ये कैसा राजकीय सम्मान, शहीद के अंतिम संस्कार में पहुंचा सिर्फ एक डीएसपी
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में शहादत का सरकार की नजर में कोई मोल नहीं है. शहादत देनेवाले पुलिसकर्मियों के परिवार की किसी को चिंता नहीं. इसका एक नजारा बिहार के खगड़िया में अपराधियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थानेदार के अंतिम संस्कार के दौरान दिख गया. इस जबाज अधिकारी ने अपने जीवन का बलिदान दे दिया लेकिन उसके अंतिम दर्शन के लिए बिहार सरकार के किसी मंत्री , नेता और अधिकारी समय नहीं था. एक डीएसपी के अलावा इस शहीद के घरवालों से मिलाने कोई नहीं पहुंचा. इसको लेकर शहीद के अंतिम विदाई के दौरान लोगों का गुस्सा साफ़ दिखा.. एक तरफ जहां लोगों की आखों में आंसू थे, वहीं सरकारी उदासीनता को लेकर वो बेहद आक्रोशित थे.
आक्रोश इस बात को एलकार था कि गांव में अंतिम विदाई के दौरान एक डीएसपी को छोड़कर कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा. हालाकि बिहार सरकार के एक मंत्री मंत्री दिनेश चंद्र यादव भी गलती से जरुर पहुँच गए थे. लोगों का कहना था कि जिस विभाग का एक अधिकारी शहीद हो गया, उसी के लोग उसकी अंतिम विदाई में नहीं पहुंचे.बिहार के खगड़िया में अपराधियों के साथ हुई मुठभेड़ की घटना में शहीद हुए सब-इंस्पेक्टर आशीष कुमार सिंह का पार्थिव शरीर रविवार को उनके पैतृक गांव सहरसा जिले के सरोजा गावं शनिवार को पहुंचा था. गांव के सपूत और शहीद के शव को देखने के लिए ग्रामीणों का जनसैलाब उमड़ पड़ा.
उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो चूका है. लेकिन लोग सवाल उठा रहे हैं-पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अन्तिम संस्कार किये जाने की ये कैसी व्यवस्था है, जहाँ पुलिस महकमे का कोई अधिकारी ही नहीं पहुंचा? राज्य सरकार की तरफ से मंत्री दिनेश चंद्र यादव भी अन्तिम दर्शन करने सरोजा गांव पहुंचे थे. शहीद थानाध्यक्ष आशीष कुमार सिंह के गांव में मातम पसरा हुआ है. सहरसा के सरोजा गांव के हर शख्स की आंखे नम हैं. हर व्यतक्ति इस शहीद बेटे पर गौरवान्वित भी महसूस कर रहा है.
शहीद थानाध्यक्ष के परिवार में एक पुत्र-पुत्री और कैंसर पीड़ित मां हैं, जिसके इलाज के लिए अक्सर शहीद थानाध्यक्ष मुम्बई ले जाया करते थे. पिता गोपाल सिंह के सबसे छोटे बेटे शहीद थानाध्यक्ष के घर पर दुख व्य्क्ते करने लोगों का आना जारी है. लेकिन सबको यहीं चिंता सता रही है कि सहादत देनेवाले इस सिपाही के परिवार का लालन पालन कैसे होगा? लोग सवाल उठा रहे हैं कि ऐसे पुलिसवालों को जेवण बिमा सुरक्षा क्यों सरकार नहीं देती जिनकी जान हमेशा खतरे में रहती है? क्या दस लाख से उनके परिवार का जीवन कट जाएगा? कैंसर से पीड़ित माँ का ईलाज, दो बच्चों का लालन पालन ,पढ़ाई –लिखाई का काम इस मुवावजे की राशी से पूरा हो जाएगा?