सम्राट अशोक को कामाशोक और चंडाशोक कहना दुर्भाग्यपूर्ण, वापस हो सारे सम्मान : कुशवाहा

City Post Live - Desk

सिटी पोस्ट लाइव : सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने का विवाद शांत नहीं हो रहा है. जहां भाजपा और जदयू के नेता आमने आसने आ गए हैं. वहीं अब उपेंद्र कुशवाहा ने प्रेस रिलीज जारी कर फिर से सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि दया प्रकाश सिन्हा का स्पष्टीकरण अखबारों में आया है, जिसमें सिन्हा ने किताब में सम्राट अशोक से औरंगजेब से तुलना नहीं करने की बात कही है। सवाल सिर्फ इतना नहीं है। सिन्हा ने अख़बार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि पठन-पाठन और सम्राट अशोक पर नाटक लिखने के दौरान अशोक और औरंगजेब के चरित्र में खासी समानताएँ पाते हैं। सिन्हा सम्राट अशोक के विश्व में योगदान पर बुनियादी हमला कर रहे हैं।

सिन्हा इंटरव्यू में कहते हैं कि दोनों ही शासकों ने अपनी शुरुआती जिंदगी में कई पाप किए, फिर उन्हें छिपाने के लिए अतिधार्मिकता का सहारा लिया, ताकि उनके पाप पर किसी का ध्यान न जाए। सिन्हा का यह कहना ही बहुत आपत्तिजनक है। पूरी दुनिया जानती है कि सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद प्रायश्चित में भविष्य में युद्ध न करने का प्रण लिया था और बुद्ध के शरण में जाने का निर्णय लिया। उन्होंने पूरी दुनिया में अहिंसा का प्रचार प्रसार किया। सम्राट अशोक ने पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म का प्रसार किया।

उनके इतने बड़े योगदान को खारिज कर दया प्रकाश सिन्हा इसे जिंदगी में किए पाप को छिपाने के लिए अतिधार्मिकता का सहारा लेना बता रहे हैं। यानी कि सम्राट अशोक ने अपनी पूरी जिंदगी अहिंसा के लिए समर्पित कर दिया उसे ये ढोंग साबित करने में लगे हैं। यही नहीं, आप इतिहास को तोड़मरोड़ कर यशश्वी सम्राट को इंटरव्यू के दौरान कामुक और बदसूरत बता देते हैं। सम्राट अशोक को कामाशोक और चंडाशोक कहना भी दुर्भाग्यपूर्ण है।

सम्राट अशोक के योगदान को हमारे राष्ट्र ने कई अवसरों पर स्वीकार किया है। आज हमारे यहां राष्ट्रीय झंडा में अशोक चक्र की अहम स्थान मिला हुआ है तो अशोक स्तंभ की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में दया प्रकाश सिन्हा का सम्राट अशोक पर किसी भी तरह के आपत्तिजनक लेखन को साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर मान्यता देना शर्मनाक है। इस तरह से सिर्फ उनकी सफाई से संतुष्ट होने का सवाल ही नहीं है। उनका लेखन देश की अस्मिता पर हमला है और बगैर साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार के वापस लिए हम किसी भी कार्रवाई को ऑयवाश ही मानते हैं।

सरकार सकरात्मक सोच के साथ आगे आए और तत्काल प्रभाव से साहित्य अकादमी और पदम् श्री पुरस्कार वापस लेने का काम करे,  ताकि भविष्य में कोई भी साहित्य के नाम पर देश की अस्मिता और प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने की हिमाकत न कर सके। जबतक इस दिशा में भारत सरकार की ओर से सकारात्मक निर्णय नहीं लिया जाएगा, तबतक हमारा विरोध जारी रहेगा.

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