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संजय जायसवाल के गठबंधन की मर्यादा वाले पोस्ट पर आया उपेन्द्र कुशवाहा का जवाब

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सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में भाजपा और जदयू के बीच तनातनी जारी है. भाजपा और जदयू नेताओं के बीच एक दूसरे पर जुबानी हमले लगातार देखने को मिल रहे हैं. सम्राट अशोक और औरंगजेब का मुद्दा ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है, जबकि भाजपा के गठबंधन की मर्यादा निभाने वाले बयान ने फिर से ठंड में आग लगा दी. दरअसल सोमवार को अपने फेसबुक पोस्ट में संजय जायसवाल ने लिखा है कि माननीय जी को यह समझ आ गया कि एनडीए गठबंधन का निर्णय केंद्र द्वारा है और बिल्कुल मजबूत है। इसलिए हम सभी को साथ चलना है। फिर बार-बार महोदय मुझे और केंद्रीय नेतृत्व को टैग कर न जाने क्यों प्रश्न करते हैं।

एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए हम सभी को मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए। यह एकतरफा अब नहीं चलेगा। इस मर्यादा की पहली शर्त है कि देश के प्रधानमंत्री से ट्विटर-ट्विटर ना खेलें। प्रधानमंत्री जी प्रत्येक भाजपा कार्यकर्ता के गौरव भी हैं और अभिमान भी। उनसे अगर कोई बात कहनी हो तो जैसा माननीय ने लिखा है कि बिल्कुल सीधी बातचीत होनी चाहिए। टि्वटर-टि्वटर खेलकर अगर उनपर सवाल करेंगे तो बिहार के 76 लाख भाजपा कार्यकर्ता इसका जवाब देना अच्छे से जानते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि भविष्य में हम सब इसका ध्यान रखेंगे।

इस पोस्ट के बाद अब उपेन्द्र कुशवाहा ने संजय जायसवाल को जवाब दिया है. उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा है कि गठबंधन के सन्दर्भ में एवं सम्राट अशोक वाले मुद्दे पर आपका बयान देखा| पढने के उपरांत मुझको लगा कि आपके बयान पर अपनी राय से मै भी आपको अवगत करा दूँ| कृपया गौर करेंगे| गठबंधन के सन्दर्भ में दिए गए आपके वक्तव्य से मैं पूरी तरह सहमत हूँ| गठबंधन ठीक तरह से चले, यह राज्यहित में आवश्यक है और इसे जारी रखना हमारा- आपका कर्तव्य है| परन्तु सम्राट अशोक वाले मुद्दे पर हम आपकी राय से सहमत नहीं हो सकते क्योंकि इस सन्दर्भ में आपका वक्तव्य पूर्णतः गोल मटोल एवं भटकाव पैदा करने वाला है|

आपने लिखा है कि आपकी पार्टी भारतीय राजाओं के स्वर्णिम इतिहास में कोई छेड़छाड़ बर्दास्त नहीं कर सकती| मेरा सवाल है कि आप दया प्रसाद सिन्हा के द्वारा घोर व अमर्यादित भाषा में सम्राट अशोक की औरंगजेब से की गई तुलना को इतिहास में छेड़छाड़ मानते है या नहीं? आपने अपने वक्तव्य में कहा है कि राष्ट्रपति द्वारा दिए गए पुरस्कार की वापसी की मांग प्रधानमंत्री से करना बकवास है| मेरा आपसे दूसरा सवाल है कि मांग प्रधानमंत्री से की जाए या राष्ट्रपति से यह तो हम दोनों मिलकर तय कर लेंगे, परन्तु पहले आप साफ-साफ यह तो बताइए कि पुरस्कार वापसी की हमारी मांग का आप समर्थन करते है या नहीं?

आपने अपने वक्तव्य में यह लिखा है कि बिहार की सरकार आपके आवेदन पर कार्रवाई करते हुए दया प्रसाद सिन्हा को सजायाफ्ता बनाये, फिर पदमश्री पुरस्कार वापस लेने की मांग को लेकर एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति जी से मिले| आपका यह वक्तव्य भी पूर्णतः भटकाव पैदा करने वाला है, क्योकि अपने वक्तव्य में आपने स्वयं इस बात का उल्लेख किया है कि पहलवान सुशील कुमार पर हत्या के आरोप सिद्ध होने के बावजूद राष्ट्रपति ने उनका पदक वापस नहीं लिया, फिर भी आपका यह कहना कि दया प्रसाद सिन्हा को सजायाफ्ता हो जाने के बाद पुरस्कार वापसी की मांग की जाए, हास्यपद नहीं तो और क्या है?

आपके वक्तव्य से स्पष्ट है कि पुरस्कार वापसी में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है| माननीय जी, सम्राट अशोक के प्रति अपमान जनक रूप से इतिहास को नए सिरे से परिभाषित करने के कुत्स्ति प्रयास का विरोध का इतिश्री बिहार पुलिस में एक आवेदन देकर कर लेना आपके लिए तो संभव है मगर हमारा विरोध तबतक जारी रहेगा जबतक दया प्रसाद सिन्हा का पुरस्कार वापिस नहीं हो जाता चाहे राष्ट्रपति जी करें या प्रधानमंत्री जी|

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