उत्तर-प्रदेश में छड़ी जातियों को लुभाने का योगी सरकार का मास्टरस्ट्रोक फेल
सिटी पोस्ट लाइव : पिछड़ी जातियों को लुभाने को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का मास्टरस्ट्रोक मोदी सरकार को रास नहीं आ रहा है. उत्तर प्रदेश में 17 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के योगी सरकार के फैसले पर केंद्र सरकार ने तगड़ा ब्रेक लगा दिया है. राज्यसभा में मंगलवार को बहुजन समाज पार्टी के सांसद सतीश चंद्र मिश्र द्वारा इस मुद्दे को उठाये जाने पर केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने ये कहकर योगी सरकार को तगड़ा झटका दे दिया कि राज्य सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए था. किसी भी समुदाय को एक वर्ग से हटाकर दूसरे वर्ग में शामिल करने का अधिकार केवल संसद को है. पहले भी इसी तरह के प्रस्ताव संसद को भेजे गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई.”
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पिछले हफ़्ते ही राज्य की सत्रह पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने संबंधी फ़ैसला किया गया था.सरकार की ओर से इस बारे में शासनादेश भी जारी कर दिया गया था और ज़िलाधिकारियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने संबंधी आदेश भी दे दिए गए थे.लेकिन अब केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद योगी सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल खड़ा हो गया है. बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती तो इसे असंवैधानिक बता ही रही हैं साथ ही केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने भी मायावती के आरोपों को जायज ठहरा दिया है.अब इस मामले में राज्य सरकार का कोई प्रतिनिधि या बीजेपी नेता कुछ भी कहने से बच रहे हैं. केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत का कहना है कि यदि यूपी सरकार इन जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए एक प्रक्रिया है. राज्य सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भेजेगी तो हम उस पर विचार करेंगे, लेकिन अभी जो आदेश जारी किया है वह संवैधानिक नहीं है.” अब केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद योगी सरकार द्वारा अपने इस फ़ैसले को वापस लेने की संभावना बढ़ गई है.
कानून के जानकारों का भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत संसद की मंज़ूरी से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव किया जा सकता है. यहां तक कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है. ये काम सिर्फ संसद कर सकती है.
राज्य सरकार ने जिन सत्रह अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फ़ैसला किया था, उनमें से ज़्यादातर की सामाजिक स्थिति दलितों जैसी ही है.दूसरी ओर, संख्या के आधार पर देखें तो इन सत्रह अति पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है. इन जातियों में निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, मांझी, तुरहा, गौड़ जैसी जातियां हैं.
इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने संबंधी कोशिश पिछले काफ़ी समय से चली आ रही है. मुलायम सिंह के अलावा मायावती ने भी सरकार में रहते हुए ऐसा किया था और अखिलेश यादव के नेतृत्व में पिछली सपा सरकार ने तो मौजूदा सरकार की तरह बाक़ायदा आदेश भी जारी कर दिया था. लेकिन उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी.
दरअसल, राज्य की बीजेपी सरकार की इस कोशिश को आरक्षण के बहाने सामाजिक समीकरणों को बदलने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. आने वाले दिनों में 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं.मन जा रहा है कि इसी चुनाव को ध्यान में रखते हुए सारी क़वायद की गई है. हालांकि तमाम पिछड़ी जातियों को बीजेपी अपने पक्ष में कर चुकी है लेकिन अभी तक ये जातियां अपनी अपनी जाति के नेताओं के साथ ही खड़ी हैं. इस मास्टरस्ट्रोक के जरिये योगी सरकार ने ईन सभी जातियों को साधने की कोशिश की थी लेकिन ज्यादा जल्दबाजी से काम बिगड़ गया है और योगी और मोदी सरकार आपस में ही टकरा गई हैं.