महुआडांड प्रखंड रेगिस्तान में एक नखलिस्तान की तरह है
सिटी पोस्ट लाइव, पलामू: पलामू प्रमंडल के प्राकृतिक हुस्न से लबरेज गारू व महुआडांड के अधिसंख्य इलाके में नदियां हैं, जिनमें पानी है, लेकिन यहां के खेत सिंचाई से महरूम हैं। यहां पर सुंदर वन क्षेत्र हैं, लेकिन आज यहां से पलायन इतना जबरदस्त है कि जंगल में जाने से भी लोगों को डर लगता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस इलाके का महुआडांड प्रखंड रेगिस्तान में एक नखलिस्तान की तरह है, जहां के लोग उच्च शिक्षित हैं। एकमात्र शिक्षा के सहारे महुआडांड के लोग देश-विदेश तक फैल चुके हैं। जिस काम को एक धार्मिक संगठन के माध्यम से किया गया, वैसी ही काम यदि किया गया होता, तो आज यह क्षेत्र शैक्षणिक दृष्टि से केरल के समान होता। लेकिन, दुर्भाग्य है की इस क्षेत्र में लूट को ही बढ़ावा दिया गया है। विकास के पैसे को ठेकेदारों को माध्यम बनाकर लूटा गया है, जिससे यह क्षेत्र अविकसित है और गरीबी व अशिक्षा चरम पर है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उक्त परिस्थितियां ही उग्रवाद का मुख्य कारण बनी हैं। वहीं दूसरी ओर, सामंती मनोवृति भी उग्रवाद को पनपाने में सहायक रही है, जिसका शिकार कुछ दिनों तक तो गरीब होते रहे, लेकिन आज खुद सामंती प्रवृति वाले लोग ही इसका शिकार हो गये। नतीजा, गांवों से पलायन के रूप में सामने आया। ऐसा लगता है कि अब लातेहार जिले में सिर्फ एक ही अच्छी चीज बच गई है और वह है, यहां की प्राकृतिक सुंदरता, जिसे कोई भी मनिका से लेकर महुआडांड के बीच 160 किलोमीटर की दूरी तय कर देख सकता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, जंगल, नदियां, जंगली पशु व पक्षी इस क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। यदि जनप्रतिनिधियों ने ईमानदार पहल की होती, तो आज यह क्षेत्र ‘वर्ल्ड टूरिस्ट सेंटर’ के रूप में विकसित हो जाता। आज भारत में पर्यटन से सबसे कम आमदनी होती है। इस संसाधन का दोहन कर यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जाता, तो इस इलाके से बेरोजगारी काफी हद तक खत्म हो जाती। इस क्षेत्र में मूलभूत समस्या गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई, सड़क, बिजली व पानी की है। ज्ञात हो कि झारखंड का लातेहार ही एक ऐसा जिला है, जहां पर प्रकृति ने एक से बढ़ कर एक अनमोल उपहार दिया है। इसी इलाके में एक तातापानी है, जहां पर सालों भर गरम पानी रहता है। विश्वविख्यात ‘बेतला नेशनल पार्क’ भी इसी इलाके में है। कई झरने हैं व सुदर वन क्षेत्र हैं। लेकिन यह सब घने जंगलों में अवस्थित हैं, जहां पर कोई भी जाने की हिम्मत नहीं कर सकता है क्योंकि वहां पर उग्रवादियों का डेरा है। बिना उग्रवादियों की सहमति के कोई भी आदमी इस ओर रूख नहीं कर सकता है। जब उग्रवादियों का भय नहीं था, इस इलाके में तब देश ही नहीं, बल्कि विदेशें से भी सैलानियों का जमावड़ा लगा रहता था।