पांचवीं अनुसूची आदिवासियों के लिए किसी धर्मग्रंथ से कम नहीं : राज्यपाल
Read Also
सिटी पोस्ट लाइव, रांची : राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची का मूल प्रारूप ‘अनुसूचित जनजाति’ की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी एवं आर्थिक अस्तित्व की सुरक्षा का अति महत्वपूर्ण प्रावधान है। ये संविधान की ‘‘पांचवीं अनुसूची’’ भारत की अनुसूचित जनजातियों के लिये किसी ‘‘धर्मग्रंथ’’ से कम नहीं है। क्योंकि ‘अनुसूचित जनजाति’ की सुरक्षा और हित की तरफदारी इन्हीं कानूनों में निहित थी। राज्यपाल आज रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागारम डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान द्वारा भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची विषयक परिचर्चा पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रही थी। राज्यपाल ने कहा कि भारत का संविधान सबसे विस्तृत एवं अनूठा है। यह अन्य देषों के लिए आदर्ष तथा अनुकरणीय माना जाता है। भारत का संविधान उसकी सभ्यता, संस्कृति एवं शासन व्यवस्था का दर्पण है, यह जन-जन की आशाओं एवं आकांक्षाओं का एक पवित्र दस्तावेज है। हमारा संविधान अपने-आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए है। उन्होंने कहा कि किसी भी देश का संविधान उस देश की मानसिकता, इच्छा-आकांक्षाओं, तत्कालीन और दीर्घकालीन जरूरतों को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है। क्योंकि संविधान ही राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक और परिचायक होता है। भारत का संविधान उसकी सभ्यता,संस्कृति एवं शासन व्यवस्था का दर्पण है। यह जन-जन की आशाओं एवं आकांक्षाओं का एक पवित्र दस्तावेज है। राज्यपाल ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। विष्व के सबसे विषाल संविधान के अन्तर्गत निहित धारा और अनुच्छेद के साथ-साथ समय-समय पर हुए संसोधन भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को लोकतंत्र के बारे में जानकारी प्राचीन काल से है। वे इस पृथ्वी के सबसे ज़्यादा लोकतांत्रिक लोग हैं। हमारे लोग सुरक्षा के पर्याप्त साधन नहीं, सुरक्षा चाहते हैं। ये लोग कोई विशेष सुरक्षा नहीं चाहते, हम चाहते हैं कि हमें भी अन्य भारतीय की तरह समझा जाये।’’ इनकी भाषा, संस्कृति, परम्पराओं एवं जल, जंगल और ज़मीन पर आधारित उनकी अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये यह कानून ज़रूरी भी था। इस कानून में सिर्फ इतना ही नहीं वरन आदिवासियों की विशिष्ट सामाजिक एवं पारम्परिक व्यवस्था की रक्षा के लिये सशक्त ‘‘जनजातीय प्रशासनिक तंत्र’’ को भी मान्यता दी गई थी। राज्यपाल ने कहा कि पांचवी अनुसूची की अवधारणा आदिवासी जनजीवन और उनकी जीवन शैली की गहराइयों एवं उनकी मूल भावना के साथ जुड़ी हुई है। इसे हल्के ढंग से समझते हुए इसकी अवहेलना करना कई दूरगामी प्रतिकूल प्रभावों को जन्म दे सकता है।
इस मौके पर मुख्य वक्ता और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने पांचवीं अनुसूची पर विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए कहा कि अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के दौर से शुरू हुआ था, अंग्रेजों ने देखा कि देश के कुछ ऐसे हिस्से है,जहां पर विकास की गति नहीं पहुंच पा रही है और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए इस दिशा में कार्य किया गया था। जिसमें समय के साथ बदलाव आते गये। वर्तमान में इस अनुसूची के माध्यम से उन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के हितों की रक्षा की जा रही है। उनके विकास के लिए विशेष रूप से कई अधिकार दिये गये है। इस दौरान व्याख्यान मेंउपस्थित लोगों ने बिन्दुवार अधिकारों की जानकारी दी। इसके पूर्व प्रज्ज्वलित कर विधिवत रूप से की गयी। अतिथियों का स्वागत कल्याण सचिव हिमानी पांडेय ने किया। कार्यक्रम में रांची विश्वविद्यालय के कुलपति, श्यामा प्रसाद विश्वविद्यालय के कुलपति के अलावा कई जिलों के उपायुक्त और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
Comments are closed.