प्रवासी मजदूरों के बलबूते बिहार में कृषि को एक इन्टरप्राइजिंग बिज़नस बनाने की तैयारी

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सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना संकट में किसानों की समस्याओं को लेकर बिहार सरकार बहुत चिंतित है. बिहार का कृषि विभाग (Agriculture Department) कोरोना के संकट को किसानों के लिए अवसर में बदलने में जुट गया है. कृषि विभाग पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) की उस भविष्यवाणी को ध्यान में रखकर  काम कर रहा है जो उन्होंने बिहार के संदर्भ में की थी जब वे जब बिहार आए थे तो उन्होंने बिहटा क्षेत्र के खेतों में लगे फसलों को देख भविष्यवाणी की थी कि बिहार में दूसरी हरित क्रांति की सम्भावना है.

दरअसल कृषि विभाग को हमेशा इस बात की समस्या से जूझना पड़ता था कि बिहार में कृषि कार्य के लिए जितने श्रमिकों की जरूरत होती थी, वह अन्य राज्यों में पलायन के कारण कम पड़ जाती थी. खासकर ट्रेंड कृषकों की भारी कमी थी.लेकिन, कोरोना संक्रमण को देखते हुए लागू लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में बिहार के बाहर रहनेवाले लोग लाखों की संख्या में बिहार आ रहे हैं. जिसमें कुशल श्रमिक के तौर पर  कृषि में हरियाणा पंजाब और दूसरे राज्यों को कृषि में अव्वल बनाने वाले मजदूर भी शामिल हैं.

अब बिहार के कृषि विभाग की नजर ऐसे ही विशेषज्ञ खेतिहरों पर टिक गई है और इन्हीं की बदौलत बिहार को कृषि और कृषि से जुड़े उत्पाद के क्षेत्र में अव्वल बनाने की तैयारी में  विभाग जुट गया है. कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करने और  पलायन से लौटे लोगों का डाटा बेस तैयार कर उनको खेती के काम में लगाने की तैयारी की जा रही है.कृषि, पशुपालन , डेयरी और मत्स्य पालन में रोज़गार के बड़े अवसर पैदा करने की रणनीति बनाई जा रही है. 4. 20 लाख करोड़ के पैकेज से कृषि विभाग को बड़ा फ़ायदा मिलने की उम्मीद मंत्री को है.उनका कहना है कि लोकल उत्पादों की ब्रानडिंग की तैयारी, मखाना, शाही लीची, शहद और मगही पान जैसे लोकल ब्रांड के निर्यात की तैयारी, डेयरी सेक्टर को मज़बूत कर रोजगार के अवसर उपलब्ध करने की तैयारी, सोन नदी का रोहू, गंगा नदी का बचवा मंछली, कोशी नदी का मोई और दरभंगा जिले में पाया जाने वाले भुना मछली की ब्रांडिंग और मार्केटिंग की तैयारी चल रही है.

बड़े पैमाने पर FPO बनाकर ग्रामीण स्तर पर लघु एवं कुटीर उद्योग की स्थापना करने की तैयारी है.इस साल खेती के समय कृषि कार्य में मजदूरों के उपलब्ध होने से इस बार कृषि में उत्पादन बढ़ाने की तैयारी चल रही है. बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार कहते हैं कि प्रदेश में कृषि और कृषि से जुड़े उत्पादों के विकास की तमाम सम्भावनाएं मौजूद हैं. इसके लिए कृषि रोड मैप भी बनाया गया है जिसकी वजह से बिहार में कृषि के क्षेत्र में विकास भी तेज गति से हो रहा है. लेकिन, इस बार कोरोंना की वजह से बड़ी संख्या में श्रमिक, जो बाहर रहते थे बिहार लौटे हैं. उनकी मदद से हम बिहार को कृषि के क्षेत्र में अव्वल बना सकते हैं.

कृषि मंत्री कहते हैं कि बिहार में तीन लाख तीस हज़ार हेक्टेयर में धान की खेती होती है. 45 हज़ार हेक्टेयर में मक्का की खेती होती है और एक लाख हेक्टेयर में दलहन की खेती होती है. वहीं, पचास हज़ार हेक्टेयर में तेलहन की खेती होती है. बिहार में खेती में कई समस्या आती है जिसमें सबसे बड़ी समस्या कृषि कार्य में लगने वाले मज़दूरों की होती है. इस बार शायद उसकी कमी दूर हो जाए, लेकिन वो स्थायी रूप से बिहार में ही रुक जाए इसके लिए कृषि विभाग जो उपाय करने का दावा कर रहा है उसे मज़बूती से अमल में भी लाना होगा तभी बिहार में कृषि क्रांति संभव है.

बिहार में 2017-22 तक इसमें कुल बजट एक लाख 54 हजार करोड़ रुपया है. एन स्वामीनाथन और अबुल कलाम ने पूर्वी भारत में हरित क्रांति की भविष्यवाणी की थी जिसमें बिहार में सम्भावना सबसे ज़्यादा जताया था. बिहार कई मामले में आत्म निर्भर है. धान, गेहूं, मक्का उत्पादन में बिहार का देश में हाइएस्ट प्रोडक्शन रेट है. अभी तक बिहार को तीन कृषि कर्मन पुरस्कार मिल चुका है. यही नहीं बिहार देश का पहला राज्य है जहां पंचायत लेवेल पर कृषि कार्यालय खोले गए हैं.लेकिन अब देखना ये है कि क्या बिहार सरकार प्रवासी मजदूरों के बलबूते कृषि को एक इन्टरप्राइजिंग बिज़नस बना पाती है.

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