महाधिवक्ता राज्य हित के काम करने में असफल : सरयू राय
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड के सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने कहा कि राज्य के महाधिवक्ता अजित कुमार राज्यहित के मामलों को उठाने में असफल हुए है और प्रदेश के मुख्य कानूनी सलाहकार की हैसियत से अपने कामों को सही तरीके से नहीं कर पाये । झारखंड राज्य बार काउंसिल के सचिव राजेश पांडेय को 26 दिसंबर को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि बार काउंसिल की महत्वपूर्ण बैठक 23 नवंबर को हुई थी। इसमें महाधिवक्ता से संबधित कुछ अखबारों में छपी खबरों पर चर्चा की गयी। रांची के एक बड़े अखबार में 18 दिसंबर को महाधिवक्ता और बार काउंसिल के एक्स ऑफिसियो सदस्य के रूप में कुछ बातें लिखी गयी थीं। बैठक में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था, जिसमें मेरे बारे में कुछ आपत्तिजनक फैसले लिये गये थे। बार काउंसिल के सदस्यों को मेरे विचारों के प्रति न्याय के दृष्टिकोण से सच्चाई पर आधारित फैसला लेना चाहिए था, पर लिया गया प्रस्ताव मेरे लिए दुर्भावना से प्रेरित लगता है। जो बातें मैंने कही थी, उसके विपरीत फैसले लिये गये। मंत्री राय ने पत्र में बार काउंसिल से कुछ सवाल किया है। पूछा, बार काउंसिल के अध्यक्ष ने महाधिवक्ता के कंडक्ट को लेकर कैसे बैठक बुलाई। इसमें दोनों व्यक्ति एक ही थे। उन्होंने अपने दूसरे सवाल में कहा है कि क्या बैठक में मौजूद सदस्यों के सामने बैठक से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये गये थे। सिर्फ महाधिवक्ता द्वारा कही गयी बातों को ही जारी किया गया था। मैं यह कहना चाहता हूं कि महाधिवक्ता की ओर से एकतरफा बातें बैठक में रखी गयीं। मैं कहना चाहता हूं कि 23 नवंबर की बैठक में महाधिवक्ता की ओर से रखी गयी बातों पर काउंसिल के सदस्यों द्वारा सहमति दी गयी। ऐसे संवैधानिक और प्रशासनिक तंत्र में कई बार न्यायिक हितों का टकराव होता है। मैं एक कैबिनेट स्तर का मंत्री हूं। मुझे लगता है कि मुख्य कानूनी सलाहकार की भूमिका में महाधिवक्ता ने कोई काम नहीं किया है। इससे झारखंड सरकार और यहां के नागरिकों को काफी नुकसान हो रहा है। मंत्री राय ने कहा कि मैंने अपनी बातें कैबिनेट और मुख्यमंत्री के समक्ष रखी हैं, जिनका प्रकाशन भी कुछ अखबारों में हुआ है। ऐसे में कैबिनेट में मंत्री रहते हुए मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री तत्काल महाधिवक्ता को उनके पद से मुक्त करें। एक मामले में महाधिवक्ता के गलत हलफनामे से सरकार की छवि धूमिल हुई है। मेरे बारे में जानबूझ कर महाधिवक्ता ने बार काउंसिल की बैठक में प्रस्ताव पारित करा कर मेरी छवि को दागदार करने की कोशिश की है। इस बैठक की सूचना न तो बार काउंसिल के अध्यक्ष और न ही महाधिवक्ता ने किसी समाचार पत्र के जरिये दी थी। महाधिवक्ता की नियुक्ति मामले में भी कई बातों में विवाद देखने को मिला। समाचार पत्रों में जितनी भी बातें आयीं, वह मेरे द्वारा मुख्यमंत्री को 24.10.2018, 28.10.2018 और 20.11.2018 को लिखे पत्र के बाद आयी हैं। महाधिवक्ता ने अपने स्तर से समाचार पत्रों में आधिकारिक तौर पर बयान भी दिया। झारखंड हाइकोर्ट में दायर एलपीए 315 ऑफ 2018ए एलपीए 2017/2012 और एलपीए 236/2012 में महाधिवक्ता का व्यवहार न्यायोचित नहीं था। यहां काफी दुखदायी स्थिति है कि महाधिवक्ता ने सिर्फ सरकार की बात हाइकोर्ट में रखने में और कोर्ट की बात सरकार तक पहुंचाने में साक्ष्य को छुपाया। उन्होंने राज्य बार काउंसिल को भी गुमराह करने की कोशिश की।
