इकॉनमी के आठ बुनियादी क्षेत्रों में भारी गिरावट के मायने समझिये
सिटी पोस्ट लाइव : देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था का हाल बताने वाला एक नया आंकड़ा फिर सामने आया है. इस आंकड़े के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था के छह बुनियादी क्षेत्रों में 14 वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट बताया जा रहा है.ये आठ क्षेत्र हैं–कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफ़ाइनरी उत्पाद, खाद, स्टील, सीमेंट और बिजली हैं. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े से पता चलता है कि इस साल के सितंबर माह में पिछले साल की तुलना में इन क्षेत्रों में 5.2 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
बीते साल सितंबर में इन्हीं क्षेत्रों में 4.3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी. सितंबर 2019 के आए आंकड़ों में सिर्फ़ एक क्षेत्र को छोड़कर बाकी सातों में भारी गिरावट है. इनमें सबसे अधिक गिरावट कोयला क्षेत्र में देखी गई है.कोयला क्षेत्र में 20.5 फ़ीसदी की गिरावट हुई है. इसके बाद रिफ़ाइनरी उद्योग में 6.7 प्रतिशत, कच्चे तेल में 5.4 फ़ीसदी, प्राकृतिक गैस में 4.9, बिजली में 3.7, सीमेंट में 2.1 और स्टील में 0.3 फ़ीसदी की गिरावट सितंबर महीने में दर्ज की गई है.इसका सीधा मतलब है कि देश की औद्योगिक गतिविधि कम हो चुकी है.
देश की औद्योगिक गतिविधि को दिखाने वाले इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में इन आठ क्षेत्रों की भागीदारी 40 फ़ीसदी है. देश में आर्थिक गतिविधियां कम हो रही हैं. आर्थिक गतिविधियों में कमी का असर इन क्षेत्रों पर पड़ता है और यह ऐसे क्षेत्र हैं जो औद्योगिक उत्पादन में इस्तेमाल किए जाते हैं. जब लोग सामान ख़रीदना कम कर देते हैं तब इसका सीधा असर क्षेत्रों पर पड़ता है.लोग गाड़ियां नहीं ख़रीद रहे हैं तो इससे कच्चे तेल और रिफ़ाइनरी उत्पादों पर असर पड़ा है, साथ ही दुनिया में हमारा निर्यात घटा है इसकी वजह से कच्चे तेल और रिफ़ाइनरी उत्पादों के निर्यात में गिरावट दर्ज की गई है.
बिजली उत्पादन कम हुआ है क्योंकि औद्योगिक विकास ज़ीरो के क़रीब पहुंच रहा है. बिजली की जब मांग ही नहीं होगी तो उसमें गिरावट होना लाज़िमी है. इसी तरह से सीमेंट में गिरावट की बड़ी वजह कंस्ट्रक्शन का कम होना है क्योंकि लोग घर नहीं ख़रीद रहे हैं.इसका मतलब यही है कि अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र सिकुड़ना शुरू हो रहा है.इस महीने की शुरुआत में आए आधिकारिक आंकड़ों से पता चला था कि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन 1.1 फ़ीसदी तक हो गया था जिसे बीते 26 महीनों में सबसे ख़राब प्रदर्शन माना गया था.
इन आठ क्षेत्रों में गिरावट से औद्योगिक उत्पादन कम होगा और इसका सीधा असर रोज़गार पर पड़ेगा.सितंबर में इन आठ क्षेत्रों में ज़रूर गिरावट देखी गई है लेकिन अप्रैल से सितंबर के बीच इन क्षेत्रों में 1.3 फ़ीसदी की वृद्धि थी.अप्रैल से सितंबर के बीच बढ़ोतरी केवल अप्रैल से अगस्त महीने के कारण हुई है, इन महीनों में इन आठ क्षेत्रों में से कुछ क्षेत्रों में वृद्धि थी लेकिन सितंबर में सिर्फ़ एक फ़र्टिलाइज़र क्षेत्र को छोड़कर सबमें गिरावट दर्ज की गई है.जून वाली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर को पांच साल में सबसे कम 5 फ़ीसदी आंका गया था.
इन आठ क्षेत्रों में से सिर्फ़ एक क्षेत्र है जिसमें वृद्धि देखी गई है और वह फ़र्टिलाइज़र क्षेत्र है जिसमें 5.4 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.मॉनसून सीज़न का हमारे कुछ उद्योगों पर ख़ासा असर पड़ता है जिनमें से एक फ़र्टिलाइज़र्स भी है. किसान रबी की फसलें बो रहे हैं जिसके कारण फ़र्टिलाइज़र्स में वृद्धि हुई है. आगे भी इस उद्योग में वृद्धि रहेगी यह कह पाना मुश्किल है.कच्चे तेल, बिजली और रिफ़ाइनरी उत्पाद किस भी उद्योग के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ों में से एक होती है. इन तीनों क्षेत्रों में काफ़ी गिरावट दर्ज की गई है. सीमेंट में गिरावट के लिए मॉनसून को ज़िम्मेदार मान सकते हैं लेकिन पेट्रोल, डीज़ल, बिजली का उत्पादन और उसकी खपत कम हो रही है तो इससे साफ़ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है.