पठन पाठन की नयी विधि का इजाद कर मिसाल पेश की है। जिसकी पूरे देश में चर्चा हो रही है जो हाल के दिनों में खूब सुर्खियां भी बटोरी। प्रधानमंत्री द्वारा आज इस विद्यालय के शिक्षकों और बच्चों के जज्बे की चर्चा किये जाने से गांव के साथ दुमका जिले के साथ पूरा झारखंड गौरवांवित हुआ है।
आदिवासी बहुल डुमरथर गांव में उत्क्रमित मध्य विद्यालय में स्थायी शिक्षक डाक्टर सपन पत्रलेख समेत चार पारा शिक्षक कार्यरत हैं। लाकडाउन की बजह से पूरे देश के सभी शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया गया था। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई लगभग पूरी तरह ठप हो गयी थी। कुछ शैक्षणिक संस्थानों ने आधुनिक तकनीक एप्ड्रायड फोन के माध्यम से आन लाइन पढ़ाई की शुरूआत की लेकिन सुदूर साधन विहीन गांवों में रहनेवाले सभी बच्चो के पास मोबाइल की सुविधा नहीं थी। नेटवर्क की समस्या की बजह से इन गांवों के बच्चे शिक्षा से बंचित हो रहे थे। विभिन्न समस्याओं के बीच विद्यालय के शिक्षक डा सपन पत्रलेख ने विद्यालय के बच्चों को कोरान संक्रमण से बचाव के लिए बच्चों के अभिभावकों की मदद से उनके घर के बाहर दीवारों को काले रंग से पोत कर ब्लैकबोर्ड तैयार कराया और बच्चों को माईक से पठन पाठन की शुरूआत की तो बच्चे भी पढ़ाई में गहरी रूचि लेने लगे।
दीवारों को ब्लैक बोर्ड बनाकर महीनों से हो रही है पढ़ाई
इससे पहले आदिवासी बहुल गांव डुमरथर में कोरोना काल में भी बच्चे दीवारों में ब्लैक बोर्ड बनाकर महीनों से पढ़ाई कर रहे हैं। डुमरथर में पढ़ाई के साथ बच्चे हुनर भी सीख रहे हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक डॉ सपन कुमार के पहल पर ग्रामीणों एवं शिक्षकों ने मिलकर बच्चों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से जरूरी सामान बनाना सीखा रहे हैं। प्रधानाध्यापक डॉ सपन कुमार ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कृषि, बागवानी, हैण्डीक्राफ्ट, ड्राईंग व पेंटिंग आदि का भी ज्ञान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है। इसी को ध्यान में रखकर बच्चों को प्रत्येक दिन पढ़ाई के साथ-साथ उसकी रूचि के अनुसार उन्हें हुनरमंद बनाया जा रहा है। विदित हो कि विगत सात माह से डुमरथर गांव की गलियों में दीवारों पर सौ से अधिक ब्लैक बोर्ड बनाकर बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। ब्लैक बोर्ड में प्रत्येक दिन दर्जनों डब्बा चॉक की आवश्यकता होती है। चॉक की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए प्रधानाध्यापक ने प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और चॉक बनाने के लिए सांचा उपलब्ध करा कर गांव में ही चैक निर्माण कार्य शुरू करवाया है। ग्रामीणों के साथ बच्चे भी चैक बनाना सीख रहे हैं। इसी प्रकार बच्चों के बैठने के लिए ताड़ के पत्तों से चटाई बनायी जा रही है। साफ सफाई के लिए झाड़ू की व्यवस्था भी स्थानीय स्तर पर बनाया जा रहा है।
रंगोली, चित्रकला व बगवानी भी दी जा रही है शिक्षा
बच्चों को मेहंदी लगाना, रंगोली बनाना, चित्रकला और बगवानी भी सिखाया जा रहा है। ब्लैक बोर्ड का निर्माण भी ग्रामीणों ने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मिट्टी, राख, पानी आदि से बने रंग से मिलाकर बनाया है। लॉकडाउन में बच्चों को पढ़ाने के लिए झारखंड सरकार ने डीजी साथ कार्यक्रम चलाया गया किंतु आदिवासी बहुल सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में स्थित डुमरथर गांव में अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं होने के कारण डीजी कार्यक्रम का संचालन नहीं हो पा रहा था। तब जाकर उत्क्रमित मध्य विद्यालय डुमथर के प्रधानाध्यापक डॉ सपन कुमार के दीवारों को ब्लैक बोर्ड बनाने के आइडिया से बच्चे लगातार यहां पढ़ रहे हैं। प्रधानाध्यापक डॉ सपन कुमार ने बच्चों को हुनर भी सिखाना शुरू किया है। शिक्षा आपके द्वार समुदाय के साथ कार्यक्रम में शिक्षक अजय कुमार मंडल, अनुज कुमार मंडल, सुखलाल मुर्मू , ग्रामीणों एवं अभिभावकों भी काफी सहयोग मिल रहा है।
ब्लैकबोर्ड के लिए चॉक का भी खुद निर्माण कर रहे बच्चे
चॉक की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए प्रधानाध्यापक ने प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और चॉक बनाने के लिए सांचा उपलब्ध करा कर गांव में ही चैक निर्माण कार्य शुरू करवाया है। ग्रामीणों के साथ बच्चे भी चैक बनाना सीख रहे हैं। इसी प्रकार बच्चों के बैठने के लिए ताड़ के पत्तों से चटाई बनायी जा रही है। साफ सफाई के लिए झाड़ू की व्यवस्था भी स्थानीय स्तर पर बनाया जा रहा है। वहीं ब्लैक बोर्ड का निर्माण भी ग्रामीणों ने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मिट्टी, राख और पानी आदि से बने रंग से मिलाकर बनाया है।