सिटी पोस्ट लाइव, रांची: मांडर विधायक बंधु तिर्की ने मंगलवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है। पत्र के माध्यम से उन्होंने सीएम को रांची व इसके आसपास के अंचलों में आदिवासी जमीन उनके पारंपरिक, धार्मिक स्थलों सरकारी भुईहरि जमीन की गैरकानूनी हस्तांतरण निर्माण एवं अतिक्रमण के जांच के संबंध में अवगत कराया है। तिर्की ने अपने पत्र में कहा है कि राज्य बनने के बाद रांची सहित राज्य के अन्य जिला मुख्यालयों शहरों में बड़े पैमाने पर रैयती आदिवासी जमीन सहित इनके पारंपरिक धार्मिक स्थलों के साथ-साथ सरकारी गैरमजरूआ बिहारी जमीन इत्यादि की आवेश जमाबंदी बंदोबस्ती कर कब्जा और अतिक्रमण के मामले आ रहे हैं। विशेषकर रांची और इससे सटे अंचलों से ऐसे कई मामले हमारे संज्ञान में और स्थानीय समाचार पत्रों में लगातार आ रहे हैं।
इन मामलों में नदी नाले तालाबों की जमीन पर अतिक्रमण से लेकर इनकी अवैध खरीद बिक्री और बंदोबस्ती तक के हैं। स्थानीय समाचार पत्रों में कई बार ऐसे मामलों का उजागर हुआ है, जिसे फर्जी डीड तैयार कर सरकारी गैरमजरूआ की अवैध जमाबंदी डीड और वॉल्यूम से छेड़छाड़ कर फर्जी डीड के सहारे दाखिल खारिज करवाकर वह दस्तावेज ऑनलाइन करवाकर एसएआर कोर्ट की फर्जी आदेश तैयार कर वह मुआवजा देने संबंधित फर्जी आदेश तैयार कर जमीन पर कब्जा किया जा रहा है। जिसमें बिल्डर भूमाफिया और राजस्व कर्मियों की अहम भूमिका है। इसके परिणाम स्वरूप शहर और इसके आसपास के सीधे और सरल और गरीब लोगों की जमीन छीन जा रही है। रांची के अलग-अलग मौजों में जमीन के फर्जी डीड तैयार करने वाले जालसाजओं की बात भी सामने आती है।
अधिकतर मामलों में आदिवासी जमीन के खतियान के आधार पर फर्जी डीड तैयार कर उसे मूल वॉल्यूम में इंट्री भी कर दी जाती है। एक षड्यंत्र के तहत बड़े पैमाने पर 1932 के आदिवासी खतियान की जमीन को सामान्य में बदलने का खेल हुआ है। वर्तमान समय में 1945- 46 के पहले की तिथि से फर्जी डीड तैयार करने का धंधा जोरों पर है। इस जालसाजी में फर्जी डीड पर 1945- 46 अर्थात जमीदारी प्रथा समाप्त होने के पहले की तिथि अंकित की जाती है
उल्लेखनीय है कि सरकार ने जमीनदारी प्रथा समाप्त होने के बाद मास्टर फार्म तैयार कराया था। जिसमें यह रिपोर्ट तैयार कराई गई थी कि मौजूदा स्थिति में कौनबसी जमीन किसकी और किस स्थिति में है, ताकि यह स्पष्ट हो कि जमीदारी प्रथा समाप्ति के बाद किस खाते व प्लॉट की जमीन किसकी है। 1945-46 से पहले के फर्जी डीड के सहारे तैयार दस्तावेज से यह दिखाया जा रहा है कि 1932 के सर्वे में जमीन आदिवासी खाते की थी जबकि जमींदार कोई और था। जमीनदारी प्रथा समाप्त होने के पहले आदिवासियों ने अपनी जमीन सरेंडर कर दी और फिर जमींदार ने सामान्य वर्ग को हुकुमनामे के माध्यम से लिख दिया अतः ऐसे मामलों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए धार्मिक, पारंपरिक भूमि के अवैध हस्तांतरण अतिक्रमण गैरमजरूआ भुईहरि जमीन पर हो रहे अवैध निर्माण नदी, नाले तालाबों की जमीन की अवैध खरीद बिक्री की उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।