केंद्रीय राजनीति के साथ झारखंड में भी अचूक निशाना साधेंगे अर्जुन

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केंद्रीय राजनीति के साथ झारखंड में भी अचूक निशाना साधेंगे अर्जुन

सिटी पोस्ट लाइव, रांची: जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सोमवार को दिल्ली के शास्त्री भवन मंत्रालय में अपना पदभार संभाल लिया। झारखंड में मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबी पारी खेल चुके और नरेंद्र मोदी कैबिनेट के इकलौते आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा अब केंद्रीय राजनीति के साथ ही झारखंड में भी अचूक निशाना साधेंगे। विपक्षी महागठबंधन के साथ ही कुछ अपनों का चक्रव्यूह भेदकर दिल्ली दरबार पहुंचे मुंडा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में जगह देकर भाजपा ने झारखंड में एकसाथ कई मोर्चों को साधने का प्रयास किया है।

मोदी सरकार 2 में अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए गठित जनजातीय मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा को देकर भाजपा ने जनजातीय समाज को सीधा संदेश दिया है कि आदिवासियों का कल्याण उसकी प्राथमिकता है। पिछली सरकार में झारखंड के सुदर्शन भगत और जयंत सिन्हा राज्यमंत्री थे, जबकि इसबार अर्जुन मुंडा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। लोकसभा चुनाव में जनजातीय सीटों पर झारखंड में एनडीए (भाजपा-आजसू) और विपक्षी गठबंधन में कांटे की टक्कर हुई। 5 जनजातीय सीटों में 3 भाजपा के खाते में गईं और दो सीटें विपक्षी गठबंधन के। झामुमो के दिशोम गुरु शिबू सोरेन तो जरूर हार गये लेकिन अर्जुन मुंडा भी बड़ी मुश्किल से महज 1,445 वोटों से जीते। इसके साथ ही हाशिये पर आये मुंडा के लगभग साढ़े चार साल के राजनीतिक वनवास का समापन हुआ। इसे झारखंड की राजनीति में भाजपा के लिए यह एक नये युग की शुरुआत कहा जा रहा है। छह महीने बाद नवंबर-दिसंबर में झारखंड में विधानसभा चुनाव है। जाहिर है जनजातीय सीटों पर आगे भी कुछ ऐसे ही आसार बन सकते हैं। मुंडा को मंत्री बनाने से आदिवासी समाज के बीच बड़ा संदेश गया है। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव की 28 जनजातीय सीटों पर देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही गैर आदिवासी सीटों पर भी मुंडा का प्रभाव दिखेगा। हालांकि, विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से माना जा रहा था कि इसबार मोदी की कैबिनेट में संथाल को प्रतिनिधित्व जरूर मिलेगा। झामुमो के शीर्ष नेता दिशोम गुरु शिबू सोरेन को हराने वाले सुनील सोरेन और जीत की हैट्रिक लगाने वाले निशिकांत दुबे के नाम की चर्चा अंतिम समय तक थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जबकि मुख्यमंत्री रघुवर दास का विशेष फोकस संथाल के विकास पर है। मुंडा दमदार शख्सियत के साथ ही लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता हैं। जनजातीय समाज का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। झारखंड की 3.29 करोड़ आबादी है। इनमें 86.45 लाख जनजातीय समाज के लोग हैं। यानी राज्य में अनुसूचित जनजातियों की संख्या कुल आबादी की 26.21 फीसदी है। मुंडा के मंत्री बनने से झारखंड की आम जनता की उम्मीद तो बढ़ी ही है, लेकिन अनुसूचित जनजातीय समुदाय की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। अर्जुन ने अनुसूचित जनजातियों के दर्द को बहुत नजदीक से देखा है। परखा है और महसूस किया है। इसी को देखते हुए झारखंड बनने के बाद उन्हें कल्याण मंत्री बनाया गया था। अब मोदी सरकार में भी उन्हें जनजातीय मंत्रालय ही दिया गया। जाहिर है मंच बदला, लेकिन किरदार नहीं। हां, दायरा जरूर बड़ा हो गया। अपनी नई और युवा सोच के लिए जाने जानेवाले अर्जुन मुंडा पर देशभर के जनजातीय समाज के कल्याण की बड़ी जवाबदेही है। झारखंड में मंत्री और मुख्यमंत्री रहते हुए भी उनके प्रयोगों को देशभर में सराहा गया था। अब जनजातीय मंत्रालय में भी कुछ ऐसे ही प्रयोग देखने को मिलेंगे। जनजातीय समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए काम करने वाले मुंडा ने ही देश में पहली बार झारखंड में आदिवासी युवक-युवतियों के हौसलों को उड़ान देने के लिए पायलट प्रशिक्षण योजना शुरू की थी। स्वरोजगार देने के लिए आदिवासी युवाओं के समूह को बस देने की योजना भी शुरू की थी। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने झारखंड में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना शुरू की थी। बेटियों की शादी की इस योजना की पूरे देश में सराहना हुई थी और कई जगह लागू भी किया गया। अर्जुन मुंडा कहते हैं कि यह उनके लिए सौभाग्य की बात है कि देश की सेवा का अवसर मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनपर जो भरोसा जताया है, उस पर खरा उतरने का वे प्रयास करेंगे।

1995 में झामुमो से शुरू की थी राजनीतिक पारी, तीन बार सीएम रहे

अर्जुन मुंडा ने राजनीतिक पारी की शुरूआत 1995 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से की। बतौर भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी 2000 और 2005 के चुनावों में उन्होंने भाजपा के टिकट पर खरसावां से जीत हासिल की। वर्ष 2000 में अलग राज्य का गठन होने के बाद अर्जुन मुंडा बाबूलाल मरांडी के कैबिनेट में समाज कल्याण मंत्री बनाये गये। वर्ष 2003 में विरोध के कारण बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा और राज्य की कमान 18 मार्च 2003 को अर्जुन मुंडा को पहली बार सौंपी गई। इसके बाद 12 मार्च 2005 को दोबारा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन निर्दलियों से समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण उन्हें 14 मार्च 2006 को त्यागपत्र देना पड़ा। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। लगभग दो लाख मतों के अंतर से उन्होंने जीत हासिल की। 11 सितम्बर 2010 को वे तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने लेकिन 2014 में भाग्य ने साथ नहीं दिया और वे विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर सीट से झामुमो के दशरथ गगराई से हार गये।

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