चीफ़ जस्टिस के ऑफ़िस के बाद RTI के दायरे में आयेगें राजनीतिक दल?
सिटी पोस्ट लाइव : सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले के अनुसार अब देश का सर्वोच्च ऑफिस यानी चीफ जस्टिस का ऑफिस भी अब सूचना के अधिकार क़ानून के तहत लोगों के प्रति जवाबदेह होगा. फैसले में न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही को साथ-साथ लेकर चलने की बात कही गई. अदालत ने यह माना है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए खुलापन और पारदर्शिता अनिवार्य है.साल 2005 में लागू हुए आरटीआई क़ानून में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका शामिल हैं. इस क़ानून की मदद से आम नागरिक सरकारी पदों पर बैठे लोगों से सवाल पूछ सकते हैं.
हर साल देशभर से 60 लाख से अधिक आरटीआई अर्जियां भरी जाती हैं. इन अर्जियों में सरकार के काम करने के तरीकों, सरकारी योजनाओं की जानकारी जैसी बातें पूछी जाती हैं. इस क़ानून की मदद से लोगों ने सत्ता में बैठी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए हैं और कई मामलों में भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरुपयोग भी उजागर किया है.लेकिन कई संस्थान इस क़ानून के दायरे में आने से खुद को बचाते रहे हैं.
लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी आरटीआई के दायरे में आ गया है सबसे बड़ा सवाल-क्या राजनीतिक दल भी आएंगे आरटीआई के दायरे में जो अबतक आरटीआई क़ानून के तहत लोगों के प्रति जवाबदेही से बचना चाहते हैं. इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से राजनीतिक दलों को भी आरटीआई के दायरे में लाने की मांग को बल मिलेगा.साल 2013 में सीआईसी ने महत्वपूर्ण आदेश देते हुए देश की छह प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई क़ानून के तहत जनता के प्रति जवाबदेह बताया था. राजनीतिक पार्टियों को सरकार खजाने से व्यापाक लाभ मिलता है जैसे कि टैक्स में छूट मिलती है, सस्ती दरों पर ज़मीन मिलती है. इतना ही नहीं ये राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में शामिल वादों को पूरा करने के बदले लोगों से बड़ी मात्रा में फ़ंड भी जुटाते हैं.
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भारत के लाखों लोग जो अपनी मेहनत का पैसा इन राजनीतिक दलों को फ़ंड के तौर पर देते हैं उन्हें यह जानने का पूरा अधिकार होना चाहिए राजनीतिक दल इस पैसे का इस्तेमाल किस तरह करेंगे. किन उसूलों को ध्यान में रखते हुए वो नीतियां बनाएंगें, संसद में बिलों का समर्थन या विरोध करेंगे या चुनाव में अपने उम्मीदवार का चयन करेंगे.
लेकिन सीआईसी के आदेश के कुछ वक़्त बाद ही सभी दलों ने एकजुट होकर उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. ऐसा बहुत ही कम होता है जब किसी मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एकमत हों, लेकिन आरटीआई से बाहर रखने के मामले में यह दुर्लभ एकजुटता देखने को मिल जाती है.तमाम दल सीआईसी के आदेश की अवमानना करते हुए ना तो उसे अदालत में चुनौती दे रहे हैं और ना ही आरटीआई के तहत पूछे जाने वाले सवालों के जवाब देते हैं. इलैक्टोरल बॉन्ड आने के बाद अब तो लोग यह पता भी नहीं कर सकते कि राजनीतिक दलों को कौन फ़ंडिंग कर रहा है, यानी लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि जिस दल को वो वोट डाल रहे हैं उसे पैसा कहां से मिल रहा है.
लेकिन एक बात जरुर है कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले ने देश के एक सबसे उच्च स्तर के दफ़्तर को आरटीआई के दायरे में शामिल कर दिया है, इससे निश्चित तौर पर अन्य संस्थानों जैसे कि राजनीतिक पार्टियों में पारर्दशिता लाने के संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा.