केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच घमासान, उर्जित के इस्तीफे की चर्चा तेज

City Post Live - Desk

केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच घमासान, उर्जित के इस्तीफे की चर्चा तेज

सिटी पोस्ट लाइव : केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच का घमासान अब खुलकर सामने आ चुका है. ऐसा नहीं है कि ये पहला मामला है पहले भी सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच तनातनी होती रही है, लेकिन बयानबाज़ी इतनी खुलकर सामने नहीं आती थी. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के भाषण के बाद यह तनाव सतह पर आया. उन्होंने बीते हफ्ते कहा था कि केंद्रीय बैंक टेस्ट मैच खेल रहा है और सरकार टी-20. जानकारों के मुताबिक यह एक तरह से सरकार को आरबीआई जैसे संस्थान में दखल न देने की चेतावनी थी. विरल आचार्य ने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता में दखल के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं. जिसके बाद मामला गंभीर होता चला गया.

हालांकि पहले तो इस बयान पर प्रतिक्रिया में सरकार ने संयम दिखाया. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह यह थी कि यह विवाद ठीक उसी समय हो रहा था जब सरकार सीबीआई में हो रहे घमासान को लेकर विपक्ष के निशाने पर थी. लेकिन सरकार की चुप्पी ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाई. मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फंसे हुए कर्जों के लिए आरबीआई को जिम्मेदार ठहराया. स्वायत्त संस्थाओं की बात पर उन्होंने कहा, ‘किसी भी सरकार या संस्था से ज्यादा देश महत्वपूर्ण है.’ अब खबर आ रही है कि उर्जित पटेल ने 19 नवबंर को बैंक के बोर्ड की बैठक बुलाई है.

फिलहाल सरकार के रुख को देखते हुए लगता है कि आरबीआई में नीतिगत दखल के लिए नियम-कानून के पन्ने भी पलटे जा रहे हैं. तनाव इस कदर बढ़ चुका है कि कुछ जानकर मान रहे हैं कि हो सकता है कि आरबीआई के मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल अपना कार्यकाल भी न पूरा कर पाएं. एक समय मोदी सरकार के पसंदीदा बताये जा रहे उर्जित पटेल के इस्तीफे की भी चर्चा चल रही है. आखिर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच एकाएक तनाव इस कदर क्यों बढ़ गया है?

बैंकिंग व्यवस्था में सुधार के तहत आरबीआई ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्ज देने पर खासी सख्ती कर दी है. 11 सार्वजनिक और एक प्राइवेट बैंक को कर्ज बांटने में कड़ाई बरतने के निर्देश दिए गए हैं. जानकारों के मुताबिक चुनावी साल में सरकार यह नहीं चाहती कि लोगों को कर्ज मिलने में इतनी परेशानी हो. सरकार चाहती है कि छोटे और मंझोले उद्योग को आसानी से कर्ज दिए जाएं. कुछ की मानें तो सरकार मुद्रा योजना के तहत आसानी से लोन बांटकर इसे अगले चुनाव में उपलब्धि की तरह पेश करना चाहती है. इसके अलावा नोटबंदी और जीएसटी से नाराज छोटे कारोबारियों को खुश करने का रास्ता भी कर्ज की आसान उपलब्धता हो सकती है.

वहीं इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वह भारत में जारी विवाद पर नजर बनाए हुए है. आईएमएफ ने कहा कि उसने दुनियाभर में ऐसी सभी कोशिशों का विरोध किया है जहां केन्द्रीय बैंकों की स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश की गई है. आईएमएफ के कम्युनिकेशन डायरेक्टर गेरी राइस ने कहा कि सरकार को विवाद से पीछे हटने की जरूरत है. मैंने पहले भी कहा है कि हम जिम्मेदारी और जवाबदेही का समर्थन करते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ तरीका यह है कि केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता में किसी प्रकार की दखल नहीं होनी चाहिए और उसकी कार्य प्रणाली में सरकार या उद्योग जगत का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.

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