अल्पसंख्यकों को रिझाने को नीतीश सरकार का बड़ा फैसला, हिंदी के साथ हर जगह उर्दू अनिवार्य
सिटी पोस्ट लाइव : नागरिकता संशोधन कानून और NRC का डर दिखाकर जिस तरह से विपक्ष देश के अल्पसंख्यकों को गोलबंद करने में जुटा है, उससे धर्म-निरपेक्ष छवि वाले राजनेताओं की मुश्किलें बढ़ गई हैं. ध्रुवीकरण से सबको फायदा होता है और नुक्सान केवल धर्म-निरपेक्ष दलों को होता है. नागरिकता संशोधन कानून और NRC को लेकर जिस तरह से बिहार में तेजस्वी यादव अल्पसंख्यकों को गोलबंद करने में जुटे हैं, उससे बीजेपी तो निश्चिन्त है क्योंकि अल्पसंख्यकों की गोलबंदी से उसे हिन्दुओं के अपने पक्ष में गोलबंद होने की उम्मीद है. लेकिन बीजेपी के सहयोगी दल जेडीयू की चिंता बढ़ गई है.
अबतक बिहार में नीतीश कुमार को अल्पसंख्यक समाज का वोट इसलिए मिलता रहा है कि बीजेपी के साथ सरकार चलाने के बावजूद उन्होंने कभी बीजेपी को बिहार में हिंदुत्व के अजेंडे को आगे नहीं बढाने दिया. उन्हें कभी असुरक्षित महसूस नहीं होने दिया. लेकिन इसबार नागरिकता संशोधन कानून और NRC को लेकर अल्पसंख्यक बेहद नाराज हैं और बीजेपी का साथ देनेवालों को भी अपना दुश्मन मान रहे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की चिंता बढ़ गई है. नीतीश सरकार ने चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए एक बड़ा फैसला ले लिया है. इस फैसले के अनुसार हिंदी के साथ साथ हर जगह उर्दू को भी स्थान देना अनिवार्य बना दिया गया है.
मंत्रिमंडल सचिवालय ने सभी प्रधान सचिव, सचिव, कमिश्नर, डीएम समेत तमाम अधिकारियों को यह आदेश दिया है कि वह उर्दू के साथ नाइंसाफी नहीं कर सकते. मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के उर्दू निदेशालय के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने यह आदेश जारी किया है. अपने आदेश में अपर मुख्य सचिव ने कहा है कि अब सभी सरकारी निमंत्रण पत्रों, शिलापट्ट, सरकारी आयोजनों के बैनर पोस्टर, अधिकारियों के नेम प्लेट, उत्तराधिकारी पट्ट, समेत तमाम सरकारी कार्यक्रमों में हिंदी के साथ उर्दू का प्रयोग होना चाहिए. अपने आदेश में उन्होंने कहा है कि उर्दू बिहार की दूसरी भाषा है, लिहाजा सभी जगहों पर उर्दू का हर हाल में प्रयोग होना चाहिए. इसको लेकर पहले भी आदेश दिया गया था, लेकिन उसका पालन नहीं किया जा रहा है.