सिटी पोस्ट लाइव :नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद बिहार में बीजेपी एकेली हो गई है.एक तरफ 7 दलों के महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार हैं तो दूसरी तरफ अकेली बीजेपी है. बीजेपी के सामने बिहार महागठबंधन में शामिल 7 दलों के साथ अकेले लड़ाई लड़ने की बड़ी चुनौती है.बीजेपी को एक ऐसा चेहरा चाहिए जो वर्तमान महागठबंधन की सरकार को करारा जवाब दे सके. संगठन के काम को भी सुचारू ढंग से बढ़ाते हुए आगामी चुनाव में बीजेपी को बढ़त दिला सके. बीजेपी दशहरा के बाद और दीपावली से पहले नीतीश की काट के लिए ‘D-M प्लान’ पर काम कर रही है.इसके तहत नीतीश कुमार वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए दलित या महादलित कार्यकर्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल सकती है.
वर्तमान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. बताया जा रहा है कि दशहरा के बाद और दीपावली के पहले बिहार बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है. बिहार में एक बार फिर लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी एक साथ आ चुकी है. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को पता है कि बिहार में उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व को ऐसे चेहरे की तलाश है जो जातीय समीकरण को भी साध सके और महागठबंधन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए संगठन के कार्य और कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतर सके.
बीजेपी ने 2024 से 2025 की तैयारी के मद्देनजर ही बिहार विधानसभा में भूमिहार जाति से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष बनाया तो कुशवाहा जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को बिहार विधान परिषद में भाजपा विधान परिषद दल के नेता के तौर पर खड़ा कर दिया.बीजेपी को अपने वोट प्रतिशत में वृद्धि करने के साथ अन्य दलों को भी साथ लाना होगा. बीजेपी के सूत्र के अनुसार बीजेपी यह मानकर चल रही है कि आरजेडी के मुस्लिम-यादव गठजोड़ को तोड़ना मुश्किल है. लेफ्ट पार्टी के अपने वोटर होते हैं जो हर सूरत में लेफ्ट को ही वोट करते हैं. कांग्रेस का अपना कोई जनाधार नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जनाधार लगातार गिर रहा है और महागठबंधन के साथ जब से उन्होंने सरकार बनाई है, तब से वह जनता का भी विश्वास खो चुके हैं. ऐसे में जनता दल यूनाइटेड के जो वोट बैंक हैं, उसे तोड़ना आसान है. बीजेपी के सूत्र ने बताया इसी योजना के तहत सम्राट चौधरी को विधान परिषद में बीजेपी विधायक दल का नेता बनाया गया है.
बीजेपी के सूत्र ने बताया कि इस बार प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर युवा चेहरा उभर कर आएगा. बिहार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष ना सिर्फ युवा होगा बल्कि वह पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से भी होगा. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर इस बार कोई गैर यादव ही विराजमान होगा. नवनियुक्त बिहार बीजेपी प्रभारी विनोद तावड़े के पहले बिहार प्रभारी के तौर पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बिहार के संगठन का काम बढ़ा रहे थे और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर संजय जयसवाल के पहले नित्यानंद राय ने बिहार बीजेपी की कमान संभाल रखी थी. उनके केंद्रीय मंत्री बनने के बाद तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने डॉ संजय जयसवाल को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किया था.
इसी महीने दो दिवसीय बिहार दौरे के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के सीमांचल इलाके में चुनावी शंखनाद फूंक चुके हैं. सीमांचल के इलाके में अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज जिले आते हैं। प्रदीप सिंह सीमांचल के इसी 4 लोकसभा क्षेत्र के अररिया से सांसद हैं और वह अत्यंत पिछड़ी जाति से आते हैं. हालांकि प्रदीप सिंह का नाम बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सीमांचल पर फोकस कर बीजेपी पूरे बिहार को साध सकती है.
पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक बनने वाले डॉक्टर संजीव चौरसिया का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर राजनीतिक गलियारे में तैर रहा है. संजीव चौरसिया संगठन के साथ-साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी महत्वपूर्ण पद पर कार्य कर चुके हैं. संजीव चौरसिया के पिता गंगा प्रसाद चौरसिया पुराने जनसंघी है. एक समय था जब पटना स्थित गंगा प्रसाद चौरसिया के आवास में बीजेपी के कद्दावर नेताओं का जमावड़ा लगा करता था. अटल बिहारी वाजपेयी समेत बीजेपी के कई बड़े नेता पटना आने पर गंगा प्रसाद चौरसिया के घर ही ठहरा करते थे. बचपन से ही संगठन का कार्य को समझने वाले संजीव चौरसिया एक बेहतर प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं.
वैश्य समुदाय से आने वाले संजीव चौरसिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना अन्य जाति के नेताओं को नाराज कर सकता है क्योंकि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जयसवाल भी वैश्य समुदाय से आते हैं. ऐसे में वैश्य समुदाय से ही आने वाले संजीव चौरसिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो पार्टी के भीतर नाराजगी बढ़ सकती है. बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि इस स्थिति में पार्टी की ओर से संजीव चौरसिया को बिहार विधानसभा में सचेतक के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है. हालांकि सूत्रों ने यह भी बताया कि सचेतक के तौर पर संजय सरावगी के नाम का भी चर्चा चल रहा है.
भारतीय जनता पार्टी के सूत्र ने यह भी जानकारी दी कि इस बार बीजेपी को अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए किसी दल के वोट बैंक को तोड़ना बेहद जरूरी है. ऐसे में जनता का विश्वास खो चुके नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड का वोट बैंक तोड़ना बीजेपी के लिए काफी आसान हो सकता है. सूत्र ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा 32 साल से संगठन से जुड़े और दो बार विधायक रहे कुर्मी जाति से आने वाले प्रेम रंजन पटेल को भी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. इससे बीजेपी कुर्मी जाति के वोट बैंक पर सेंध लगाकर नीतीश कुमार को करारा जवाब दे सकती है.
बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए जनक राम का नाम भी सुर्खियों में है. गोपालगंज क्षेत्र से आने वाले जनक राम दलित समुदाय से आते हैं . अगर दलित समुदाय से किसी को अध्यक्ष बनाने की बात हुई तो जनक राम भी मजबूत दावेदार साबित होंगे. जनक राम के प्रदेश अध्यक्ष बनने से न सिर्फ युवा चेहरा सामने आएगा बल्कि बीजेपी नीतीश कुमार के उस दलित-महादलित वोट बैंक पर भी निशाना साधा सकेगी, जिस पर नीतीश कुमार ने वर्तमान समय तक कब्जा कर रखा है. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जयसवाल ने भी जनक चमार के नाम का ही समर्थन किया है.