सिटी पोस्ट लाइव : कुछ दिन पहले ही राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देनेवाले रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के निकट सहयोगियों में से एक थे.उन्होंने खराब से ख़राब समय में भी लालू यादव का साथ नहीं छोड़ा.बिहार की राजनीति में रघुवंश बाबू के नाम से जाने-पहचाने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री को कुछ दिन पहले ही दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था. पिछले कई दिनों से रघुवंश सिंह की हालत लगातार नाजुक बनी हुई थी. आखिरकार रविवार को रघुवंश बाबू इस दुनिया से विदा हो गए.
मोदी सरकार ने पिछले बजट में मनरेगा के लिए 61 हजार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया था, जिसे बढ़ा कर एक लाख 1 हजार 500 करोड़ कर दिया गया. कोरोना महामारी को देखते हए इसमें 40,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त राशि आवंटित की गई थी. रघुवंश प्रसाद सिंह से सवाल किया था कि क्या मनरेगा के जरिए ही रोजगार मुहैया कराएगी केंद्र सरकार? यूपीए शासन काल में ग्रामीण विकास मंत्री रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा के सफलता और विफलता पर यह बात कही थी.
‘देश में गरीबी है इसमें तो कोई विवाद नहीं है. गरीबी कैसे हटेगी इसको लेकर लोग मंत्र पढ़ते आ रहे हैं कि लक्ष्मी आवे, दरिद्रता भागे, लेकिन गरीबी न हटी और न घटी. बेरोजगारी है इसलिए गरीबी है. बेरोजगारी को दूर कर लिया जाए तो गरीबी अपने आप हट जाएगी. कई स्कीम के तहत अब तक देश में रोजगार देने की शुरुआत हुई है. इसी को ध्यान में रख कर राइट टू वर्क कानून बना. रोजगार गारंटी कानून के तहत साल में 100 दिनों तक रोजगार मुहैया कराने की शुरुआत हुई. इस योजना के तहत जो काम करना चाहते हैं उनको सरकार रोजगार देगी. अगर काम नहीं मिलेगा तो उन लोगों को भत्ता मिलेगा.
6 फरवरी 2006 को मनरेगा पूरे देश में लागू हो गया. पहले फेज में देश के 200 जिले, दूसरे फेज में 120 जिले और थर्ड फेज में बाकी सभी जिलों में यह योजना लागू की गई. इस योजना की दुनियाभर में प्रशंसा हुई है और अभी तक इस पर अनुसंधान चल रहा है. जब मोदी जी आए तो उन्होंने कहा ये लोग गढ्ढा खुदवा रहे हैं यह विफल योजना है. इसको हम खत्म करेंगे. जब ये बात मोदी जी कर रहे थे तो देशभर के 150 अर्थशास्त्री और विशेषज्ञों ने उनसे कहा कि यह योजना खत्म करना गलत है. इसको आपको रखना पड़ेगा.लेकिन, अब लॉकडाइन के बाद 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए तो फिर से इस योजना की चर्चा शुरू होने लगी.
अब सवाल यह है कि इन सब को रोजगार कैसे मिलेगा? 5-6 हजार रुपये और पांच किलो आनाज दे कर कितने दिनों तक काम चलेगा?प्रवासी मजदूरों जब गांव में आएंगे तो उनको काम चाहिए. इन मजदूरों को काम मिलना चाहिए. एक लाख करोड़ रुपये से काम नहीं चलने वाला है. अब जब पूरे देश में काम बंद हो गया तो सब भार इसी मनरेगा पर ही आएगा. इतने पैसे से क्या होने वाला है? सबसे बड़ी बात मैं कर रहा हूं जिस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. ये मजदूर अब कितना गड्ढा खोदेंगे? इसलिए अब इन मजदूरों को किसानों के खेत में काम करना होगा. किसान की जोतनी, तमनी, ओसौनी, दौनी, पटरनी, झरनी, बहरनी में ये मजदूर किसान के काम आएंगे. अभी मशीनीकरण उस तरह से नहीं हुई है. इसलिए किसानों के खेत में मजदूरी हो इसका बंदोबस्त होना चाहिए और उसको रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरी मिलना चाहिए. ऐसे में तो इन मजदूरों के पास 10-15 दिनों का काम हो सकता है, लेकिन जब तक किसानों के खेत में काम शुरू नहीं होगा इनके पास काम ही नहीं बचेगा.