तेजस्वी यादव को हीं क्यों मिली राजद की कमान, लालू ने किताब में किया है खुलासा
सिटी पोस्ट लाइवः लालू यादव को लेकर एक किताब आयी है गोपालगंज टू रायसीना माई पाॅलिटिकल जर्नी। लालू यादव को जानना, सुनना जितना दिलचस्प होता रहा है उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प हैं किताबी किरदार वाले लालू। किताब वाला लालू ओरिजिनल से थोड़ा अलग है हांलाकि किताब ओरिजनल लालू की ओरिजनल कहानी बतायी जा रही है लेकिन फिर भी न जाने क्यों मुझे किताब वाले लालू अलग लगते हैं। किताब पढ़ने लायक है और अगर लालू में दिलचस्पी हो तो पढ़ना जरूरी हो जाता है। अब मुद्दे पर आते हैं। जब मैं यह कह रहा हूं कि किताब ओरिजिनल लालू और किताब वाले लालू में अंतर है तो मुझे यह सफाई देनी पड़ेगी कि लालू का किताबी किरदार ओरिजनल से थोड़ा अलग है।
दरअसल लालू यादव का तेवर और मिजाज हमेशा आक्रामक रहा है। सियासी दुश्मनों पर हमला करने वाले लालू यादव अपनी पार्टी के नेताओं और पत्रकारों को भी डांट-डपट करने के लिए जाने जाते हैं। लालू आक्रामक रहे, हंसोड़ रहे लेकिन लालू के तेवर में कभी इतनी नरमी नहीं देखी गयी कि वे सफाई पेश करें लेकिन किताब वाले लालू सफाई पेश करते नजर आते हैं। किताब जिस लालू से आपका परिचय कराता है वो ओरिजनल से इसलिए भी अलग लगते हैं क्योंकि किताब में ऐसी कई चीजों को लेकर सफाई पेश की गयी है जिस पर लालू ने पहले कभी सफाई नहीं दी। किताब लालू पर आधारित है इसलिए बात लालू की हीं करेंगे और लालू की किताब से लालू को जानने की कोशिश करेंगे लेकिन बात पहले तेजस्वी यादव की। लालू की किताब में तेजस्वी की कहानी भी है और लालू किताब से लालू पर बात करने से पहले तेजस्वी यादव की बात इसलिए क्योंकि किताब में लालू ने तेजस्वी के लिए जो लिखा है उससे बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति-परिस्थिति को समझना आसान हो जाता है। यह समझना आसान हो जाता है कि तेजस्वी यादव की राजद में क्या हैसियत है, कैसे राजद में तेजस्वी का वन मैन शो हीं अब चलेगा और क्यों लालू ने अपना राजनीतिक विरासत तेजस्वी को हीं चुना जबकि मीसा और तेजप्रताप यादव के रूप में उनके पास और विकल्प भी थे।
मीसा भारती तो घर में सबसे बड़ी भी हैं, राजनीतिक अनुभव तेजस्वी से कहीं ज्यादा है और तेजस्वी से पहले से राजनीतिक जीवन मे हैं और लालू की सान्निध्य में उन्होंने तेजस्वी से ज्यादा सियासत के दांव पेंचो को सीखा है बावजूद इसके क्यों तेजस्वी हीं लालू के राजनीतिक वारिस बने और धीरे-धीरे आरजेडी हीं नहीं बल्कि बिहार के एक स्थापित नेता बन गये। क्यों अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं की भरमार वाली राजद में तेजस्वी जैसे युवा और अपरिपक्व नेता सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार कर लिये गये?। इन सारे सवालों का कुल मिलाकर जवाब यही है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तेजस्वी पर लालू ने मुहर लगायी है लेकिन किताब के जरिए भी इन सवालों के जवाब तलाशे जा सकते हैं।
लालू की किताब में एक अध्याय है जिसका शीर्षक है ‘राजनीति के उभरते सितारे’। इस अध्याय का नायक लालू ने तेजस्वी यादव को बनाया है। लालू ने इसमें तेजप्रताप और मीसा भारती का भी जिक्र किया है लेकिन पूरा अध्याय तेजस्वी के तारीफों के आसपास समेट कर लालू ने यह बता दिया है कि तेजस्वी हीं उनके राजनीतिक वारिस क्यों बने। किताब में लालू ने तेजस्वी को ईश्वरीय गुणों वाला लड़का बताया है। तेजस्वी यादव को लेकर लालू ने अपनी किताब में लिखा है-‘तेजस्वी हमेशा से हीं आज्ञाकारी और विनम्र