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Special Report : रामविलास पासवान के गांव तक पहुंचने के लिए यह पुल बना रामसेतु

लोगों ने सरकार को आईना दिखाकर बनाया हौसलों का चचरी पुल

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रामविलास पासवान के गांव तक पहुंचने के लिए यह पुल बना रामसेतु

सिटी पोस्ट लाइव स्पेशल : दशकों बीतने के बाद भी सत्ता बदलती रही लेकिन बहुतों इलाके की सूरत और सीरत नहीं बदली। दर्द चस्पां रहा और मुसीबतें कुलाचें भरती रहीं। कोसी इलाके के लोगों को अभी भी जान जोखिम में डालकर बांस-बल्ले के बने चचरी पुल से आवाजाही करना अब उनकी नियति बन चुकी है। बीते आठ सालों से इस चचरी पुल के जरिये दियारा के लोग सहरसा जिला और खगड़िया जिला से लेकर समस्तीपुर जिला मुख्यालय तक आसानी से पहुंच जाते हैं। पहले इनकी आवाजाही का एकमात्र साधन नाव था।लेकिन बार-बार नाव हादसों से टूट चुके इलाके के लोगों ने हौसलों का चचरी पुल बना डाला। यह सिस्टम की बेरुखी का नतीजा है कि इन तमाम गांव वालों के लिए यह बांस-बल्ले से बना पुल भी जान जोखिम में डालने वाला है।लेकिन किसी को उस पार जाना है, तो किसी को इस पर आना है। हद की इंतहा देखिए कि सभी कुछ आंखों के सामने है लेकिन सत्ता पर काबिज लोगों की नींद खुलने का नाम ही नही ले रही है। सबसे हैरतअंगेज बात तो ये है कि केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान के पैतृक गांव तक पहुंचने के लिये बना है यह चचरी का महापुल। हम आपको जो तश्वीर दिखा रहे हैं,वह केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पैतृक गांव की है ।यह बास-बल्ले से बना चचरी का पुल कोसी नदी पर बना है। यह सहरसा जिले के पांच पंचायतों से गुजरते हुुुए खगड़िया जिले के शहर बन्नी गांव को जोड़ता है। शहर बन्नी गाँव केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान का पैतृक गाँव है। रामविलास पासवान का बचपन से लेकर जवानी तक इस गाँव में गुजरा है। इस पुल की लंबाई तकरीबन 400 मीटर है। इसे सहरसा जिले के पांच पंचायत कठडूमर, बेलवाड़ा, घोघसम, धनपुरा और राजनपुर पंचायत के लोगो ने सामूहिक प्रयास से बनाया है। इसे बनाने में तकरीबन एक लाख रुपये खर्च हुए हैं।

इस पुल के जरिए दियारा के लोग खगड़िया और समस्तीपुर जिला मुख्यालय तक आसानी से पहुंच जाते हैं। हांलांकि बरसात के दिनों में यह पुल अनुपयोगी बन जाता है। हमने जब इसकी पड़ताल ग्राउंड जीरो से की तो दियारा के लोगों ने अपनी दर्द को हमसे किया साझा किया। जब हम केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पैतृक गांव शहर बन्नी (अलौली) पहुंचे तो केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी ने खुलकर इस चचरी पुल को लेकर कहा कि अगर तीनों लोग उनके पति रामविलास पासवान, देवर रामचन्द्र पासवान और पारस जी अगर चाहते तो यहां कब का पुल बन जाता। यही नहीं पूर्व सांसद और वर्तमान खगड़िया सांसद महबूब अली केशर की भी इच्छाशक्ति होती,तो यह पुल कब का बन जाता और हमलोगों को ये दिन कभी भी नहीं देखने नहीं पड़ते। ये बहुत गलत है।

कोसी दियारा के लोगों से जब हमने बात की तो उन्होंने सरकार की उदासीनता बताते हुए जान जोखिम डालकर इस पुल से आवाजाही को अपनी मजबूरी बताया। रामविलास पासवान के ग्रामीण और इलाके के लोग रामविलास सहित सभी नेताओं को कोसने में जुटे हैं ।सिस्टम में सौ छेद या फिर विकास की दरिया बह रही है। तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलती हैं ।तस्वीरें चीख-चीख कर कह रही हैं कि इस इलाके की जनता दशकों से ठगी और छली जा रही हैं। जब मौसम वैज्ञानिक रामविलास के गाँव का यह मंजर है,तो इन तस्वीरों के जरिये अन्य गाँवों की मौजूं स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर, तो पीना ही पड़ेगा। हम इस खबर के जरिये हुक्मरानों को आईना दिखा रहे हैं कि एसी कमरे से विकास का दम्भ भरना और सरजमीन पर विकास को दौड़ाना, दोनों अलग-अलग विषय हैं ।जागो सरकार जागो ।आजादी के बाद भी जनता गुलामी का दंश झेल रही है।

सहरसा से पीटीएन मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट

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