जेब फूटी कौड़ी नहीं है साहब, बनारस में मेरी पत्नी और बच्चों की भी हालत खराब है

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जेब फूटी कौड़ी नहीं है साहब, बनारस में मेरी पत्नी और बच्चों की भी हालत खराब है
सिटी पोस्ट लाइव, रामगढ़: जेब फूटी कौड़ी नहीं है साहब, बनारस में मेरी पत्नी और बच्चों की भी हालत खराब है। अब तो हर हाल में मुझे वहां पहुंचना ही है। यही अल्फाज हैं रामगढ़ से पैदल रवाना होने वाले मजदूरों का। 5 लोगों का जत्था जब रामगढ़ से बनारस के लिए पैदल ही रवाना हुआ तो उन्हें देखने वाला हर व्यक्ति आवाक रह गया। इस जत्थे में वीरू, मनोज, लाहोरिया, शंकर और दिलीप शामिल थे। पीठ पर लता बैग कपड़ों से भरा था, लेकिन पेट पूरी तरीके से खाली ही था। इन लोगों ने बताया कि वे पिछले 1 महीने से रामगढ़ में बस स्टैंड के पास मां रेस्ट हाउस में रह रहे थे। रामगढ़ जिले में वे चादर और अन्य वस्तुएं फेरी लगाकर बेचते थे। आमदनी होती थी तो उससे वे बनारस में अपने परिवार का भी पेट पालते थे। लेकिन 6 दिनों में ही यह मालूम पड़ गया कि उनके पास अब पैदल वापस जाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। फोन पर जब वे अपने पत्नी और बच्चों से बात करते थे, तो खून के आंसू निकल आते थे। सबकी हालत खराब है, गाड़ियां तो चल नहीं रही है। यहां से लगभग 400 किलोमीटर की दूरी अब जितने समय में तय कर पाए, यह भगवान भरोसे है। शहर के सुभाष चौक पर लोहार टोला के कुछ युवकों ने इस जत्थे को रोका और हर व्यक्ति को खाने का तीन तीन पैकेट थमा दिया। उन लोगों ने कहा कि उन्हें रोकने का तो कोई हक नहीं है, लेकिन रास्ते में भी भूखे ना रहे इसलिए कम से कम भोजन का पैकेट लेते जाएं।

 

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