बच्चा रहा है। जब वह क्रिकेट खेल रहा था तो शायद हीं कभी उसने मुझसे पैसे मांगे होंगे। वह पैसे भी कम हीं खर्च करता है। उसकी जीवनशैली सरल है। उसने ट्रेनों, बसों में यात्रा की और यहां तक कि कभी हवाई जहाज से यात्रा की तो वह भी अपनी कमाई से। न तो राबड़ी और न हीं मुझे याद है कि उसने कभी भी यात्रा के लिए टिकट खरीदने या फिर अपनी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए पैसे मांगे हों। उसने क्रिकेट से मिले पैसों से हीं अपने हीं खर्चों का प्रबंधन किया था। वह एक विनम्र और अच्छा क्रिकेटर रहा है।’ लालू नीतीश पर तेजस्वी के हमलों से भी गदगद नजर आते हैं और इस खुशी को बयां करने के लिए लालू एक तारीख का जिक्र करते हैं। लालू लिखते हैं-‘28 जुलाई 2017 को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के विश्वास प्रस्ताव का विरोध करते हुए जिस तरह से अपनी बात रखी उससे उनकी राजनीतिक प्रतिभा और दृष्टि का संकेत मिलता है।’ बतौर मंत्री तेजस्वी के कामकाज से भी लालू बेहद खुश रहे हैं।
लालू लिखते हैं-‘लोक निर्माण विभाग के म ंत्री के रूप में तेजस्वी ने बिहार में विभाग से संबंधित कार्यों में तेजी लाने का जो काम किया, उसकी केन्द्रीय मंत्रियों ने भी प्रशंसा की। सड़क परिवहन राजमार्गों के केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और फिर रेल मंत्री, सुरेश प्रभु के साथ उसकी कुछ बैठकें हुई। भाजपा के होने के बावजूद मैंने गडकरी से तेजस्वी को प्रशासन और प्रशासन की कला में मार्गदर्शित करने के लिए अनुरोध किया था। सुरेश प्रभु ने भी तेजस्वी की प्रशंसा की जो दीघा-पटना ट्रैक के बिहार सरकार को स्थानांतरण के सिलसिले में सुरेश प्रभु से मिलने गये थे।’ लालू ने लिखा है-‘बिहार की राजनीति में वह एक उभरते सितारे हैं। वह एक ईश्वरीय प्रतिभा वाला बच्चा है। उनके अंदर नेतृत्व की प्रतिभा है। पार्टी के मेरे वरिष्ठ सहयोगियों ने उन्हें अगली पीढ़ी के नेता के रूप में स्वीकार कर लिया है। वह जनता के साथ प्रभावी तरीके से संवाद करने और पार्टी कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करने में सक्षम है।’ जाहिर लालू ने अपनी किताब में तेजस्वी यादव को लेकर लालू ने जो लिखा है उससे स्पष्ट है कि तेजस्वी लालू के वारिस हीं नहीं उनके नायक भी हैं। किताब के जरिए लालू ने यह अभिव्यक्त किया है कि एक पिता के तौर पर लालू ने तेजस्वी में क्या देखा है, उनके लिए क्या प्रयास किये हैं और सियासत में उनको मजबूती के साथ स्थापित करने के लिए अपने दुश्मनों से भी सियासी दांव-पेंच सीखने सीख दी है।
तेजस्वी यादव आज राजद के सर्वमान्य नेता बन गये हैं। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह एलान कर दिया गया है कि न सिर्फ तेजस्वी यादव पार्टी के एकमात्र नेता होंगे बल्कि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी होंगे’। अब यह सवाल हीं बेमानी हो जाता है कि आखिर राजद तेजस्वी के हवाले हीं क्यों कर दिया गया या फिर आरजेडी में अब वन मैन शो हीं क्यों चलेगा क्योंकि लालू अपनी किताब में इसका जवाब दे चुके हैं। तेजस्वी में उनको संभावनाएं नजर आती है और तेजस्वी उन्हें ईश्वरीय प्रतिभा वाले बच्चे लगते हैं जाहिर है यह भरोसा तेजस्वी को अपनी विरासत सौंपने के लिए पर्याप्त कारण है और लालू ने यही किया है। बहरहाल लालू की किताब से बस आज इतना हीं लेकिन लालू कि किताब में बहुत कुछ है जिसपर बात हो सकती है। तथ्यों की सत्यता की पुष्टि हम नहीं करते लेकिन किताबा लालू की है इसलिए उन कहानियों को सामने लाना जरूरी है और हम ऐसा करते रहेंगे।