सिटी पोस्ट लाइव :नीतीश कुमार द्वारा बारबार तेजस्वी यादव को अपना उतराधिकारी बताये जाने के बाद JDU-RJD के मर्जर को लेकर चर्चा तेज हो गई है.पहले ये कहा जा रहा था कि 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति करेंगे, उसके बाद तेजस्वी को सत्ता सौंप देंगे. मगर नीतीश कुमार ने इसे बढ़ाकर कर 2025 विधानसभा चुनाव कर दिया ही.उन्होंने साफ़ कर दिया है कि अगला चुनाव महागठबंधन तेजस्वी के नेत्रित्व में लडेगा. अगर महागठबंधन सत्ता में आई तो तेजस्वी की ताजपोशी होगी.
अब नया शिगूफा है कि आरजेडी में जेडीयू का मर्जर होगा. हालांकि नीतीश कुमार समेत पूरी पार्टी इसे खारिज कर चुकी है. नीतीश कुमार ने मंगलवार को महागठबंधन की बैठक में सार्वजनिक तौर पर इसे कन्फर्म किया. मगर क्या ये सब इतना आसान है? नीतीश की बात जेडीयू के नेता भी मानेंगे? आरजेडी के नेता कितने कंफर्ट होंगे? नीतीश के आने से आरजेडी को कितना फायदा होगा? ऐसे कई सवाल हैं.उपेन्द्र कुशवाहा के बयान से तो यहीं लगता है कि मर्जर आसान नहीं होगा.
नीतीश कुमार ने लालू यादव के सामने ‘टारगेट 2025’ दिया है. मतलब कि अगर सबकुछ उनके (नीतीश) मन मुताबिक रहा तो अगला विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. साफ-साफ कहें तो अगर 2025 में महागठबंधन को बहुमत हासिल हुआ तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे. अगर इस बीच किसी ने ‘तंग’ किया तो नीतीश कुमार के पास ऑप्शन खुले हैं? लालू यादव इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं. दिल्ली की बैठक में आरजेडी ने प्रस्ताव पारित कर पार्टी का नाम और चुनावी सिंबल बदलने का अधिकार तेजस्वी यादव दिया है. इस बात की चर्चा काफी जोरों पर रही कि जेडीयू का आरजेडी में विलय हो जाएगा. हालांकि नीतीश कुमार से लेकर ललन सिंह तक ने इसे खारिज किया. मगर जब नीतीश कुमार ने ही तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी मान लिया तो जेडीयू के नेताओं को ‘अनपच’ होना तय है.
बिहार बीजेपी का दावा है कि जेडीयू और आरजेडी का मर्जर 2023 में हो जाएगा. मतलब 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इस प्रॉसेस को पूरा कर लिया जाएगा. शायद इसी को टारगेट कर लालू यादव ने आरजेडी में कुछ भी बदलने का अधिकार तेजस्वी यादव को पार्टी से आधिकारिक तौर पर दिला दिया है. अब नीतीश कुमार के एक-एक मूव का लालू और तेजस्वी यादव इंतजार कर रहे हैं. इसका पहला स्टेप ये है कि सभी को मेसेज दे दिया जाए कि तेजस्वी को नेता मान लें. इस काम को नीतीश कुमार ने पूरा कर दिया है.
लालू यादव चाहते हैं कि 2025 का मुकाबला बीजेपी Vs आरजेडी हो. बीजेपी से जुड़े नेता भी यही चाह रहे हैं. बीच में नीतीश कुमार अटक गए हैं. दोनों ही बड़ी पार्टियां (बीजेपी और आरजेडी) इनसे निपट नहीं पा रहीं हैं. ऐसा कहा जाता है कि लालू यादव ने नीतीश कुमार को इसी शर्त पर सीएम की कुर्सी सौंपी है कि 2024 तक नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति में शिफ्ट हो जाएंगे. तेजस्वी को 2025 से पहले कमान सौंप दें. अगर दोनों ही पार्टियों का मर्जर हुआ को क्या इसका नाम ‘राष्ट्रीय जनता दल यूनाइडेट’ होगा. ये सिर्फ अनुमान है.
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में एक बैलेंसिंग फैक्टर माने जाते हैं.अकेले तो वो कुछ ख़ास नहीं कर सकते लेकिन किसी का साथ मिल जाए तो चमक उठते हैं. सबसे पहले उन्होंने बीजेपी को साधा. मगर दिल नहीं लगा पाए. 2014 में पुराने दोस्त लालू यादव के पास लौट आए. मन नहीं माना तो एक बार फिर बीजेपी के पास चले गए. भारतीय जनता पार्टी ने खुले हाथों से स्वागत किया. 2020 चुनाव साथ में (बीजेपी-जेडीयू) लड़े। मगर नीतीश कुमार को अपने पुराने दोस्त (लालू यादव) की एक बार फिर याद आने लगी. पलटी मारे और अगस्त में महागठबंधन की सरकार ने शपथ ली. 2025 तक अगर नीतीश का मन नहीं डोला तो ठीक, वरना…लालू यादव से बेहतर नीतीश कुमार को कौन समझेगा?
गणित में दो जोड़ दो भले ही चार होता हो मगर राजनीति में ऐसा नहीं होता है.वैसे तो नीतीश कुमार ने महागठबंधन की बैठक में साफ-साफ कह दिया कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. आगे इन्हीं को सबकुछ देखना है. नीतीश कुमार ने अपना उत्तराधिकारी के तौर पर तेजस्वी के नाम की घोषणा कर दी. ये तो बिल्कुल आइडियल कंडिशन है.नीतीश कुमार की बातों का मतलब ये भी हो सकता है कि 2025 तक इधर-उधर नहीं कीजिए वरना मैं फिर किसी भी फैसले के लिए स्वतंत्र हूं। इसके बाद की जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को 2025 तक संभाल कर रखना आरजेडी की मजबूरी है.
जनता दल यूनाइटेड का चेहरा नीतीश कुमार हैं. नीतीश कुमार ने ऐसा किसी को नहीं बनाया जो उनका उत्तराधिकारी बन सके. किसी भी संस्था को चलाने के लिए सेकेंड लेयर (उत्तराधिकारी) का होना बहुत जरूरी होता है. 17 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार को अपनी विरासत संभालने के लिए वहां जाना पड़ा, जिसके खिलाफ लड़कर वो खड़े हुए.
जेडीयू के ज्यादातर नेता वैसे ही हैं, जिन्होंने लालू यादव के खिलाफ राजनीति की है. एंटी लालू वोट की बदौलत सांसद और विधायक बने. लालू विरोध ही उनकी पहचान है. ऐसे नेताओं के लिए आइटेंटीटी क्राइसिस वाली स्थिति हो जाएगी. जिसके खिलाफ राजनीतिक करियर की शुरुआत किए, अब उसी पार्टी का झंडा ढोना पड़ेगा. मौजूदा जेडीयू नेताओं के लिए ये सबसे बड़ा धर्मसंकट है. उससे बड़ा धर्मसंकट ये कि मतदाताओं को कैसे समझाएंगे कि वोट दीजिए. ऐसे नेताओं के लिए सबसे मुफीद जगह बीजेपी होगी. भारतीय जनता पार्टी ने खुले बांहों से स्वागत का एलान भी कर दिया है.