सिटी पोस्ट लाइव : आज लालू जेल में हैं. राबड़ी अब विधान परिषद में विपक्ष की नेता की हैसियत गवां चुकी हैं. सहयोगी दल तेजस्वी को चुनाव के लिए चेहरा मानने से इनकार कर रहे हैं.लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जो एक जमाने बिहार की सबसे ज्यादा जनाधार वाली पार्टी थी आज अपने 24 वें स्थापना दिवस पर अनिश्चित भविष्य की ओर देख रही है.लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव जो अपने पिता की अनुपस्थिति में पार्टी की बागडोर संभाल रहे हैं वो फिर से पार्टी को खड़ा करने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के विरोध में रविवार को एक साइकिल रैली निकाली जिसमे न तो ज्यादा कार्यकर्त्ता शामिल हुए और ना ही उनमे कोई ज्यादा उत्साह दिखा.जाहिर है कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना दमखम दिखाने के लिए पार्टी संघर्ष कर रही है.
राजद के 15 साल के शासन के बारे में ‘जंगल राज’ के आरोप को खत्म करने के प्रयास में, तेजस्वी ने शुक्रवार को लोगों की माफी मांगी थी. “कोई भी यह नहीं कह सकता है कि लालूजी सामाजिक न्याय नहीं करते हैं. लेकिन अगर हमने उन 15 वर्षों के दौरान कोई गलती की है, तो हमें इस बारे में खेद है.उनकी माफी ऐसे समय में आई है जब RJD के राज में गुंडागर्दी का आरोप्लग रहा है और पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के विघटन के संकेत मिल रहे हैं. लालू की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने पिछले महीने राज्य विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में अपना स्थान खो दिया था, क्योंकि उनकी पार्टी एमएलसी के पांच सदस्यों ने JDU ज्वाइन कर लिया.इससे भी बड़ी चिंता कीबात ये है कि RJD के संभावित सहयोगी – राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश साहनी – तेजस्वी को चुनाव में महागठबंधन का चेहरा मानने से इनकार कर रहे हैं.
1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल ने लालू यादव से चारा घोटाला मामले में बिहार के सीएम पद छोड़ने को कहा. उस समय, लालू, जो 1990 से सत्ता में थे, अभी भी चुनावों में अजेय माने जाते थे, उन्होंने अपने नई पार्टी राष्ट्रिय जनता दल बना ली. उनकी नई पार्टी ने पिछड़ी जातियों और दलित लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व किया.वो आगे भी अजेय बने रहे.लेकिन 2005 के बाद से पार्टी की साख गिराने लगी.पार्टी हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारने लगी.तबसे लगातार हार का सिलसिला जारी है.बीच में 20 15 में पार्टी फिर से खादी हो गई जब नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़कर RJD के साथ गठबंधन कर लिया.
RJD का वोट शेयर लगातार घट रहा है. 2000 के विधानसभा चुनावों में, यह 28 प्रतिशत हो गया.अविभाजित बिहार में कुल 324 सीटें थीं जिसमें से 293 सीटों पर RJD लड़ा और 124 सीटें जीता. 2010 तक, इसका वोट शेयर घटकर 18.84 प्रतिशत (243 सीटों में से 168 सीटों पर चुनाव लड़ना) हो गया. और 2019 के लोकसभा चुनावों में, इसका वोट शेयर घटकर 15.36 प्रतिशत तक पहुँच गया.कारण ये था कि 2005 से नीतीश कुमार के साथ अति-पिछड़े खड़े हो गए थे. बिहार अति-पिछड़े वोटरों की संख्या 29 फीसदी हैं. नीतीश ने EBC और दलितों को सामाजिक और आर्थिक लाभ देकर लालू के सामाजिक न्याय के तख़्ते पर कब्जा कर लिया.आज, RJD का मतदाता आधार मुसलमानों और यादवों तक सीमित है, जो एक साथ 30 प्रतिशत मतदाता हैं.
जब लालू ने अपनी पार्टी बनाई, तो उनके साथ जातिगत रेखाओं के पार के कुछ दुर्जेय नेता थे – रघुवंश प्रसाद सिंह, विजय कृष्ण, राम कृपाल यादव, रघुनाथ झा और मोहम्मद तस्लीमुद्दीन.लेकिन आज, तेजस्वी के साथ एक भी नेता नहीं है, जिसके पास अपना स्वयं का स्टैंड है. पुराने गार्ड को या तो छोड़ दिया गया, मर गया या उसे दरकिनार कर दिया गया.1995 के बाद, विशेष रूप से चारा घोटाले के बाद, यह परिवार की पार्टी बन गई. पहले, इसे (राबड़ी के भाई) साधु यादव और सुभाष यादव कण्ट्रोल करते थे अब तेजस्वी के चचेरे भाई ये तय करते हैं कि तेजस्वी यादव को किससे मिलना चाहिए या नहीं मिलना चाहिए.