सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड में कोरोना संक्रमण के बीच दूसरे राज्यों से लौटते प्रवासियों के चलते चुनौतियां बढ़ने लगी हैं। श्रम विभाग में रजिस्टर्ड 1500 से अधिक श्रमिक वापस लौट चुके हैं। अब तक 15 हजार से भी अधिक श्रमिकों के वापस लौटने की खबर है। हालांकि, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गांव लौटते श्रमिकों के मामले में मुख्य रूप से उनके लिये ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ही जिम्मेदारी लेता रहा है लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने विभाग को ही पस्त कर दिया है। विभागीय सचिव आराधना पटनायक संक्रमित होकर होम आइसोलेशन में हैं। पिछले साल लाखों श्रमिकों को रोजी-रोजगार देने वाला मनरेगा सेक्शन खुद बगैर कमिश्नर के बेरोजगार है। पिछले महीने मनरेगा आयुक्त के तौर कार्यरत सिद्धार्थ त्रिपाठी का दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया। कमिश्नर के नहीं रहने से ना तो मनरेगा की योजनाओं से श्रमिकों को जोड़ने की राह आसान है ना ही उनके भुगतान की।
कोरोना के चलते गांव लौट रहे हैं श्रमिकों की कौन ले सुध
इसके अलावा मनरेगा कर्मियों (मुख्यालय) का भी पेमेंट नहीं हो रहा। जेएसएलपीएस के जरिये भी पिछले साल कोरोना काल में एसएचजी के माध्यम से कई सार्थक पहल की गयी थी। इस साल फरवरी में इसके सीइओ राजीव कुमार के जाने के बाद से इसे प्रभार के भरोसे चलाया जा रहा। विभाग के विशेष सचिव रवि रंजन और अनल प्रतीक संक्रमित होकर ईलाजरत हैं। उप सचिव नवीन किशोर सुवर्णो का कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो चुका है। विभाग के विशेष सचिव यतींद्र प्रसाद और उप सचिव नागेंद्र पासवान का अन्यत्र ट्रांसफर हो चुका है। फिलहाल पंचायती राज विभाग के निदेशक आदित्य रंजन सरकार के आदेश से स्वास्थ्य विभाग के साथ जुड़कर कोरोना संकट से जुझने वाली मैनेजमेंट टीम के साथ काम कर रहे। ऐसे में केवल एक अवर सचिव मिथिलेश कुमार नीरज ही पदाधिकारी के तौर पर दिख रहे हैं।
इन सब परिस्थितियों के कारण मनरेगा, जेएसएलपीएस और ग्रामीण विकास, कार्य की सभी योजनाओं पर गहरा असर पड़ रहा है। कोरोना की पिछली लहर (वर्ष 2020) में मनरेगा के जरिये प्रवासी मजदूरों को राहत देने में मदद मिली थी। 3 मई से प्रवासी मजदूरों की वापसी शुरू हुई थी। महज दो सप्ताह में राज्य में 92 हजार परिवारों के 1.37 लाख प्रवासी मजदूरों का नया जॉब कार्ड खोला गया था। बाद में क्वारंटाइन का समय पूरा करने पर पांच लाख मजदूरों को जॉब कार्ड जारी करने पर काम हुआ था। उन्हें रोजगार देने के लिए सरकार ने तीन योजनाएं शुरू की थीं। साथ ही पूर्व में चल रही योजनाओं पर भी काम चल रहा था। राज्य में मई में ही पांच लाख लोगों को काम देने का लक्ष्य रखा गया था। इसके बाद प्रवासियों की वापसी के आकंड़े को देखते हुए विभाग ने नया लक्ष्य 10 लाख प्रतिदिन कार्य दिवस सृजित करने का रखा था।
झारखंड में हर साल औसतन 14 लाख परिवार के 18 से 19 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं। अबकी सचिवालय पर पड़ी कोरोना की मार ने ग्रामीण क्षेत्रों में विकास योजनाओं को प्रभावित कर दिया है। फिलहाल इस समय मिनी लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में मजदूर गांव में पहले से मौजूद हैं। पहले इनमें से कई लोग शहरों में भी काम करने जाया करते थे, जो अब बंद है।
राज्य मुखिया संघ के महासचिव अजय कुमार सिंह ने बताया कि पिछली कोरोना लहर के मुकाबले इस बार खतरा ज्यादा है। पिछली बार गांवों में आने वाले श्रमिकों का डाटा, उन्हें कोरेंटिन किया जाना और किसी प्रकार की मदद देने के लिये फंड, अनाज वगैरह का भी प्रावधान था। इस बार ऐसी कोई पहल होती नहीं दिखी है। ऐसे में जहां तहां से संक्रमित प्रवासी लौट रहे हैं और कोरोना की चेन को तोड़ने की बजाये फैलाने में लगे हैं। रोजी रोजगार से जोडे रखने को भी कोई निर्देश कहीं से नहीं है।