झारखंड में क्यों आतंकित हैं आदिवासी, क्यों घर-बार छोड़कर हैं फ़रार.

City Post Live

झारखंड में क्यों आतंकित हैं आदिवासी, क्यों घर-बार छोड़कर हैं फ़रार.

सिटी पोस्ट लाइव : झारखण्ड की खूंटी जिला की पुलिस ने बड़े पैमाने पर ग्रामीणों और आदिवासियों के पारंपरिक ग्राम प्रमुखों के ख़िलाफ़ ‘राजद्रोह’ के मामले दर्ज किए हैं. ये मामले आदिवासियों के ‘पत्थलगड़ी’  आंदोलन की वजह से दायर किये गए हैं. इसकी आग मध्य भारत के जंगलों तक फैल गई थी.अब राजद्रोह के मामले दर्ज होने की वजह से यहाँ की सड़कें वीरान नजर आ रही हैं.  गाँव के इलाकों में भी सन्नाटा है. पूरे के पूरे गाँव खाली पड़े हैं. सिर्फ़ बुज़ुर्ग और महिलाएं और बच्चे नज़र आये.

ज़िला अधिकारी और प्रखंड कार्यालय में भी लोग नज़र नहीं आ रहे हैं.झारखण्ड में चुनाव हो रहा है लेकिन झारखंड के खूंटी ज़िले में न कोई झंडा है ना ही पोस्टर. चुनाव का प्रचार भी नहीं हो रहा है. आख़िर क्यों? पता चला लोग डरे हुए हैं.इस आंदोलन के तहत आदिवासियों ने बड़े-बड़े पत्थरों पर संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को लिख-लिख कर जगह जगह ज़मीन के ऊपर लगा दिया.ये आंदोलन काफ़ी हिंसक भी हुआ. इस दौरान पुलिस और आदिवासियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ और आंदोलन की आग फैलती चली गई.सरकार ने आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल लोगों पर आपराधिक मामले दर्ज किए.और इन मामलों में भारतीय दंड विधान की धारा 121 A और 124 A के तहत कई नामज़द लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज हुआ.खूंटी पुलिस ने बयान जारी कर कहा है कि “पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े कुल 19 मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें सिर्फ 172 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है.

मगर कुछ जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मंच ‘झारखंड जनाधिकार महासभा’ का कहना है कि उनके एक दल ने इसी साल अगस्त महीने में पत्थलगड़ी आंदोलन से प्रभावित गांवों का दौरा किया और दर्ज किए गए मामलों की निष्पक्ष जांच की.उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग हर प्राथमिकी यानी एफ़आईआर में नामज़द के अलावा ‘अन्य’ लिखा गया है जिसकी ज़द में गाँव का हर बाशिंदा आ रहा है. इन प्राथमिकियों में आदिवासी गांवों के पारंपरिक प्रमुखों को भी नहीं छोड़ा गया है.सिर्फ़ तीन गांवों की आबादी 15000 के आस-पास है. अगर प्राथमिकी में 20 लोग नामज़द हैं और ‘अन्य’ भी लिखे गए हैं उनमें पूरे के पूरे गाँव लपेटे में आ सकते हैं.महासभा का आरोप है कि पुलिस इन्हीं प्राथमिकियों को आधार बनाकर आदिवासियों का दमन कर रही है.

पुलिस इन आरोपों को ख़ारिज करती है. खूंटी पुलिस ने अपने बयान में कहा है कि ‘पत्थलगड़ी आंदोलन’ दरअसल आदिवासियों को भड़काने के लिए किया गया है.इस आंदोलन के तहत आदिवासियों को भारत के संविधान के कुछ प्रावधानों से आज़ादी मांगने के लिए बाहरी लोगों द्वारा उकसाया गया.इस आंदोलन में शामिल लोग ना तो ज़िला अधिकारी के अधिकारों का सम्मान करते हैं और ना ही अदालत का.पुलिस का ये भी कहना है कि आदिवासियों ने पूरे प्रशासनिक अमले को ठप्प करने की कोशिश की और सरकारी अधिकारियों को गांवों में प्रवेश तक नहीं करने दिया.

पुलिस के बयान में कहा गया है, “आंदोलन में शामिल लोगों ने अपनी खुद की करेंसी लागू की और भारतीय रिज़र्व बैंक को भी ख़ारिज किया. इस दौरान पुलिस के हथियार भी लूटे गए.ईन ईलाकों में ‘पत्थलगड़ी’ के पत्थरों की श्रृंखला नज़र आती हैं जिनके ऊपर लिखा हुआ है कि आदिवासियों के लिए सरकारी नियुक्तियों पर सौ फ़ीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया जाए. भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के लिए प्रदान किए गए अधिकारों को भी प्रमुखता से लिखा गया है.इस तरह के पत्थर खूंटी के लगभग हर गाँव में देखने को मिलते हैं मगर लोग अब इसके बारे में चर्चा नहीं करना चाहते.बहुत मुश्किल से कुछ लोग तैयार भी हुए लेकिन उन्होंने अपने चेहरे छिपा लिए.एक ग्रामीण का कहना था कि जबसे पुलिस ने मामले दर्ज किए हैं, कोई भी युवक या अधेड़ उम्र वाला गाँव में नहीं रहता क्योंकि पुलिस किसी को भी उठा ले जा रही है.

यहाँ के आदिवासियों के जेहन में ये बात बैठ गई है कि पिछले कई वर्षों से उनका शोषण और उनके अधिकारों का का हनन होता आया है.वो सवाल उठा रहे हैं-पांचवीं अनुसूची क्या है? ये तो राज्यपालों को भी पता नहीं क्योंकि उन्होंने कभी भी संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल कर आदिवासियों को बचाने की कोशिश भी नहीं की. इसलिए बाहरी लोगों ने आदिवासियों के ज़मीनों को लूटा, संकृति को लूटा और रोज़गार को ही लूटा.उनका ये भी आरोप है कि राजनितिक दलों के नेता और जनप्रतिनिधियों ने भी आंदोलन के दौरान चुप्पी साधे रखी.यही कारण है कि किसी भी राजनीतिक दल के लोग वोट मांगने के लिए भी सुदूर इलाकों में नहीं जाते हैं.

हालांकि पुलिस कहती है कि सिर्फ़ 96 लोगों के ख़िलाफ़ ही राजद्रोह के मामलों में सरकार से अभियोजन शुरू करने की अनुमति मांगी जबकि 48 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर किए गए हैं.मगर झारखंड जनाधिकार महासभा का आरोप है कि खूंटी पुलिस ऐसे बयान देकर सबको ‘गुमराह’ करने की कोशिश कर रही है जबकि ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही है.

Share This Article