संस्कार भारती की नवीन श्रृंखला ‘कला कुटुम्ब’ की पहली कड़ी में सपरिवार लाइव हुए कवि नीरज

City Post Live - Desk

सिटी पोस्ट लाइव : एक ऐसे समय में जब परिवार ‘संस्था’ में लगातार बिखराव की चुनौतियाँ आ रही हैं, संस्कार भारती की बिहार ईकाई ने एक नया प्रयोग ‘कला कुटुंब’ नामक ऑनलाइन सीरिज शुरू किया है। इसकी पहली कड़ी में शनिवार को सहरसा के हटियागाछी निवासी कवि प्रो. अरविन्द कुमार मिश्र ‘नीरज’ की तीन पीढ़ियों ने तीन अलग शहरों से विविध कलाओं की प्रस्तुति की। संस्कार भारती के फेसबुक पेज पर लाइव हुए इस कार्यक्रम में सहरसा से कवि नीरज ने अपनी तमाम रचनाओं के साथ साथ मैथिली गीता के एक अध्याय का भी पाठ किया।

वहीं फारबिसगंज से उनकी पुत्री श्वेता शाम्भवी ने संस्कार भारती का ध्येय गीत और राष्ट्रीय गीत “स्वाभिमान हो सदा स्वदेश के लिए”, गीत प्रस्तुत किया। दामाद विजय कुमार झा ने मिथिला वर्णन गीत प्रस्तुत किया तो वहीँ नाती कुशाग्र कश्यप ने भगवान् शिव का श्रृंगार गीत प्रस्तुत किया। ध्येय गीत को छोड़कर ये सभी रचनाएं कवि नीरज द्वारा ही लिखी गयी हैं। इन गीतों पर हारमोनियम का साथ स्वयं सुश्री शाम्भवी और कुशाग्र ने दिया। यहीं से नातिन श्रेया श्रेयसी ने गुरु वंदना पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को बांधे रखा।

दूसरी ओर शिलचर से उनकी छोटी पुत्री स्वाती शाकम्भरी ने स्वरचित मैथिली कविताएं “जीवन थिक नाटक” और “सम्पुट पाठ” की प्रस्तुति की। वहां से दामाद ऋतेश पाठक ने भी स्वरचित कविताओं “दीवारों के रोग” (हिन्दी) तथा “स्वतन्त्रता सेनानी एक्सप्रेस” (मैथिली) का पाठ किया। श्री नीरज की अर्धांगिनी व शिक्षिका अनुपमा मिश्रा ने अपने अनुभव साझा करते हुए हर एक परिवार को संस्कारशाला के रूप में विकसित करने की जरूरत पर बल दिया।

उनके पुत्र भानु भास्कर ने कवि नीरज द्वारा रचित परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाईं महाकाव्य के अंश प्रस्तुत किये। ज्ञानू ज्ञानेश्वर ने देशभक्ति गीत “धरा पर अनुपम भारत देश” का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन श्री नीरज के सबसे छोटे पुत्र सानू सागर ने कवितामय अंदाज में किया। उन्होंने “वीर प्रसूता भारत माता” और अन्य गीत भी प्रस्तुत किये। तकनीकी सहयोग संजय कुमार पोद्दार ने किया। संस्कार भारती बिहार प्रदेश के संगठन मंत्री वेद प्रकाश ने कहा कि सामान्यतः कोई भी कवि अथवा साहित्यकार अपने बच्चों को कला की इस दुनिया में लाना नहीं चाहते हैं।

फिर भी श्री नीरज ने अपने जीवन में अनवरत घोर संकट, अभावों और उपेक्षा के वाबजूद ना केवल अपनी रचनाधर्मिता को जीवित रखा है बल्कि अपनी कला साधना की लौ से पूरे परिवार को आज प्रज्वलित कर रखा है। यह आज के समय में प्रेरणादायी है। सभी कला साधकों को यह लौ जलाकर अपने पूरे परिवार को उत्कृष्ट संस्कारों से आभूषित करना चाहिए।

सहरसा से संकेत सिंह की रिपोर्ट

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