ट्रेड यूनियन की हड़ताल में शामिल हुए राजनीतिक दल और छात्र संगठन.

City Post Live

ट्रेड यूनियन की हड़ताल में शामिल हुए राजनीतिक दल और छात्र संगठन.

सिटी पोस्ट लाइव : आज सुबह सात बजे से ही 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (Central Trade Union) के संयुक्त आह्वान पर बुलाये गए भारत बंद का असर पटना समेत पुरे बिहार में दिखने लगा है. इस हड़ताल को वामदलों का भी पूर्ण समर्थन है. बिहार की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) जैसी सियासी पार्टियां और छात्र संगठन भी भारत बंद को सफल बनाने के लिए सड़क पर सुबह से उतर चुके हैं. जेएनयू (JNU) में हिंसा की घटनाओं के बाद इस देशव्यापी हड़ताल में वामपंथी छात्र संगठन के शामिल हो जाने से  शिक्षण संस्थान भी प्रभावित हो गए हैं.सुबह राजेंद्र नगर टर्मिनल पर ट्रेन रोकने पहुंचे बंद समर्थकों के साथ पुलिस की जमकर झड़प हो गई.पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया .

बिहार में इस हड़ताल का असर ट्रक, बस, लॉरी, सहित ऑटो रिक्शा के परिचालन पर भी पड़ेगा. ऑल इंडिया रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव राजकुमार झा ने कहा कि सरकार अपनी नीतियों से मजदूरों, ट्रेड मजदूरों, ऑटो वर्कर्स को परेशान कर रही है. हम आठ जनवरी को देशव्यापी हड़ताल पर हैं. इस दौरान बिहार में न तो ऑटो चलेगा, न बसें चलेंगी, न ट्रक और लॉरी चलेगा. उन्होंने कहा कि सरकार अपनी गलत नीतियां वापस ले, नहीं तो और भी बड़ा आंदोलन ट्रेड यूनियनों की तरफ से किया जाएगा.गलत नीतियां वापस लें सरकारट्रेड यूनियनों के मुताबिक सरकार के दमनकारी नीतियों की वजह से यह हड़ताल की गई है. इसके माध्यम से ट्रेड यूनियनों ने अपनी कई सूत्रीय मांग सरकार के सामने रखी है. जिनमें 21 हजार मासिक न्यूनतम मजदूरी और 10 हजार मासिक पेंशन देने, एनपीएस वापस लेने, श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन और मालिकों की गुलामी के चार श्रम कोर्ट रद्द करने जैसी मांग भी शामिल हैं.

आशा, मिड डे मील, आंगनबाड़ी, समेत सभी स्कीम कर्मियों को श्रमिक का दर्जा देने, बंद उद्योगों को चालू करने, ग्रामीण और शहरी परिवारों के लिए कारगर रोजगार देने, मनरेगा को मजबूत करने, रोजगार का स्थायीकरण, ठेका मजदूरों को नियमित करने, आउटसोर्सिंग खत्म करने, पथ परिवहन सुरक्षा विधेयक 2014 और मोटर वाहन अधिनियम 2019 को वापस लेने, समान काम के लिए समान वेतन और लाभ देने, रेल, बैंक, बीमा, डिफेंस, कोयला, इस्पात समेत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं का निजीकरण बंद करने की मांग की गई है. वहीं ट्रेड यूनियनों ने सौ फीसदी एफडीआई वापस लेने की मांग की है.

इस देशव्यापी हड़ताल को किसानों का भी समर्थन है. किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग लागू करने और किसानों के ऋण माफ करने की भी मांग की गई है. वामपंथी दल इस हड़ताल को सफल बनाने में लगातार लगे हैं और सबसे अपील कर रहे हैं कि वो इस हड़ताल में सहयोग करें. सीपीआई नेता निवेदिता झा ने कहा कि ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन के तरफ से देशव्यापी हड़ताल किया जा रहा है. लेकिन यह मसला आम लोगों से, मजदूरों से जुड़ा है तो इसमें लेफ्ट की पार्टियां शामिल हैं.

बुधवार को बुलाई गई ये हड़ताल पहले से प्रस्तावित था, लेकिन रविवार को दिल्ली के जेएनयू में हिंसा की घटना घटी तो तमाम वामपंथी छात्र संगठनों ने भी इस केंद्रीय ट्रेड यूनियन के संयुक्त देशव्यापी हड़ताल में शामिल होने का निर्णय लिया. इनके शामिल होने से देश के महाविद्यालय और विश्वविद्यालय बुधवार को बंद रहेंगे. एआईएसएफ के राष्ट्रीय सचिव सुशील कुमार ने कहा कि इस पूरे हड़ताल में वामपंथ के सभी छात्र संगठन शामिल होंगे. जेएनयू में जो घटना घटी है उसके विरोध में छात्र संगठन सभी विश्वविद्यालय और कॉलेजों को बंद कराएंगे.

ट्रेड यूनियनों वामपंथी दलों और छात्र संगठनों के इस देशव्यापी हड़ताल पर बीजेपी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी के मंत्री सुरेश शर्मा ने कहा कि यदि कोई मांग थी तो ट्रेड यूनियनों को सरकार के साथ बात करनी चाहिए थी. लेकिन इनकी मांगें काफी कमजोर हैं. इसलिए यह छात्र संगठनों को साथ में ले रहे हैं. इस हड़ताल का देश पर कोई असर नहीं होगा.

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