बार काउंसिल ने दुर्भावना से ग्रसित होकर फैसला लिया
20.11.2018 को मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में मैंने पूरे मामले को झारखंड हाइकोर्ट के न्यायाधीश के समक्ष रखने की बातें कही थीं, ताकि उसका त्वरित निबटारा हो सके। इसके लिए मैंने बार काउंसिल की विशेष बैठक बुलाने की बातें भी कही थीं। मुझे खुशी होती जब बार काउंसिल की तरफ से मुझे अपना पक्ष रखने का मौका मिलता, पर मेरे खिलाफ एकपक्षीय निर्णय लिया गया। बार काउंसिल की तरफ से दुर्भावना से ग्रसित फैसला लिया गया, जो सच्चाई से परे है और न्यायालय में चल रहे मुकदमे पर मानहानी का मामला भी बन सकता है। मैं यह भी नहीं जानता कि पूरे प्रकरण से राजनीतिक दल के लोग और तत्पर न्यायाधीश भी अवगत हैं अथवा नहीं। बार काउंसिल की बैठक में महाधिवक्ता ने जो बातें कही हैं, उसमें मुझे लगता है कि बार काउंसिल की तरफ से महाधिवक्ता से स्पष्टीकरण भी लिया गया अथवा नहीं। बार काउंसिल ने महाधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत गलत जानकारी के बारे में भी नहीं पूछा। राजनीतिक दल और राजनीति से प्रेरित बातें स्पष्ट परिलक्षित होती हैं।
बार काउंसिल को दलगत बयानबाजी का विरोध करना चाहिए
बार काउंसिल के कुछ ऐेसे भी सदस्य हैं, जिनका मानना है कि बार और पहले कानूनी अफसर, जो एक संवैधानिक पद को धारित करते हैं, उन्हें गलत जानकारी देने पर नहीं बख्शना चाहिए। हाल में कुछ राजनीतिक दल के नेताओं ने भी बार काउंसिल के खिलाफ बयान दिये हैं। ऐसे बयानों पर भी काउंसिल को कार्रवाई करनी चाहिए। पूरे बार काउंसिल को ऐसे दलगत बयानबाजी का एक स्वर से विरोध करना चाहिए और नेताओं से माफी मांगने की बात करनी चाहिए, पर महाधिवक्ता और बार काउंसिल के अध्यक्ष ने सदस्यों को गुमराह कर अपनी बातें मनवायीं। बार काउंसिल की तरफ से न्यायाधीश और अधिवक्ताओं के एक ही समुदाय से आने की वजह से सदस्यों के प्रति संवेदनशीलता और उनके अधिकारों को संरक्षित नहीं किया गया। गलतबयानी की निंदा बार से होनी चाहिए। राजनीतिक दलों के हमले पर बार के अध्यक्ष को आगे आना चाहिए और लीगल नोटिस भी भेजना चाहिए। इन सब बातों को बैठक के दौरान छिपाया गया। काउसिंल को नोटिस जारी कर राजनीतिक दलों से माफी मांगने की कार्रवाई करनी चाहिए।
बार काउंसिल की बैठक में पारित प्रस्ताव को हटाया जाये
पत्र में मंत्री सरयू राय ने लिखा है कि मैं यह गुजारिश करना चाहता हूं कि बार काउंसिल की 23.11.2018 को हुई बैठक में पारित प्रस्ताव को तत्काल हटाया जाये। बार काउंसिल की पूरी बैठक बुला कर मेरे पक्ष में रखी गयी बातों को हटाया जाये। इस बैठक में बार काउंसिल के अध्यक्ष और महाधिवक्ता को अलग रखा जाये।