बिहार के मंदिरों-मठों में फंसे हैं हजारों साधु-संत, नहीं पहुंची है सरकारी सहायता.

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बिहार के मंदिरों-मठों में फंसे हैं हजारों साधु-संत, नहीं पहुंची है सरकारी सहायता

सिटी पोस्ट लाइव : देश भर में लॉकडाउन में फंसे लोगों की मदद करने में बिहार सरकार दिन रात जुटी हुई है.प्रवासी मजदूरों को लाने उनके खाने की व्यवस्था की जा रही है.लेकिन वह ये भूल गई है कि इस लॉक डाउन में मंदिरों-मठों और मस्जिदों में भी लाखों साधू-संत फंसे हुए हैं. मंदिर-मठों में फंसे लोगों की तरफ न तो सरकार का ध्यान जा रहा है और ना ही स्वयंसेवी संस्थाओं का. दान-पूण्य और भक्तों के सहारे रहनेवाले साधू-संत संकट में हैं. एक महीने तक एक समय उपवास रखकर उन्होंने किसी तरह अपने जीवन को बचा लिया.लेकिन अब तो एक जून की रोटी के भी लाले पड़ गए हैं.भगवन के पूजा आरती और भोग पर भी संकट आ गया है.

पटना के खाजपुरा स्थित पटना के राम-जानकी संत निवास,हनुमान मंदिर के महंथ महेंद्र दास कहते हैं- लॉक डाउन में दो महीने से कई साधू संत उनके संत निवास में फंसे हैं.कुछ दिन तो दोनों समय खाने का उन्होंने प्रबंध किया.लेकिन एक महीने बाद एक समय उपवास रखकर काम चलाना पड़ा.अब तो नौबत भुखमरी की आ गई है.अब हालात ये है कि मठों –मंदिरों में भगवन को भोग  चढाने और साधू संतों को दो जून की रोटी के लाले पड़ गए हैं.

साधू-संतों का कहना है कि सरकारें प्रवासी मजदूरों की चिंता कर रही है.लॉक डाउन में फंसे सभी लोगों की चिंता कर रही है.सबके खाने-पीने की व्यवस्था कर रही है.लेकिन एक दिन भी कोई मंदिरों-मठों में साधुओं का हालचाल लेने नहीं आया.महंथ महेंद्र दास कहते हैं-क्या साधू-संत इस समाज के अंग नहीं हैं, क्या उनके जीवन की चिंता सरकार को नहीं करनी चाहिए? महेंद्र दास कहते हैं कि मंदिर मठ भी अपनी समजिव जिम्मेवारियों का निर्वहन करते हैं.गरीबों की मदद करते हैं.लेकिन आज जब उनका जीवन संकट में है,उनके लिए सोंचने के लिए किसी के पास समय नहीं है.

गौरतलब है कि लॉक डाउन की वजह से मंदिरों में कोई भक्त नहीं आ रहा है.जब कोई चढ़ावा नहीं आएगा तो मंदिर का खर्च निकलेगा कैसे? मंदिरों में भी साधू संत हैं. सफाई कर्मचारी हैं. मंदिरों के पास फूल-माला प्रसाद बेंचकर अपनी जीविका चलानेवाले लाखों लोग आज बेरोजगार हो गए हैं.पटना के हनुमान मंदिर को लॉक डाउन की वजह से हर रोज दो करोड़ के राजस्व का नुकशान हो रहा है.

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